माहवारी: मासिक धर्म के दौरान नियमित गतिविधियों से दूरी कितनी जरूरी? जान लें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू

Women During Periods:लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में लगभग 20 प्रतिशत (हर पांचवी) महिला या लड़की मासिक धर्म के दौरान नियमितगतिविधियों से दूर रहती है। इस अध्ययन रिपोर्ट को दो तरह से देखा जा सकता है। पहला, माहवारी के दौरान महिलाओं की स्वास्थ्य समस्या को ध्यान में रखते हुए उन्हें आराम की जरूरत होती है, ऐसे में नियमित गतिविधियों से दूर रहना बेहतर है। हालांकि दूसरा विचार भारत के परिपेक्ष में है, जहां रूढ़िवादी सोच के लोग माहवारी को अछूत या समस्या की तरह देखते हैं। महिलाओं के माहवारी या मासिक धर्म के दौरान उन्हें घर की गतिविधियों से दूर रहने, पूजा घर या रसोई आदि में जाना प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भले ही इसकी शुरुआत भी महिला स्वास्थ्य की दृष्टि से हुई लेकिन बाद में इसे अछूत, अशुद्ध से जोड़कर देखा जाने लगा। भारत के परिपेक्ष में माहवारी से जुड़ी धारणाएं लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में जो कहा गया है, वह कई भारतीय सर्वेक्षणों और रिपोर्टों से मेल खाता है। भारत में मासिक धर्म से जुड़ी सामाजिक व सांस्कृतिक धारणाओं को देखते हुए यह काफी हद तक सही प्रतीत होता है। भारत में मासिक धर्म के दौरान गतिविधियों से दूर रहने के कई कारण हैं, जिसमें सामाजिक व धार्मिक पाबंदियां एक मुख्य वजह है। भारत में कई जगहों पर महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान मंदिरों, रसोई और कुछ पारिवारिक गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाता है। सनातन धर्म में माहवारीपर बहस मासिक धर्म में छुआछूत को लेकर सनातन धर्म से जुड़े बुद्धिजीवियों के भी अलग-अलग विचार हैं, जिसमें कई बार विवाद हो चुके हैं। कुछ महीनों पहले मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोरी ने माहवारी पर बेबाक राय रखी। उन्होंने कहा कि माहवारी में महिलाओं को होने वाली ब्लीडिंग अगर गंदा खून है और इस वजह से इसे अछूत माना जाता है तो गर्भावस्था के दौरान इसी खून से मां शिशु को सींचती है तो हर इंसान अछूत हुआ। हालांकि देवकीनंदन ठाकुर, प्रेमानंद जी महाराज समेत कई कथावाचकों ने अलग-अलग विचार दिए। अन्य कारण यूनिसेफ और अन्य संगठनों की रिपोर्ट बताती हैं कि कई लड़कियां पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं जातीं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां स्वच्छता सुविधाएं अपर्याप्त होती हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) और अन्य रिपोर्टों के अनुसार, कई महिलाओं को सैनिटरी पैड्स या सुरक्षित मासिक धर्म प्रबंधन के साधन नहीं मिलते जिससे वे घर के बाहर जाने से बचती हैं। महिलाओं के लिए अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं हालिया रिपोर्ट से पता चलता है, भारत में केवल 57.6% महिलाओं को ही सुरक्षित मासिक धर्म उत्पाद (सैनिटरी पैड, टैंपून) मिल पाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या और भी कम है। कई संगठनों की रिपोर्ट कहती है कि मासिक धर्म स्वच्छता की कमी के कारण करीब 23% लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। शहरों और गांवों में कुछ अंतर भारत में मासिक धर्म से जुड़ी सामाजिक व आर्थिक बाधाओं के कारण हर पांचवीं महिला या लड़की का सामान्य गतिविधियों से दूर रहना एक वास्तविकता है। हालांकि, शहरों और शिक्षित परिवारों में यह प्रवृत्ति कम हो रही है, लेकिन ग्रामीण और पारंपरिक समाजों में यह समस्या अब भी बनी हुई है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 30, 2025, 17:32 IST
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