सम्मेलन: 27 स्पीकर ने 20 सत्र में 50 से ज्यादा बार न्यायपालिका पर की चर्चा

अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन पूरा होने के बाद जयपुर-रणथम्भौर घूमने निकले पीठासीन अधिकारियों की जुबान पर एक प्रस्ताव की चर्चा सबसे ज्यादा रही। चर्चा यह थी कि इस बार चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन अदालतों को लेकर समाधान निकालना होगा। इसे लेकर बार बार चर्चा करने की जरूरत है। वापस आकर राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से विदाई लेते वक्त बिहार के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने कहा, जोशी साहब, अपना प्रस्ताव धरातल पर उतारना है। आप ही इसकी बागडोर संभाले, हम आपके साथ हैं। चाहे प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष राष्ट्रपति को मनाएं। इन शब्दों पर वहां मौजूद अन्य राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष व सभापति भी हामी भरते नजर आए। वहां मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु के अध्यक्ष खड़े थे। दरअसल, यह प्रस्ताव विधायिका के कार्य में अदालतों की दखल रोकने से जुड़ा है। राजस्थान विधानसभा में हुई पीठासीन अधिकारियों के इस 83वें सम्मेलन में 27 स्पीकर ने 20 सत्रों में 50 से अधिक बार केवल न्याय प्रणाली की दखल पर चर्चा की है। बाकी विषयों को लेकर भी चर्चा हुई और उन्हें संकल्पों में शामिल भी किया गया लेकिन इनमें से अधिकांश संकल्प 2021 में शिमला में हुए 82वें सम्मेलन के दौरान भी लिए गए थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेंगे सम्मेलन के अगले दिन शुक्रवार सुबह से ही राजस्थान भ्रमण पर निकले विधानसभा अध्यक्षों का कहना है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी उनका नेतृत्व करेंगे और न्यायपालिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेंगे। बिहार के विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी सिंह ने यहां तक कहा कि इस मामले में चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आना पड़े, लेकिन प्रस्ताव को धरातल पर लाकर रहेंगे। वहीं मध्य प्रदेश के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने कहा कि विधायिका के कामकाज में कोर्ट की बढ़ती दखल को रोकने के लिए सख्त फैसले लेना जरूरी है। आंध्र प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सीताराम थम्मिनेनी ने यहां तक कहा है कि कहीं यह टकराव आगे चलकर एक बड़ा स्वरूप न ले ले, इसलिए समाधान जल्द से जल्द निकालना होगा। कोर्ट, जी-20 को छोड़ बाकी अधिकांश पुराने संकल्प उदाहरण के लिए, शिमला के सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों ने निर्णय लिया था कि जनप्रतिनिधियों का प्रशिक्षण होना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ विधानसभा का पुरस्कार देने की परंपरा शुरू होनी चाहिए, विधानसभा की समितियों को मजबूत करना चाहिए, आदर्श विधानसभा के लिए नियम बनाने चाहिए, विधानसभाओं को डिजिटल करना चाहिए और इन्हें वित्तीय स्वायत्तता मिलनी चाहिए। यही सभी संकल्प इस बार के 83वें सम्मेलन में भी लिए गए। हालांकि इस बार न्यायपालिका का हस्तक्षेप पीठासीन अधिकारियों के निशाने पर रहा और जी 20 सम्मेलन में सभी के प्रयासों की अपील की गई। इस पूरे आयोजन में 10 करोड़ रुपये का बजट खर्च किया गया। राजस्थान विधानसभा में अकेले भोजन पंडाल को 95 लाख रुपये के बजट से तैयार किया गया था।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 14, 2023, 05:46 IST
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