आज का शब्द: अन्यत्र और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- हुआ किसी नृप के घर लाल
'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- अन्यत्र, जिसका अर्थ है- किसी और स्थान पर, किसी दूसरी जगह। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- चांडाल हुआ किसी नृप के घर लाल, तन पर किंतु रीछ-से बाल! बोले तब दैवज्ञ विशाल— “झाड़े कहीं इसे चांडाल!” सुन कर सभी हो गए सन्न; पर क्या करते नहीं विपन्न लेकर उसे नदी के पार, पहुँचा सचिव श्वपच के द्वार। परम स्वच्छ था उसका गेह; अविचल मन था, निर्मल देह। सुस्थिर मुद्रा में आसीन, वह था प्रभु-चिंतन में लीन। किया नहीं उसने दृकपात, कर न सका मंत्री भी बात। सोचा किया दृष्टि निज डाल— “इस जन का क्या है चांडाल पावे आसा द्विज भी ख्याति, सचमुच आत्मा की क्या जाति अपने जल से, ऐसा डोम, जला सकेगा क्या ये रोम”
- Source: www.amarujala.com
- Published: Jul 04, 2024, 17:56 IST
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