आज का शब्द: मोचन और अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कविता- मनोव्यथा

'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- मोचन, जिसका अर्थ है- बंधन आदि से छुड़ाना, छुटकारा देना, मुक्त करना। प्रस्तुत है अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कविता- मनोव्यथा ऐ प्रेम के पयोनिधि भवरुज पियूष प्याले। उपताप ताप पातक परिताप तम उँजाले।1। प्रतिदिन अनेक पीड़ा पीड़ित बना रही है। कब तक रहें निपीड़ित प्रभु पापरिणी पाले।2। चलती नहीं अबल की कुछ सामने सबल के। क्यों आपकी सबलता सँभली नहीं सँभाले।3। जी-जान से लिपट कर हम टालते नहीं कब। संकट समूह संकट मोचन टले न टाले।4। सब रंग ही हमारा बदरंग हो रहा है। पर रंग में हमारे प्रभु तो ढले न ढाले।5। क्यों काल कालिमायें करती कलंकिता हैं। दिल के कलंक भंजन हम थे कभी न काले।6। है हो रही छलों से उसकी टपक छ गूनी। क्यों दिल छिले हुए के देखे गये न छाले।7। दुख दे कभी किसी को होते नहीं सुखी हम। सुख-निधि पड़े रहे क्यों सुख के सदैव लाले।8। हैं क्यों न दूर होते पातक अपार मेरे। वे आपके निरालेपन से नहीं निराले।9। जो काम ही हमारा होता तमाम है तो। कमनीयता कहाँ है कमनीय कान्ति वाले।10। हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 21, 2025, 16:51 IST
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