आज का शब्द: शीर्ण और द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता- चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ

'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- शीर्ण, जिसका अर्थ है- टूटा फूटा, फटा पुराना, मुरझाया या कुम्हलाया हुआ। प्रस्तुत है द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता- चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ समय की सरित में लिये नाव तन की चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ। न है ज्ञात मुझको कि कब से चला हूँ कहाँ से चला हूँ, पहुँचना कहाँ है; न है ज्ञात यह भी कि जिस धार में मैं चला, आदि औ अंत उसका कहाँ है। मगर नाव खेता हुआ मैं निरन्तर चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ॥1॥ हुई शीर्ण यदि नाव है एक, तो ले नयी दूसरी नाव पड़ा हूँ उसी क्षण; उसे भी दिया त्याग, देखा कि जब वह हुई जीर्ण औ शीर्ण, जर्जर-पुरातन। इसी भाँति अविरल नये रूप धरता चला आ रहा हूँ, चला जारहा हूँ।2। मिले गर्त गहरे, मिली आँधियाँ भी मुझे नाव खेते इसी धार में हैं; मगर बढ़ स्वयं उर्मियों ने इसी की लगाया मुझे वक्ष से प्यार में है। यही जिन्दगीहै जिसे गुनगुनाता चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।3। नहीं एक मैं चल रहा इस सरित में सभी सृष्टि ही इस तरह चल रही हैं, किसी ज्योति के जगमगाते दीयों से भरी थाल-सी तैरती लग रही है। उसी थाल का मैं दीया एक चलता बला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।4। अजन्मा, नहीं मानता जन्म को मैं अमर हूँ, नहीं मानता मृत्यु को भी; प्रकृति के विविध तत्व मिल, धर विविध रूप हैं रच रहे खेल सारा स्वयं ही। उसी खेल को खेलता मुस्कराता चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।5। न बहना रुकेगा समय की सरित का न मैं ही रूकूँगा, न नौका रुकेगी; भरी विश्व में शक्ति अक्षय-अनश्वर न जिससे कभी सृष्टि की गति रुकेगी। अहं ब्रह्म सत् चित् न आद्यन्त मेरा चला आ रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।6। हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 29, 2025, 17:26 IST
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