आज का शब्द: उन्मद और अज्ञेय की कविता- आज व्यथा नि:स्पन्द पड़ी
'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- उन्मद, जिसका अर्थ है- पागल, बावला, उन्मत्त बनाने वाला। प्रस्तुत है अज्ञेय की कविता- आज व्यथा नि:स्पन्द पड़ी कल मुझ में उन्माद जगा था, आज व्यथा नि:स्पन्द पड़ी- कल आरक्त लता फूली थी, पत्ती-पत्ती आज झड़ी। कल दुर्दम्य भूख से तुझ को माँग रहे थे मेरे प्राण- आज आप्त तू, दात्री, मेरे आगे दत्ता बनी खड़ी। अपना भूत रौंद पैरों से, बन विकास की असह पुकार- अपनों को ठुकरा कर मात्र पुरुष आया था तेरे द्वार। तू भी उतनी ही असहाया, उसी प्रेरणा से आक्रान्त- तुझ में भी तब जगा हुआ था वह ज्वालामय हाहाकार! वह कल था, जब आगे था भावी, प्राणों में थी ज्वाला- आज पड़ा है उस के फूलों पर तम का पट, घन काला! वह यौवन था, जिस के मद में दोनों ने उन्मद हो कर- इच्छा के झिलमिल प्याले में अनुभ-हालाहल ढाला! अमर प्रेम है, कहते हैं, तब यह उत्थान-पतन कैसा स्थिर है उस की लौ, तब यह चिर-अस्थिर पागलपन कैसा वह है यज्ञ जो कि श्वासों की अविरल आहुतियाँ पा कर- जला निरन्तर करता है, तब यह बुझने का क्षण कैसा सोचा था जग के सम्मुख आदर्श नया हम लाते हैं- नहीं जानता था कि प्यार में जग ही को दुहारते हैं। जग है, हम हैं, होंगे भी, पर बना रहा कब किस का प्यार केवल इस उलझन के बन्धन में बँध-भर हम जाते हैं कल ज्वाला थी जहाँ आज यह राख ढँपी चिनगारी है, कल देने की स्वेच्छा थी अब लेने की लाचारी है। स्वतन्त्रता में कसक न थी, बन्धन में है उन्माद नहीं- रो-रो जिये, आज आयी हँस-हँस मरने की बारी है! कल था, आज हुआ है, कल फिर होगा, हैं शब्दों के जाल- मिथ्या, जिन की मोहकता में, हम को बाँध रहा है काल। फिर भी सत्य माँगते हैं हम, सब से बढ़ कर है यह झूठ- सत्य चिरन्तन है भव के पीछे जा हँसता है कंकाल! हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 06, 2025, 17:14 IST
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