जूते-साइकिल चोरी का आरोप, रद्द करने के बाद भी गरीब ने काटी चार महीने जेल, दुर्भाग्यपूर्ण : हाईकोर्ट

अमर उजाला ब्यूरोचंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पुलिस जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करती है या आरोपों को जमानती अपराध में बदल देती है, तो मजिस्ट्रेट के पास आरोपी को जमानत देने का पूरा अधिकार है, भले ही उससे पहले सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी हो। यह अहम टिप्पणी अदालत ने उस मामले में की, जिसमें एक गरीब व्यक्ति को साइकिल और एक जोड़ी जूते चोरी के आरोप में गिरफ्तार कर चार महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया, जिसे हाईकोर्ट ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कोर्ट ने विस्तृत आदेश में कहा कि यदि जांच में आरोपी निर्दोष पाया जाता है या मामला जमानती अपराध बन जाता है, तो मजिस्ट्रेट धारा 480 बीएनएसएस के तहत आरोपी को जमानत दे सकते हैं। यदि सभी पीड़ित पक्ष जमानत का विरोध न करें और शपथपत्र देकर सहमति जताएँ, तो जमानत सामान्यतः दी जानी चाहिए। यहां तक कि जब आरोपी घोषित भगोड़ा हो चुका हो, लेकिन समझौता होने पर वह अदालत में सरेंडर कर दे, तो उसे भी जमानत दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कई बार मजिस्ट्रेट डर की वजह से जमानत देने से कतराते हैं, जबकि कानून उन्हें पूरा अधिकार देता है। अदालत ने साफ़ किया कि आरोपी के खिलाफ आपराधिक इतिहास (क्रिमिनल हिस्ट्री) एक अतिरिक्त विचारणीय कारक हो सकता है, लेकिन यह मजिस्ट्रेट की शक्ति को सीमित नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक गरीब व्यक्ति को साइकिल और जूते चोरी जैसे मामूली आरोप पर तीन महीने बीस दिन जेल में बिताने पड़े। यह न्याय व्यवस्था की विफलता है कि इतना छोटा मामला होते हुए भी उसे इतनी लंबी कैद झेलनी पड़ी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि मजिस्ट्रेट को लगे कि आरोप जमानती हैं, तो उन्हें आरोपी की हिरासत स्वीकार नहीं करनी चाहिए, बल्कि जांच अधिकारी को निर्देश देना चाहिए कि आरोपी को तुरंत जमानत पर रिहा किया जाए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 02, 2025, 21:39 IST
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