अहमद फ़राज़: मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है सितम तो ये है कि अहद-ए-सितम के जाते ही तमाम ख़ल्क़ मिरी हम-नवा निकलती है विसाल-ओ-हिज्र की हसरत में जू-ए-कम-माया कभी कभी किसी सहरा में जा निकलती है मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है वो ज़िंदगी हो कि दुनिया 'फ़राज़' क्या कीजे कि जिस से इश्क़ करो बेवफ़ा निकलती है हमारे यूट्यूब चैनल को Subscribe करें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 24, 2025, 12:05 IST
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