US Tariffs: अमेरिका ने फार्मा उत्पादों पर 200 फीसदी तक टैरिफ लगाने की दी धमकी, भारत के निर्यात पर संकट
अमेरिका में अब दवाओं के आयात के मोर्चे पर बड़ा बदलाव होने वाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर ट्रेड एक्सपैंशन एक्ट की धारा-232 के तहत आयातित दवाओं, जेनेरिक दवाओं और एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) पर 200 फीसदी तक टैरिफ लगाने की धमकी दी है। अगर ऐसा हुआ तो, भारत से अमेरिका को होने वाले करीब 87,000 करोड़ रुपये (10 अरब डॉलर) से अधिक के फार्मा निर्यात पर संकट उत्पन्न हो जाएगा। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति ने दवाओं पर भारी टैरिफ (150-200 फीसदी) को 12-18 महीनों तक टाला है, ताकि फार्मा कंपनियां अपनी आपूर्ति शृंखला को समायोजित कर सकें और अमेरिका में स्टॉक जमा कर सकें। इसके अलावा, ट्रंप ने मोस्ट-फेवर्ड-नेशन (एमएफएन) प्राइसिंग की मांग की है, जिसके तहत दवा कंपनियों को अन्य विकसित देशों जितनी कम कीमत पर अमेरिका में भी दवाएं बेचनी होगी। ऐसा नहीं करने पर इन कंपनियों को सख्त नियमों और भारी-भरकम टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। यह नीति अमेरिका में दवाओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है, ताकि भारत, चीन और यूरोप में स्थित फैक्ट्रियां अमेरिका में स्थानांतरित हो सकें। 10% का सामान्य टैरिफ लगाता है अमेरिका वर्तमान में सभी मेडिकल आयात पर वर्तमान में सभी मेडिकल आयात पर 10 फीसदी का सामान्य टैरिफ लागू है। चीन से आने वाले एपीआई और तैयार दवाओं पर 245 फीसदी टैरिफ प्रस्तावित है। यूरोप से आयातित दवाओं पर अगस्त, 2025 से 15 फीसदी टैरिफ लागू हो चुका है, जो भविष्य में और बढ़ सकता है। अमेरिका में महंगा होगा इलाज भारतीय जेनेरिक दवाएं अमेरिका में 90 फीसदी इलाज का हिस्सा हैं। इससे वहां चिकित्सा खर्च वहनीय है। लेकिन, टैरिफ के कारण अमेरिका में दवा की कीमतें बढ़ सकती हैं। अमेरिकी कानून सिर्फ मेडिकऐड और मेडिकेयर की कीमतों को नियंत्रित करता है, निजी खरीदारों को नहीं, इसलिए उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा। पीडब्ल्यूसी ने कहा, जेनरिक दवाओं के अमेरिकी बाजार से बाहर होने से अस्पतालों और बीमा कंपनियों को भी बढ़ी लागत का सामना करना पड़ेगा। इससे अमेरिका की पहले से महंगी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और महंगी हो जाएगी। भारत पर असरअमेरिकी बाजार छोड़ सकती हैं भारतीय कंपनियां भारत का कुल दवा निर्यात बाजार 30 अरब डॉलर (2.65 लाख करोड़ रुपये) का है, जिसका एक तिहाई हिस्सा सिर्फ अमेरिका को निर्यात होता है। इसके अलावा, भारत अमेरिकी बाजार में जेनरिक दवाओं का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है। भारतीय कंपनियां अमेरिका के कुल जेनरिक दवाओं की जरूरत का करीब आधा हिस्सा पूरा करती हैं। 200 फीसदी टैरिफ लागू होने पर भारत से अमेरिका को निर्यात लगभग बंद हो सकता है। भारी-भरकम टैरिफ के कारण भारतीय कंपनियां या तो अमेरिकी बाजार छोड़ सकती हैं या कीमतें बढ़ा सकती हैं। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान होगा। कई भारतीय कंपनियां, जैसे सिप्ला और डॉ. रेड्डीज, अमेरिका में पहले से ही कुछ उत्पादन इकाइयां संचालित करती हैं, लेकिन पूरी आपूर्ति शृंखला को स्थानांतरित करने में उन्हें काफी वक्त लगेगा और काफी पैसों की भी जरूरत होगी। वैश्विक मुनाफा कम होने से दवा कंपनियों के अनुसंधान एवं विकास बजट पर दबाव पड़ेगा, जिससे नई दवाओं की लॉन्चिंग में देरी हो सकती है। चीन और यूरोप पर प्रभाव : दुनिया को 40 फीसदी एपीआई आपूर्ति करने वाला चीन 245 फीसदी टैरिफ के कारण अमेरिकी बाजार से बाहर हो सकता है। यूरोप से आयातित दवाओं पर 15 फीसदी टैरिफ पहले से लागू है, जो और बढ़ सकता है। नोवार्टिस और सनोफी जैसी यूरोपीय कंपनियां पहले ही अमेरिका में निवेश बढ़ा रही हैं, लेकिन जेनेरिक दवाओं के लिए यह व्यवहार्य नहीं है। यूरोप ने जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिकी सामानों पर टैरिफ बढ़ाना शुरू कर दिया है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 03, 2025, 04:58 IST
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