Tariffs: अमिताभ कांत बोले- अमेरिकी टैरिफ का मकसद भारत पर दबाव बनाना, हमारे लिए यह क्षमता बढ़ाने का बेहतर मौका
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ को भारत के लिए एक चेतावनी के रूप में देखना चाहिए। नीति आयोग के पूर्व सीईओ और भारत के पूर्व जी 20 शेरपा अमिताभ कांत ने यह बयान दिया है। ये भी पढ़ें:US Tariffs:टैरिफ का असर सीमित, लंबे समय में पैदा हो सकती हैं चुनौतियां; वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट यह केवल रूसी तेल का मामला नहीं सोशल मीडिया एक्स पर कांत ने लिखा कि ट्रंप का टैरिफ भारत के लिए एक चेतावनी है। विडंबना यह है कि अमेरिकी रूस और चीन के साथ सक्रिय रूप से बातचीत कर रहा है। जबकि चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। फिर भी वह टैरिफ के जरिए भारत को निशाना बनाना चाहता है। साफ है कि यह रूसी तेल का मामला नहीं है। यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्ता का मामला है। इससे हमें कभी समझौता नहीं करना चाहिए।कांत ने कहा कि भारत को अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए दृढ़ रहना चहिए और स्थिति का उपयोग महत्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहिए। भारत कई मौकों पर वैश्विक दबाव के आगे नहीं झुका उन्होंने कहा कि भारत ने कई मौकों पर वैश्विक दबाव के आगे झुकने से इनकार किया है। इस बार भी ऐसा ही होना चाहिए। इन वैश्विक चुनौतियों से हमें डरने के बजाय, भारत को पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले साहसिक सुधारों के लिए प्रेरित करना चाहिए। साथ ही दीर्घकालिक विकास और लचीलेपन को सुरक्षित करने के लिए हमारे निर्यात बाजारों में विविधता लानी चाहिए। भारत को चीन के साथ संयुक्त उद्यम का लक्ष्य रखना चाहिए इस महीने की शुरुआत में चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों के बारे में कांत ने कहा कि कठिन राजनीतिक संबंधों के बावजूद, भारत को चीन से आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहने के बजाय चीनी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि हम चीन से लगभग 120 अरब डॉलर का आयात करते हैं। जापान के साथ बेहद प्रतिकूल संबंध होने के बावजूद, चीन ने जापान के साथ बेहद करीबी आर्थिक संबंध बनाए रखा है। चीन के ताइवान के साथ बेहद प्रतिकूल राजनीतिक संबंध हैं। फिर भी चीन में सबसे बड़े निवेशक ताइवान और ताइवानी व्यवसायी हैं। मेरे विचार से, यह हमारे आर्थिक हित में है कि चीन से आयात करने के बजाय, हमें चीनी कंपनियों को अल्पमत हिस्सेदारी पर भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित करने और भारत में विनिर्माण करने के लिए राजी करना चाहिए। इससे भारत इनपुट विनिर्माण और घटक विनिर्माण दोनों में सक्षम होगा और मेक इन इंडिया की प्रक्रिया में तेजी आएगी और भारत में विनिर्माण की प्रक्रिया में भी तेजी आएगी। मेरे विचार से यह आर्थिक विकास का दीर्घकालिक समाधान है। भारत 35 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बन सकता है भारत की विकास महत्वाकांक्षाओं पर, कांत ने व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा महत्वपूर्ण बात यह है कि हम 100 साल पूरे होने तक भारत को 4 ट्रिलियन डॉलर से 35 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बना सकते हैं यही प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण है। हमें विकास को गति प्रदान करनी होगी। हमें साल दर साल 8 से 9 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ना होगा। आयात करने के बजाय, हमें चीन के साथ मिलकर भारत में विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे भारत में रोजगार सृजन होगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 28, 2025, 12:12 IST
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