Australia Day: अपने राष्ट्रीय दिवस पर क्यों बुरी तरह बंटा नजर आया ऑस्ट्रेलिया?
26 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया गया। लेकिन उसी दिन को देश के मूलवासी समुदाय ने आक्रमण दिवस के रूप में मनाया। 26 जनवरी के दिन ही अंग्रेज पहली बार ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे, जहां मूलवासियों को बेदखल करते हुए वे उनकी जमीन पर बस गए। हर वर्ष की तरह इस बार भी 26 जनवरी को मूलवासी समुदाय के लोगों ने ब्रिस्बेन पार्क में मोमबत्तियां जला कर खुद पर हुए आक्रमण को याद किया। बटचुला और गारवा मूलवासी समुदाय की वंशज लियोनी ने इस मौके पर अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- हमारे लिए इस दिन को देश की स्थापना का दिवस मानने या उस पर गर्व करने का कोई कारण नहीं है। इतिहासकारों के मुताबिक 26 जनवरी 1788 को पहली बार सिडनी में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने यूनियन जैक (ब्रिटेन का झंडा) फहराया था। इसके पहले वहां दुनिया के सबसे पुरानी संस्कृति वाले समुदाय के लोग रहते थे। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक यह संस्कृति 65 हजार साल से चली आ रही थी। मूलवासी समुदाय के लोगों में जागरूकता आने के बाद 1936 में उन्होंने 26 जनवरी को शोक दिवस के रूप में मनाया था। मूलवासियों का कहना है कि अंग्रेजों के आने के बाद से वे अधिक गरीब होते गए। साथ ही वे भेदभाव का शिकार रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया में इतिहासकार केट डेरियन-स्मिथ ने सीएनएन से कहा- 26 जनवरी हमेशा से प्रतिरोध दिवस रहा है। कम से कम 20वीं सदी से तो अवश्य ही इसे इस रूप में मनाया जाता रहा है। मुझे ऐसा लगता है कि अब यह भावना और प्रबल हो रही है। ऑस्ट्रेलिया 26 जनवरी को सरकारी तौर पर राष्ट्रीय अवकाश रखा जाता है। लेकिन इस वर्ष संघीय सरकार के साथ-साथ कुछ निजी कंपनियों ने भी कहा था कि जो लोग इस रोज काम करना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं। मेलबर्न में दो वर्ष तक कोरोना महामारी के कारण 26 जनवरी की परेड नहीं हुई थी। इस बार उसका आयोजन किया गया। लेकिन इस बार वहां हुई पार्टियों में वस्त्र, प्लेट, नैपकिन, स्मृति चिह्न आदि जैसे परंपरात सामानों का इस्तेमाल नहीं किया गया। इन चीजों की सप्लाई करने वाली कंपनी केमार्ट के प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा इस मौके पर सबकी भावनाओं का सम्मान करने के उद्देश्य से किया गया। लेकिन इस फैसले से कंजरवेटिव पार्टी के समर्थकों और श्वेत चरमपंथियों के बीच विरोध भाव भड़क उठा है। कई समूहों ने केमार्ट कंपनी के स्टोर्स का बायकॉट करने की मुहिम छेड़ी है। उधर एक सामुदायिक गुट ने फेसबुक पेज पर हैप्पी ऑस्ट्रेलिया डे का संदेश डाला, तो उस पर तीखी बहस शुरू हो गई। कुछ समूहों ने आरोप लगाया कि ये समुदाय मूलवासी समूहों के नरसंहार का उत्सव मना रहा है। पर्यवेक्षकों ने बताया है कि ऑस्ट्रेलिया दिवस इस देश में लगातार तीखे राजनीतिक मतभेद का दिन बनता जा रहा है। इस दिन के बारे में राय लोगों की राजनीतिक विचारधारा से तय होने लगी है। इस वर्ष इस बारे में बहस ज्यादा तीखी रही, क्योंकि जल्द ही ऑस्ट्रेलिया में एक जनमत संग्रह कराया जाने वाला है। उस जनमत संग्रह से यह तय होगा कि आने वाले दशकों में यहां यूरोप से आकर बसे लोगों के मूलवासी लोगों से कैसे रिश्ते रहेंगे।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Jan 28, 2023, 13:56 IST
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