Bihar Chunav 2025: राजद की उम्मीदें फिर पस्त, नहीं जीत पाए भरोसा; मुस्लिम-यादव वोट बैंक से आगे नहीं बढ़ पाए
चुनावों में सिलसिलेवार ढंग से राजद और तेजस्वी यादव की उम्मीदें पस्त हो रही हैं। पिछली बार 2020 में तो तेजस्वी के मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए शेरवानी तक तैयार थी, लेकिन 110 सीटों के साथ विपक्ष बहुमत से दूर रह गया था। इस बार तेजस्वी ने मतगणना वाले दिन शुक्रवार सुबह से ही ढोल पीटना शुरू कर दिया और 18 नवंबर को शपथ ग्रहण का न्योता तक दे डाला, लेकिन कुछ ही घंटों में रुझानों और फिर नतीजों ने न सिर्फ राजद को धराशायी किया, बल्कि तेजस्वी के सपनों को भी तार-तार कर दिया। पार्टी के बुरे प्रदर्शन के पीछे चिराग पासवान की एनडीए में वापसी से लेकर सामाजिक कल्याण पर कमजोर बयान और जंगल राज के दायित्व तक, कई कारण रहे। राजद और विपक्षी गठबंधन अपने सामाजिक समीकरण को मुस्लिम-यादव वोट बैंक से आगे नहीं बढ़ा पाया। जहां यादव हमेशा की तरह राजद का समर्थन करते दिखे, वहीं असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिलों वाले सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम वोटों के बड़े हिस्से में सेंध लगा दी। कांग्रेस की कमजोर कड़ी ने बिगाड़ा खेल राजद 2010 में 22 सीटों से बढ़कर 2015 में 80 सीटों पर पहुंची थी, तो इसकी वजह जदयू के साथ उसका मजबूत सामाजिक गठजोड़ था। इसमें कांग्रेस ने मजबूती से गठबंधन किया था। 2020 में, राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, क्योंकि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) राजग से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ी और जदयू को नुकसान पहुंचाया। जदयू का नुकसान राजद के लिए फायदेमंद साबित हुआ। इस बार जब राजद चुनाव में अपने दम पर उतरी थी, उसके पास कोई बाहरी या अप्रत्यक्ष कारक नहीं थे। पार्टी अपने दम पर थी। राजद की आधार बढ़ाने की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं। कांग्रेस गठबंधन की कमजोर कड़ी बनी रही और सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) व इंडियन इंक्लूसिव पार्टी (आईआईपी) जैसे अन्य सहयोगी भी इसके सामाजिक समीकरण में कोई खास योगदान नहीं दे पाए। नौकरी के झांसे में नहीं फंसे मतदाता तेजस्वी के पास हर परिवार के लिए एक सरकारी नौकरी के वादे के अलावा कोई नया विजन नहीं था, जिसे लोग स्वीकार नहीं कर पाए। उनकी माई बहन मान योजना, जिसमें प्रत्येक महिला को 2,500 रुपये देने का वादा किया गया था, कुछ हद तक संभव लग रही थी, लेकिन एनडीए ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के जरिये इसका डटकर मुकाबला किया। इसमें 1.51 करोड़ भावी महिला उद्यमियों को पहली किस्त में 10,000 रुपये मिले। अब दशहजारी योजना के रूप में प्रसिद्ध, इस दांव ने नीतीश को अपने मुख्य मतदाता वर्ग महिला को एकजुट करने और तेजस्वी के कथानक को धूल चटाने में मदद की। लालूअब धरोहर और बोझ दोनों तेजस्वी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह लालू प्रसाद के बेटे हैं, और उनके पिता के सत्ता में बिताए साल, जिन्हें जंगल राज या अराजकता के वर्षों के रूप में याद किया जाता है, उनके लिए एक बोझ भी हैं। राजद 2015 और 2020 में एक अच्छे सामाजिक गठजोड़ के साथ, या जब एनडीए गठबंधन कमजोर था, जंगल राज के कथानक से पार पाने में सक्षम था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। पार्टी को नया जीवन देने पर गंभीर सोच जरूरी तेजस्वी को अब राजद को पुनर्जीवित करने और पार्टी के मूल आधार को व्यापक बनाने की दिशा में काम करना होगा। इसके लिए, उन्हें अपने मूल मतदाताओं, यादवों पर लगाम लगानी होगी, जो अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के वोटों को आकर्षित करने में बाधा हैं। तेजस्वी के अपने क्षेत्र राघोपुर जैसी जगहों पर यादवों के प्रभुत्व की खबरें राजद को पीछे धकेल रही हैं। इसके अलावा, तेजस्वी को अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को उनकी आबादी के अनुपात में टिकट देकर उन तक पहुंचना होगा। तेजस्वी को बेहतर टीम भी खड़ी करनी होगी। जो वैकल्पिक दृष्टिकोण बना सके और मतदाताओं को प्रभावित कर सके। सहयोगियों के साथ समन्वय भी सुधारना होगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 15, 2025, 02:59 IST
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