चीन, इलेक्ट्रक कारें और स्पाइवेयर: भारी पड़ सकती है ड्रैगन की नाराजगी, लंदन का ट्रैफिक घुटनों पर लाने की ताकत
द इटैलियन जॉब फिल्म की वजह से ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों की रातों की नींद हराम हो चुकी है। इस क्लासिक फिल्म में माइकल केन द्वारा अभिनीत चार्ली क्रोकर के नेतृत्व में लंदनवासियों का एक गिरोह तुरीन की ट्रैफिक लाइटों को नाकाम कर चुराए हुए सोने से लदे एक ट्रक का अपहरण कर लेता है। ट्रैफिक लाइटों के साथ छेड़छाड़ एक तकनीकी विशेषज्ञ द्वारा की जाती है, जिसकी भूमिका बेनी हिल ने निभाई है। वह एक सेंट्रल कंप्यूटर को हैक कर पूरे शहर में ट्रैफिक जाम करवा देता है और क्रोकर का गिरोह सोने से लदे ट्रक को उड़ाने में कामयाब हो जाता है। यह फिल्म 1969 में बनी थी, लेकिन इसकी कथावस्तु का यह पहलू पहले से कई गुना ज्यादा गूंज रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब यातायात व्यवस्था का तकनीकी पक्ष इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी कि खुद गाड़ियां, जो कि आजकल पहिये लगे कंप्यूटरों में तब्दील हो चुकी हैं। सेंसरों और कैमरों से उफनती हुई वायरलेस कनेक्शन द्वारा अपने निर्माताओं के नेटवकों से जुड़ी हुई इलेक्ट्रिक कारें दुनिया की महाशक्तियों द्वारा प्रभुत्व की खातिर विश्वव्यापी युद्ध में नवीनतम मोहरा बन चुकी हैं। चूंकि, ब्रिटेन के कार बाजार में चीन का हिस्सा दस प्रतिशत से अधिक है-और आने वाले वर्षों में और भी बढ़ने वाला है, ब्रिटेन के लिए एक गंभीर समस्या साबित होगा। ज्ञातव्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ के कारण बीजिंग के अमेरिकी बाजार से बाहर होने की आशंकाएं मंडरा रही हैं। ब्रिटेन की बाहरी खुफिया एजेंसी एमआई 6 के पूर्व प्रमुख रिचर्ड डिअलव ने चेतावनी दी है कि चीन एक ही झटके में तकरीबन 400 इलेक्ट्रिक कारों का कनेक्शन काटकर लंदन के ट्रैफिक को घुटनों पर ला सकता है। कल्पना कीजिए कि किसी व्यस्त चौराहे पर एकाएक कई कारें खड़ी हो जाएं, जिन्हें अपनी जगह से इंच भर भी हिला पाना मुमकिन न हो उनका मानना है कि यह कोई डरावनी कहानी नहीं, बल्कि एक वास्तविक आशंका है। चूंकि, ये गाड़ियां इंटरनेट से जुड़ी हुई हैं, उन्हें आसानी से दूर बैठे ही निष्क्रिय किया जा सकता है। इस अवधारणा को यूक्रेन में विस्तार से दर्शाया जा चुका है। रूसी सेनाओं ने मेलित्पोल शहर पर कब्जा कर आधुनिक वाहन चुरा लिए। इन वाहनों की डीलरशिप जॉन डीयर के पास थी। रूसियों ने इन्हें जहाजों में लादकर 700 मील दूर चेचन्या भेजा, लेकिन वे उनका इस्तेमाल नहीं कर पाए, क्योंकि जॉन डीयर ने उन वाहनों को ट्रैक कर उन्हें दूर से ही बंद कर दिया। दुनिया के ज्यादातर लोग मोबाइल फोन में स्पाइवेयर को लेकर चिंतित हैं, तो ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां इस बात से परेशान हैं कि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी) पूरी तरह विशालकाय स्पाइवेयर हैं और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के इशारे पर ईवी को निष्क्रिय कर बंद कर दिए जाने पर ब्रिटेन के शहरों में एक इटैलियन जॉब का खतरा पैदा हो सकता है। ईवी तोड़फोड़, निगरानी, जासूसी, यहां तक कि लक्षित हत्याओं के लिए पूर्ण हथियार है। साइबर सुरक्षा सम्मेलनों में प्रदर्शन किए जाते हैं कि किस तरह इलेक्ट्रिक कारों का नियंत्रण हाथों में लिया जा सकता है। चीनी हैकरों के एक समूह ने तो इस बात पर रिपोर्टभी प्रकाशित की है कि उन्होंने किस तरह से एक टेस्ला कार के सेल्फ ड्राइविंग सॉफ्टवेयर को तोड़कर उसे लेन में यू-टर्न करवा दिया। दूसरे गुट ने बताया कि किस तरह से किसी कार की डिक्की, विंडस्क्रीन के वाइपर और यहां तक कि ब्रेक भी दूर से ही सक्रिय या निष्क्रिय किए जा सकते हैं। ईवी की बैटरी की 50 फीसदी वैश्विक आपूर्ति का नियंत्रण सीएटीएल और बीवायडी नामक, दोनों चीनी कंपनियों के हाथ में है। इनकी नजरें ईवी उद्योगों के वर्चस्व पर केंद्रित हैं, जिनमें चार्जिंग नेटवर्क और ऊर्जा भंडारण व्यवस्थाएं शामिल हैं। दोनों कंपनियों की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से निकटता है और ये सरकार से प्राप्त सब्सिडी से लाभान्वित भी हुई हैं। इससे सुरक्षा खतरा और भी बढ़ जाता है, क्योंकि बिजली के भंडारण और चार्जिंग नेटवर्कों को देश की इलेक्ट्रिकल ग्रिड से जोड़ने की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा, कई ऐसे चीनी कानून हैं, जो सभी कंपनियों को, चाहे वे पूरी तरह सरकारी हों या निजी, राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया जानकारी एकत्रित करने हेतु सहयोग करने के लिए मजबूर करते हैं। ये कंपनियां किसी भी सूरत में सरकार को मना नहीं कर सकतीं। हालांकि, यह तर्क दिया जा सकता है कि चीनी कार कंपनियां ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकतीं, क्योंकि इससे उनके धंधे पर असर पड़ेगा, लेकिन अगर आप यह बात मान लेते हैं, तो आप बहुत मासूम हैं। चीन द्वारा प्रौद्योगिकी का शस्त्रीकरण एक कंपकंपा देने वाला यथार्थ बन चुका है। इस खतरे की गंभीरता का पता ब्रिटेन को तब लगा, जब 2023 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकारी गाड़ी में चीनी टैकिंग डिवाइस पाई गई। वह चीन से आयातित एक पुर्जे में छिपी हुई थी, जिसे निर्माता कंपनी ने फिट किया था। प्रधानमंत्री की कार चीन में तो नहीं ही बनी थी! हाल ही में ब्रितानी प्रतिरक्षा अनुबंधों पर काम कर रही फर्मों ने अपने कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि वे अपने मोबाइल फोनों को चीन द्वारा निर्मित इलेक्ट्रिक कारों से कनेक्ट न करें। उन्हें भय है कि संवेदनशील डाटा बीजिंग न चला जाए। दरअसल, हर प्रतिरक्षा आपूर्तिकर्ता चीन निर्मित कारों की तकनीक के प्रति आशंकित है। ये कारें न सिर्फ आपकी यात्राएं डाउनलोड कर सकती हैं, बल्कि मैसेज, वॉइसमेल व मोबाइल के संवेदनशील दस्तावेज भी निकाल सकती हैं। बताते हैं कि बीएई सिस्टम्स, रोल्स रॉयस, रेथियॉन, लॉकहीड मार्टिन और थेल्स जैसी बड़ी-बड़ी डिफेंस फर्मे भी इनमें शामिल हैं। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने ईवी के संवेदनशील सैन्य क्षेत्रों और प्रशिक्षण कैंपों में घुसने पर कड़ी पाबंदियां लगा दी हैं। सैन्य प्रमुखों का जोर तो इस बात पर भी है कि न सिर्फ चीनी ईवी, बल्कि चीनी पुर्जी वाली कारें भी संवेदनशील भवनों से दो मील की दूरी पर खड़ी की जाएं। अमेरिका और यूरोपीय संघ में ये वाहन कड़ी निगरानी में तो हैं ही, इन्होंने आयात पर काफी लेवी लगा दी है। नतीजतन चीन अब नए बाजार खोज रहा है, जहां वह इन कारों के पहाड़ को खपा संके। उसकी नजर भारत पर भी है, क्योंकि भारत भी आयातित कारों का अच्छा-खासा बाजार है। और चीनी इलेक्ट्रिक कारें सस्ती होती हैं, क्योंकि चीन उनके निर्माण के लिए काफी सब्सिडी देता है तथा जबर्दस्त और जरूरत से ज्यादा उत्पादन को भी प्रोत्साहित करता है। फिलहाल चीन कुछ भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर ईवी के बाजार में अपनी मौजूदगी का एहसास करवा रहा है। चीनी कंपनियां बीवायडी और लीपमोटर भारतीय बाजार में घुसने की तैयारी कर रही हैं। आखिरकार भारत भी इन कारों के निर्माण में लिथियम आयन बैटरियों पर निर्भर है, जिनका एक बड़ा हिस्सा चीन से आता है। अस्तु, हालात चाहे जो हों, लेकिन क्या हमें ब्रिटेन की चिंताओं से सबक सीखने की जरूरत है या नहीं वैसे ही पिछले कुछ वर्षों में चीन भारत को लेकर काफी विवादों में घिरा रहा है। चाहे वह दोकलाम मुद्दा रहा हो या फिर अरुणाचल और सिक्किम को लेकर उसके दावे हों।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 24, 2025, 06:26 IST
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