पर्यावरण: नहीं चेते, तो हालात और गंभीर हो जाएंगे, पंजाब की बाढ़ ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक पैटर्न की ओर इशारा..
देश का आधा हिस्सा असाधारण बारिश के बाद बाढ़ की चपेट में है। पंजाब 1988 के बाद से सबसे भीषण जल प्रलय का सामना कर रहा है। रिकॉर्ड-तोड़ बारिश और असामान्य तापमान ने भारत को झकझोर कर रख दिया है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में केवल 24 घंटों में सामान्य से एक हजार फीसदी से अधिक बारिश हुई। पंजाब में 1988 के बाद से सबसे खराब बाढ़ आई है, जिसमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ और लगातार बारिश के कारण हजारों गांव जलमग्न हो गए। भारत के पंजाब में मानसून का मौसम आम तौर पर जून के अंत से सितंबर तक चलता है और दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं द्वारा संचालित होता है। ऐतिहासिक रूप से, मानसून मध्यम वर्षा लाता है, जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से समुद्र के तापमान में बढ़ोतरी होती है और वायुमंडलीय स्थितियों में बदलाव होता है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते अब हिंद महासागर और अरब सागर, दोनों ही बहुत गर्म हो रहे हैं और इनमें समुद्री हीटवेव पैदा हो रही है। इन सागरों के गर्म होने से अब हवा में नमी की मात्रा बहुत अधिक है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे ने बताया है कि 1951-2015 के दौरान हिंद महासागर की सतह के तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जो वैश्विक औसत से अधिक है। इससे समुद्री सतह से वाष्पीकरण ज्यादा हो रहा है और वायुमंडल में नमी भी अधिक घुल रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अधिक तीव्र और अनियमित होता जा रहा है। इस साल मानसून ने भारत और पाकिस्तान के साझा पंजाब क्षेत्र में भयंकर बाढ़ ला दी है। मानसून के चरम मौसम के दौरान पश्चिमी विक्षोभ आम तौर पर उत्तर की ओर लौट जाते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और उल्टे पश्चिमी विक्षोभ का मानसून से टकराव हो गया। ऐसी अंतर्क्रिया असामान्य है। आईएमडी ने भी पुष्टि की है कि उत्तर भारत और देश के अन्य हिस्सों में लगातार हुई अत्यधिक वर्षा मुख्य रूप से मानसून प्रणाली और पश्चिमी विक्षोभ के टकराव के कारण हुई, जिससे पंजाब, हरियाणा सहित कई उत्तरी राज्यों में बाढ़ आ गई। जेट स्ट्रीम-ऊपरी वायुमंडल में हवा की संकरी, तेज धाराएं, जो पश्चिम से पूर्व की ओर दुनिया भर में चलती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग इन धाराओं को तेजी से लहरदार बना रही है, जिसका अर्थ है कि यह घुमावदार है और एक स्थिर पथ पर नहीं चल रही है। अध्ययनों से पता चला है कि लहरदार जेट स्ट्रीम दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं को जन्म दे रही है, जिसमें भारत भी शामिल है, जहां उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम ने पश्चिमी विक्षोभों को असामान्य रूप से उत्तरी भागों में मोड़ दिया। इस बार के मानसून ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन केवल भविष्य की चुनौती नहीं है, बल्कि हमारे वर्तमान मौसमी पैटर्न को गहराई से प्रभावित कर रहा है। भारी बारिश और बढ़ते तापमान के संयोजन ने देश के विभिन्न हिस्सों को गंभीर चुनौतियों का सामना कराया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते उचित नीतियों और ठोस अनुकूलन रणनीतियों पर काम नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं से स्थिति और गंभीर हो सकती है। अब समय आ गया है कि हम जलवायु परिवर्तन के खतरों को समझें और इससे निपटने के लिए सामूहिक और टिकाऊ कदम उठाएं, ताकि देश के विविध पारिस्थितिकी तंत्र, आजीविका और जनजीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 13, 2025, 04:19 IST
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