भारत एक उम्मीद को जिंदा रखे हुए हैं: पश्चिम की अनदेखी के बावजूद ग्लोबल साउथ की आवाज... इससे उम्मीदें बंधती हैं
वैश्विक समुदाय जलवायु रिकॉर्डों के टूटने की बढ़ती आवृत्ति, तीव्रता और पैमाने को लेकर गंभीर संकट का सामना कर रहा है। औसत वैश्विक तापमान हर दशक में लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। जलवायु संकट से निपटने हेतु वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) करता है। अब तक जलवायु नीति पर जिस सोच का दबदबा रहा है, वह पश्चिमी देशों की है, जो प्रकृति को सिर्फ एक संसाधन या व्यापार की वस्तु मानती है। औद्योगिक क्रांति की इसी बुनियादी सोच ने पश्चिमी देशों में आर्थिक विकास को तो बढ़ाया, लेकिन इसकी कीमत पारिस्थितिकी तंत्र की तबाही, जैव विविधता के नुकसान और जलवायु संकट के रूप में चुकाई है। जलवायु सम्मेलन (कॉप) की बैठकों में यह साफ दिखता है कि विकसित देशों ने न तो वित्तीय सहायता और न ही तकनीकी सहयोग के अपने वादों को पूरा किया है। इसके चलते बातचीत की यह पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद हो गई है। संयुक्त राष्ट्र की एमिशन गैप रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने 2023 में नया रिकॉर्ड बनाया-57.1 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य, जो 2022 की तुलना में 1.3 प्रतिशत अधिक है। इस वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान ऊर्जा क्षेत्र का रहा, जहां जीवाश्म ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग अब भी जारी है। यह तब है, जब वैज्ञानिक प्रमाण पेरिस समझौते में उल्लिखित तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए सीमित समय अवधि की चेतावनी दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव समान नहीं होते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और विकासशील देशों पर पड़ता है। भारत दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील देशों में से एक है। डाउन टू अर्थ रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में, भारत में 322 दिनों में चरम मौसमी घटनाएं हुईं-जैसे बाढ़, सूखा, हीटवेव, बारिश और तापमान में उतार-चढ़ाव और हिमनदों का पिघलना। इनका असर लोगों की आजीविका, स्वास्थ्य, सफाई व्यवस्था, आधारभूत ढांचे, जल और खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था तथा देश के विकास पर पड़ा। जर्मनवॉच संस्था द्वारा प्रकाशित जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में चरम मौसमी घटनाओं के कारण भारत में 80,000 से अधिक लोगों ने जान गंवाई है और देश को लगभग 180 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। इस मामले में प्राचीन भारतीय दर्शन एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो प्रकृति के प्रति श्रद्धा, एकत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाता है। यह दर्शन पृथ्वी को केवल संसाधन नहीं, बल्कि एक जीवंत इकाई (मातृभूमि) के रूप में देखता है। वसुधैव कुटुंबकम का विचार संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानता है। बृहदारण्यक उपनिषद में सर्वात्मभाव की बात होती है, यानी सभी के साथ अपनी पहचान। भगवदगीता सामूहिक पर्यावरण संरक्षण को समुदायों के अस्तित्व के लिए आवश्यक मानती है। यह पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण ही है, जिसे वैश्विक जलवायु और पर्यावरणीय एजेंडा का मार्गदर्शक बनना चाहिए। यद्यपि, भारत ऐतिहासिक रूप से जलवायु संकट का जिम्मेदार नहीं रहा है और उसका प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन भी वैश्विक औसत से काफी कम है, फिर भी वह इस मुद्दे पर बेहद सक्रिय है। भारत ने जलवायु, ऊर्जा व अनुकूलन से जुड़े महत्वाकांक्षी तथा सार्थक लक्ष्य तय किए हैं, जो राष्ट्रीय निर्धारित योगदान और दीर्घकालिक निम्न उत्सर्जन विकास रणनीतियों में भी दर्ज हैं। इन दस्तावेजों में 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य भी दोहराया गया है। यह सोच अनेक कल्याणकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और अभियानों के रूप में सामने आई है। आज भारत दुनिया में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता में चौथे स्थान पर है और सौर ऊर्जा में तीसरे पायदान पर। भारत की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 2014 से जून, 2025 तक 41 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है-यह 2.82 गीगावॉट से बढ़कर 116.25 गीगावॉट तक पहुंच गई है। 2005 से 2020 के बीच, भारत के जीडीपी की एमिशन तीव्रता में 36 फीसदी की कमी आई है। विकास की दृष्टि से, भारत ने 17 करोड़ से अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है और 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में दस लाख से भी अधिक नौकरियां प्रदान की हैं। प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में पिछले 10 वर्षों में 46 फीसदी की वृद्धि हुई है। हाल के समय में, भारत ने स्वच्छ ऊर्जा, नई तकनीक, कार्बन प्राइसिंग, ऊर्जा संक्रमण, हरित इमारतों के नियम, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, ऊर्जा की बचत और भंडारण, हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में काफी निवेश किया है। इसका मकसद है आत्मनिर्भरता बढ़ाना और पर्यावरण से जुड़ी नौकरियां पैदा करना। जलवायु वार्ताओं (कॉप) में भारत ने विकसित देशों से मांग की है कि वे गरीब और विकासशील देशों को वित्तीय मदद, तकनीक और क्षमता निर्माण में सहयोग करें। भारत ने यह भी कहा है कि विकसित देशों को विकासशील देशों में एनर्जी ट्रांजिशन, डीकार्बनाइजेशन, क्लाइमेट अनुकूलन को संभव बनाना चाहिए। इस तरह भारत ग्लोबल साउथ की ओर से एक अहम आवाज बनकर सामने आया है। अपने राष्ट्रीय कार्यक्रमों जैसे स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना आदि की सफलता से प्रेरित होकर भारत ने कॉप 26 में मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) शुरू किया। इसके जरिये भारत ने दुनिया से अपील की कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली अपनाएं, जो भारत की पारंपरिक सोच से मेल खाती है। भारत ने कई देशों के साथ मिलकर जलवायु संरक्षण के उपायों को आगे बढ़ाया है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस, वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड, कोएलिशन ऑफ डिजास्टर रिस्क रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर, लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांजिशन जैसी पहलों के जरिये भारत ने ऐसे मंचों का नेतृत्व किया है, जो ज्ञान, सर्वोत्तम प्रथाओं, ठोस अनुभवों और सहयोग के आदान-प्रदान को संभव बनाते हैं, जिससे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलती है। भारत ने जलवायु और ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अन्य वैश्विक मंचों पर भी मजबूती से उठाया है। लिहाजा, जब दुनिया जलवायु संकट की आग में झुलस रही है, जब हर देश समाधान की तलाश में है, तब भारत एक उम्मीद बनकर उभरा है। (साथ में डॉ. विजेता रत्तानी)
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 04, 2025, 06:34 IST
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