17 साल बाद आया फैसला: ट्रेन से कूदे बंदी की मौत के मामले में सिपाही बरी, पुलिस लापरवाही नहीं कर पाई साबित
सहारनपुर कोर्ट से पेशी के बाद नैनी सेंट्रल जेल ले जाए जा रहे बंदी की ट्रेन से कूदने पर मौत के मामले में आरोपी सिपाही मुख्य आरोपी मिश्रीलाल को बरी कर दिया गया है। जीआरपी मेंं दर्ज 17 वर्ष पुराने इस मुकदमे में अदालत में पुलिस यह साबित नहीं कर सकी कि सिपाही की लापरवाही से घटना हुई। इसी आधार पर सीजेएम न्यायालय ने निर्णय सुनाया है। ये घटना 31 मार्च 2008 की रात की है। जीआरपी अलीगढ़ थाने में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पुलिस लाइन में तैनात मुख्य आरक्षी मिश्री लाल व सिपाही सीताराम 30 मार्च की शाम नैनी सेंट्रल जेल से सहारनपुर पुरानी कोतवाली क्षेत्र के मानक मऊ के बंदी मरगूब को सहारनपुर कोर्ट में पेशी के लिए लेकर चले। जिसकी 31 मार्च को कोर्ट में पेशी के बाद वापस गाजियाबाद होते हुए स्वतंत्र सेनानी ट्रेन में लेकर इलाहबाद के लिए चले। मरगूब ने कंबल ओढ़ रखी थी। ट्रेन रात करीब 11:30 बजे अलीगढ़ से कुछ किमी आगे चली, तभी अचानक मरगूब हथकड़ी की रस्सी काटकर चलती ट्रेन से कूद गया। उसने कंबल के अंदर ही ब्लेड से रस्सी काटी थी। ट्रेन के कानपुर पहुंचने पर वह वहां से उतरकर वापस अलीगढ़ आए। फिर सहारनपुर से लेकर इलाहाबाद तक उसकी खोज होती रही। मगर अगली सुबह मरगूब का शव हाथरस जंक्शन क्षेत्र में गंगोली फाटक के पास पड़ा मिला। पुलिस जांच व पोस्टमार्टम में उजागर हुआ कि उसकी ट्रेन से गिरकर चोट आने से मृत्यु हुई। चूंकि जीआरपी अलीगढ़ उसे खोज रही थी। इसलिए हाथरस पुलिस की सूचना पर शव की पहचान मरगूब के रूप में हुई। खबर पर परिजन भी आ गए। बाद में लापरवाही व दुर्घटना में बंदी की मृत्यु की रिपोर्ट जीआरपी में दोनों सिपाहियों पर लिखी गई। चार्जशीट के आधार पर सीजेएम न्यायालय में इसका ट्रायल हुआ। इस बीच आरोपी सिपाही सीताराम की मृत्यु हो गई। ट्रायल में कुल सात गवाह पेश किए गए। मगर न्यायालय में कोई चश्मदीद गवाह पेश नहीं किया गया। वहीं पुलिस गवाही, रेलवे की रिपोर्ट व पोस्टमार्टम में पुलिस अभिरक्षा में लापरवाही से मृत्यु साबित नहीं हो सकी। घटना को आकस्मिक माना गया। इसके आधार पर अब न्यायालय ने मिश्रीलाल को बरी कर दिया।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 24, 2025, 17:32 IST
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