SC: संविधान के शब्दों और उनकी व्याख्या पूरी तरह स्वदेशी, राष्ट्रपति संदर्भ मामले में शीर्ष कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही संविधान में लिखे गए शब्द (विभिन्न देशों के) तुलनात्मक नजरिये से प्रेरित हों, लेकिन इनके अर्थ और कार्य पूरी तरह स्वदेशी हैं। राष्ट्रपति की ओर से मांगे गए रेफरेंस पर अपनी राय देते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा, ब्रिटेन के अलिखित संविधान के उलट हमारा संविधान लिखा हुआ है। सीजेआई जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की पीठ ने कहा, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के सख्त बंटवारे की वजह से अमेरिकी संविधान का अनुभव बहुत अलग है जिसके लिए राष्ट्रपति के वीटो की जरूरत होती है। पीठ ने कहा, हम जो बात कहना चाह रहे हैं वह यह है कि भारतीय संविधान सिर्फ अपने अपनाने में ही बदलाव लाने वाला नहीं है, यह अपने इस्तेमाल और मतलब में भी बदलाव लाने वाला रहा है और आगे भी रहेगा। एक जीवंत और विकसित हो रही स्वदेशी नींव के लिए यह अपनी औपनिवेशिक निशानियों को पीछे छोड़ रहा है। विधानसभा से दोबारा पारित हुए विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए रिजर्व कर सकते हैं राज्यपाल पीठ ने कहा, विधानसभा यदि किसी विधेयक को बदले हुए या बिना बदले दूसरी बार पारित कर राज्यपाल को भेजती है तो राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए दूसरी बार भी रिजर्व कर सकते हैं। संविधान पीठ ने कहा, अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान के तहत, राज्यपाल के पास पहली बार में तीन विकल्प होते हैं, विधेयक को मंजूरी देना, राष्ट्रपति के विचार के लिए रिजर्व करना, या बिल को रोककर राज्य विधानसभा के दोबारा विचार के लिए मैसेज के साथ वापस करना। इसमें कहा गया, पहले प्रावधान को इस तरह नहीं पढ़ा जा सकता कि राज्यपाल के पास विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए रिजर्व करने का विकल्प भी हो। इसलिए, जब विधेयक राज्यपाल को वापस भेजा जाता है, तो उनके पास अब भी दो विकल्प बचते हैं-या तो अपनी मंजूरी दें, या इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए रेफर करें। राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक रिजर्व करने में मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे नहीं है राज्यपाल पीठ ने कहा, राज्य विधानसभा से पास किए गए विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने या अपनी टिप्पणियों के साथ उसे विधानसभा को वापस भेजने के लिए अनुच्छेद 200 के तहत विकल्प का इस्तेमाल करते समय राज्यपाल के पास अपनी मर्जी का अधिकार है। इस मामले में वह मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे नहीं हैं। हालांकि संविधान पीठ ने एकमत फैसले में कहा कि गवर्नर के पास बिल को सीधे रोकने का कोई विकल्प नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 33 विधेयकों के मंजूरी के लिए लंबित होने के आधार पर वह राज्यपाल और राष्ट्रपति पर इसके लिए समय सीमा तय नहीं कर सकता। इन 33 बिलों में अधिकांश तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 21, 2025, 03:30 IST
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