लजीज जायका: यूनेस्को के रचनात्मक शहरों में शामिल हुआ लखनऊ, नवाबों के शहर को पाक कला विरासत के लिए सम्मान
लजीज जायके व मेहमानवाजी से घरेलू और विदेशी मेहमानों के दिलों पर छाप छोड़ने वाले नवाबों के शहर लखनऊ को यूनेस्को के रचनात्मक शहरों की सूची में शामिल किया गया है। पाक कला विरासत के लिए मिले इस सम्मान को पीएम नरेंद्र मोदी ने बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने दुनियाभर के लोगों से लखनऊ घूमने आने और जायके की विरासत को जानने का न्योता दिया। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने लखनऊ समेत 58 नए शहरों को यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) में शामिल करने की घोषणा की। यूसीसीएन में अब 100 देशों के 408 शहर शामिल हैं। अजोले ने कहा, लखनऊ को पाक कला श्रेणी में यूनेस्को क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी सम्मान दिया गया है। यह सम्मान उस शहर को मिलता है, जो खानपान परंपरा, सांस्कृतिक विविधता से विश्व को प्रेरित करता है। यह घोषणा उज्बेकिस्तान के समरकंद में यूनेस्को के 43वें महासम्मेलन में की गई। लखनवी स्वाद ही कुछ ऐसा.मन ललचाए, रहा न जाए अपनी तहजीब, नजाकत, नफासत और पहनावे के साथ ही लखनऊ अब अपने लजीज़ खाने की बदौलत भी दुनिया में एक नई पहचान बना चुका है। यूनेस्को ने लखनऊ को क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी घोषित किया है। यह सम्मान उन शहरों को दिया जाता है जो अपनी प्राचीन कला, खाद्य संस्कृति और विरासत के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं। लखनऊ के खाने का जिक्र आते ही ज़ुबान पर कवाब, बिरयानी, निहारी, चाट, कुल्फी, कचौड़ी, रेवड़ी और मक्खन मलाई का स्वाद ताजा हो उठता है। यहां आने वाला कोई भी मेहमान टुंडे के कवाब चखे बिना नहीं जाता। 1905 में हाजी मुराद अली द्वारा स्थापित यह दुकान आज भी लखनवी स्वाद का प्रतीक बनी हुई है। चौक से लेकर अमीनाबाद तक रूमाली रोटी की अपनी अलग पहचान है। 1925 में शुरू हुई रहीम की कुलचा-निहारी की दुकान आज भी वही पुराना जायका पेश कर रही है। वहीं, इदरीस और वाहिद की बिरयानी पूरे देश में मशहूर है। शीरमाल, रत्ती लाल के खस्ते और प्रकाश की कुल्फी तो लखनवी खानपान की पहचान बन चुके हैं। जैन चाट, हजरतगंज की बास्केट चाट, शर्मा की चाय और सेवक राम की पूड़ी के दीवाने दूर-दूर तक हैं। चौक की मक्खन मलाई, छोले-भटूरे, इमरती और रेवड़ियां भी बेहद लोकप्रिय हैं। राजा की ठंडाई की दुकान 145 साल पुरानी है, जिसकी लज्जत आज भी बरकरार है। चौक की अली हुसैन शीरमाल की दुकान इतनी प्रसिद्ध हुई कि गली का नाम ही शीरमाल गली पड़ गया। नवाबों के शहर में पान के शौकीन भी कम नहीं। अजहर पान भंडार और राधेलाल मिष्ठान भंडार आज भी स्वाद के केंद्र बने हुए हैं। मुगलई, ईरानी और अवधी रसोई का अद्भुत संगम इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि लखनऊ की रसोई मुगलई, ईरानी और अवधी खानपान का अनोखा मिश्रण है। 1708 में ईरान से आए सआदत खां हुरानुल मुल्क ने यहां के व्यंजनों में ईरानी मसालों का रंग घोल दिया, जिससे लखनवी स्वाद में शियाओं की पाक परंपरा की झलक मिलती है। 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद जब अंग्रेजों ने अवध पर नियंत्रण पाया, तब नवाबों ने अपना अधिकतर समय कला, साहित्य और पाक-कला में लगाना शुरू कर दिया। रवि भट्ट के अनुसार, नवाबों के दांत कमजोर होते थे, इसलिए उनके लिए गलौटी कवाब जैसे नर्म व्यंजन बनाए गए। सैनिकों के लिए जहां तेज मसाले वाला मुगलई खाना तैयार होता था, जबकि बाकी लोगों के लिए हल्के, प्राकृतिक मसालों का प्रयोग किया जाता था। यही परंपरा आज भी जीवित है। दूध-मलाई से मुलायम बनती है इदरीस बिरयानी इदरीस बिरयानी के मालिक अबु बकर बताते हैं, “मेरे वालिद इदरीस साहब ने 1968 में यह दुकान खोली थी। ऊपर वाले की मेहर और उनके हाथ के हुनर से ही यह स्वाद पीढ़ियों तक चला आ रहा है।” वह बताते हैं कि इदरीस बिरयानी की खासियत है कि हम पुलाव में दूध-मलाई का इस्तेमाल करते हैं, जिससे चावल मुलायम और सुगंधित रहते हैं। मटन कोरमा, शीरमाल और ड्राई फ्रूट्स इस्टू हमारे यहां की शान हैं। हाल ही में फिल्मकार अनुराग कश्यप अपनी फिल्म निशानची की शूटिंग के दौरान यहां पहुंचे थे। इससे पहले अमेरिका के राजदूत, कई फिल्म स्टार्स और देश-विदेश की जानी-मानी हस्तियां भी यहां आ चुके हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 02, 2025, 04:02 IST
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