संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट: रहने लायक नहीं रहे शहर… जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की रोकथाम समय की मांग
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों व शहरों में निवास करने लगेगी। वर्ष 2001 तक भारत की आबादी का 27.81 फीसदी हिस्सा शहरों में रहता था। वर्ष 2011 तक यह 31.16 फीसदी और वर्ष 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर33.6 फीसदी हो गया। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 53 ऐसे शहर हैं, जिनकीआबादी 10 लाख से अधिक है। विकास के तेज रथ पर सवार भारत के बड़े-बड़े शहर कभी प्रदूषण के गैस चैंबर बन जाते हैं, तोकभी बाढ़ में डूब जाते हैं। मिसाल के तौर पर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में गिरावट की चिंताजनक दर यातायात की भीड़, व्यापक निर्माण से धूल औरऔद्योगिक प्रदूषण के कारण होती है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है। भीषण गर्मियों केदौरान कूलिंग के लिए बिजली की बढ़ी मांग, भूजल के गिरते जल स्तर और पानी की कमी से इनशहरों की आबादी विकास की चमक-दमक के बावजूद त्राहि-त्राहि करने लगती है। चाहेराजधानी दिल्ली हो या फिर भारत की मिलेनियम सिटी के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा गुरुग्राम या फिर भारत की व्यापार नगरी मुंबई। दरअसल, भारत के अधिकांश शहर दिन दूनीरात चौगुनी गति से बढ़ती जनसंख्या, ट्रैफिक जाम, पीने योग्य पानी की कमी और लगातार बढ़ते जहरीले लैंडफिल के कचरे, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, पर्यावरणीय गिरावट और वायु प्रदूषण जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और यह रहने लायक नहीं बचे हैं। जहां एक तरफउत्तर भारत के सभी नगरों समेत दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में हर साल जाड़े का मौसमआते ही लोग वायु प्रदूषण से बेहाल, दम घोंटू हालात का सामना करने पर मजबूर नजर आते हैं।वहीं बंगलूरू और चेन्नई में, गर्मियों के दौरान पानी की कमी और इसके विपरीत, मानसून केदौरान बाढ़ से सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। पिछले दो दशकों में बंगलूरू एवं पुणे,बेहतर मौसम, अच्छे रोजगार के अवसर, हरियाली और व्यवस्था के चलते आकर्षण का केंद्र व सबसेज्यादा इन डिमांड रहे। महानगरीय संस्कृति, सुरक्षित माहौल, और काफी मजबूत रोजगारव्यवस्था ने इन्हें प्रिय बना दिया। लेकिन, आज इसी बंगलूरू शहर को प्रतिदिन 50 करोड़लीटर पीने के पानी की कमी हो रही है, जो कि शहर की कुल जरूरत का पांचवां हिस्सा है। वैश्विक यातायात भीड़ सूचकांक 2023 में बंगलूरू को भारत का सबसे भीड़-भाड़ वाला शहरघोषित किया गया था। गर्मी के मौसम में बेतहाशा गर्म तापमान के साथ ही, यहां बार-बार बाढ़ आने से जीवन हर साल अस्त-व्यस्त होता है। कमोबेश यही हाल पुणे का भी है। इस सालगर्मी के मौसम में, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पुणे में दिन का तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। हाल ही में इस साल, पुणे में भयानक बाढ़ आई थी, जब शहर के कई हिस्से जलमग्न हो गए थे। बंगलूरू शहर सिंगापुर से सबक सीख सकता है, जो 1980 के दशक मेंपानी की गंभीर कमी से परेशान था। इसने वर्षा जल को एकत्र करने और उसका पुन: उपयोग करने और अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण करने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण किया। दिल्लीइस मामले में बीजिंग और सियोल से भी सबक ले सकती है। साथ ही क्लाइमेट रेजिलिएंट सिटीजयानी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की रोकथाम से लैस शहर अब आज की दुनिया की जरूरत बन चुके हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 21, 2024, 06:12 IST
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