Panchkula News: अधिकारी के बरी होने पर विभागीय दंड पर पुनर्विचार करना डीजीपी का अधिकार

चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक अधिकारी से जुड़े करीब 30 साल पुराने विवाद पर स्पष्ट कर दिया कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अपने ही आदेशों की समीक्षा नहीं कर सकते लेकिन आपराधिक मामले में बरी होने पर विभागीय दंड पर पुनर्विचार करना उनका अधिकार और कर्तव्य है।फरवरी 1995 में हरियाणा पुलिस के रोहतक निवासी एक अधिकारी पर चोरी के तहत मामला दर्ज हुआ था। विभागीय कार्रवाई के बाद 1996 में उन्हें सजा दी गई और छह वेतन वृद्धियां स्थायी रूप से काट दी गईं। इसके बाद अदालत ने अधिकारी को आपराधिक मामले से बरी कर दिया। इस पर उन्होंने विभागीय दंड के मामले को लेकर पुलिस महानिदेशक के समक्ष अपील दायर की। तत्कालीन डीजीपी ने तीन जनवरी 2002 को विभागीय दंड को माफ कर दिया था। लेकिन पांच सितंबर 2006 को नए डीजीपी ने यह फैसला पलटते हुए दंड को फिर से बहाल कर दिया। यहां से लंबा विवाद शुरू हुआ, जो अब जाकर खत्म हुआ। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस जगमोहन बंसल की खंडपीठ ने कहा कि पंजाब पुलिस नियमावली अधिकारियों को यह जिम्मेदारी देती है कि यदि कोई कर्मचारी आपराधिक मामले से बरी होता है तो उसकी विभागीय सजा पर पुनर्विचार करना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने कहा कि बरी होने के बाद भी विभागीय दंड बरकरार रह सकता है पर यह नहीं कहा जा सकता कि अधिकारी के पास पुनर्विचार का अधिकार ही नहीं है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 02, 2025, 21:43 IST
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