टैरिफ वार से दम तोड़ता डब्ल्यूटीओ, सहयोग और पारदर्शी नियमों के जरिये बनानी होगी स्थिर वैश्विक व्यापार व्यवस्था
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक नेताओं ने आपसी अंतरराष्ट्रीय संबंधों द्वारा एक ऐसे भविष्य की कल्पना की थी, जिसमें समान शर्तों पर व्यापार करना शामिल था। इसके लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की स्थापना की गई, जो वैश्विक व्यापार को सुगम बनाने, व्यापार विवादों को हल करने और व्यापार नीतियों को नियंत्रित करने के लिए कार्य करता है। डब्ल्यूटीओ के समझौतों के प्रावधान विकासशील देशों को विशेष अधिकार देते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश कुछ उद्योगों में ऊंचे टैरिफ रख सकते हैं, जिसके बदले में विकसित देशों को बौद्धिक संपदा अधिकार, सेवा व्यापार उदारीकरण और कृषि नियमों में रियायतें दी गई हैं, जो अमीर देशों के लिए अधिक फायदेमंद रही हैं। वर्तमान में अमेरिका ने राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों में राष्ट्रवादी हितों को प्राथमिकता देते हुए अतिरिक्त आयात शुल्क (टैरिफ) लगाकर टैरिफ वार की नई शुरुआत कर दी है, जिससे भू-राजनीतिक तापमान बढ़ने लगा है। अमेरिका ने भारत से आयातित वस्तुओं पर भी पारस्परिक शुल्क लगाने की घोषणा की है, जो 2 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगा। अतिरिक्त टैरिफ लगाने के प्रभावों को पिछले अनुभवों के आधार पर अच्छी तरह से समझा जा सकता है। 2018-2019 में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले शासन काल, 2018-19 में चीन से आयातित वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगा दिया था। बदले में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया था। चीन ने इसकी शिकायत डब्ल्यूटीओ में की। इस प्रकार के व्यापार विवादों को सुलझाने के लिए डब्ल्यूटीओ की एक अपील प्रक्रिया होती थी, जिसमें जज अपना फैसला सुनाते थे। अमेरिका ने इन जजों की नियुक्ति पर ही रोक लगाकर विवाद निपटाने की प्रणाली को ही पंगु बना दिया था, जिसके परिणामस्वरूप पहले जितने वैश्विक व्यापार विवाद डब्ल्यूटीओ के जरिये हल होते थे, उनकी संख्या अब तीन गुना घट गई है। डब्ल्यूटीओ का प्रभावी अस्तित्व न रहने से टैरिफ का हानिकारक चक्र, टैरिफ वार के रूप में उभरता जा रहा है। टैरिफ वार की इस स्थिति में दोनों देशों का व्यापार महंगा हो जाएगा और उपभोक्ताओं को मिलने वाली चीजें महंगी हो जाएंगी। इसका नुकसान अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी उठाना पड़ेगा। आज ट्रंप भले ही यह समझ रहे हों कि डब्ल्यूटीओ के पंख काट दिए गए हैं, और खुद के लाभ के लिए वह एक तरफा फैसले ले रहे हैं। द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को बढ़ावा मिलने से ताकतवर देश छोटे देशों पर दबाव बनाएंगे। अमेरिका की टैरिफ की जिद का विस्तार होता है, तो सभी प्रभावित देश मिलकर एक निष्पक्ष और मजबूत व्यापार प्रणाली बनाने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। व्यापार के लिए हमेशा स्पष्ट और निष्पक्ष नियमों की आवश्यकता होती है, जिससे देश एक-दूसरे के साथ सही तरीके से व्यापार कर सकें। ट्रंप को यह समझना होगा कि उनके कदम न सिर्फ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर अमेरिका की विश्वसनीयता भी कम होगी। बढ़ते राजनीतिक तनावों एवं आर्थिक असमानताओं को देखते हुए डब्ल्यूटीओ जैसी संस्था की अधिक आवश्यकता महसूस की जा रही है। वैश्विक व्यापारिक संतुलन एवं धुव्रीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए डब्ल्यूटीओ को पुनर्जीवित करने की दिशा में कार्य करना होगा। आपसी सहयोग और पारदर्शी व्यापार नियमों के माध्यम से ही एक स्थिर और न्यायसंगत वैश्विक व्यापार व्यवस्था बनाई जा सकती है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Mar 29, 2025, 06:57 IST
टैरिफ वार से दम तोड़ता डब्ल्यूटीओ, सहयोग और पारदर्शी नियमों के जरिये बनानी होगी स्थिर वैश्विक व्यापार व्यवस्था #Opinion #National #SubahSamachar