संबंधों की दिशा: सीमा पर शांति व विश्वास को कायम करने की चुनौती, भारत में सतर्क रहना जरूरी
ऐसे समय में जब अमेरिका की टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में हलचल मचाई हुई है और दूसरे शीतयुद्ध की आशंकाओं के बीच अंतरराष्ट्रीय राजनीति खेमों में बंटी दिख रही है, तब ऐसे माहौल में चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों की दिशा को समझने का अवसर तो देता ही है, साथ ही यह वैश्विक भू-राजनीति के बदलते समीकरणों को भी दर्शाता है। दरअसल, सीमा विवादों, पाकिस्तान की स्थिति और एशिया में सर्वोच्चता को लेकर दोनों देशों में चल रही प्रतिस्पर्धा के बावजूद अमेरिकी टैरिफ ने भारत और चीन, दोनों पर अपने रिश्तों को व्यावहारिक ढंग से पुनर्संयोजित करने के लिए दबाव बनाया है। अगर दोनों देश नजदीक आते हैं, तो चीन को भारत के विशाल बाजार का फायदा उठाने का मौका मिलेगा, वहीं भारत को दुर्लभ खनिजों तक आसान पहुंच मिलेगी, जिनके लिए फिलहाल वह ज्यादातर आयात पर ही निर्भर है। सीमा विवाद और गलवान की कड़वी स्मृतियों को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन रूस-भारत-चीन त्रिकोण अमेरिका के खिलाफ एक ध्रुव बन सके, इसके लिए जरूरी है कि भारत और चीन के संबंधों में नरमी आए। वर्तमान वैश्विक हालात में यह तय है कि चीन को भी भारत की जरूरत है। इसकी पुष्टि चीनी विदेश मंत्री की भारत की ताजा यात्रा से भी होती है, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक बयानों में सख्ती से परहेज किया और सहयोग की भाषा अपनाई। दूसरी ओर, भारत ने सीमा पर शांति बनाए रखने और सीमा विवाद के निष्पक्ष और परस्पर स्वीकार्य समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई। उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के रिश्ते दशकों से कुछ पेचीदा ही रहे हैं। हालांकि, पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी की कजान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद से रिश्तों में कुछ नरमी आनी शुरू हुई। यह तथ्य है कि चीन भारत के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में है, लेकिन चीन के साथ अब तक का अनुभव बताता है कि उस पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकते। यही वजह है कि चीन के विदेश मंत्री की यात्रा का नई दिल्ली ने स्वागत तो किया, लेकिन इसे संबंधों में किसी बड़े मोड़ के रूप में पेश करने से परहेज ही किया। इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में शामिल होने का चीन का आमंत्रण प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्वीकार किया जाना द्विपक्षीय संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, लेकिन अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को बीजिंग और वाशिंगटन के बीच संतुलित करने की चुनौती भारत के सामने निश्चित ही होगी।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 21, 2025, 06:33 IST
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