चर्चा : भारत, भाग्य और इसके विधाता; एक किताब जिसमें है इतिहास की गवाही के साथ भविष्य के प्रति आशा

मैंने 22 अप्रैल, 2020 को ट्विटर पर (अब एक्स) एक पोस्ट किया था, जिसमें लोक सेवक, राजनयिक, लेखक और विद्वान गोपालकृष्ण गांधी को उनके 75वें जन्मदिन पर याद किया था। इस पोस्ट में मैंने देश के लिए उनके योगदान, चरित्र की गरिमा और उनसे अपने रिश्ते के बारे में लिखा था। मैंने तब लिखा था, “गोपाल गांधी ने मुझे आधुनिक भारतीय इतिहास और महात्मा गांधी के बारे में किसी और से ज्यादा सिखाया है।” पांच साल बाद 80वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर गोपाल गांधी ने मेरे साथ कई आैर साथियों को भारतीय गणतंत्र की प्रगति पर एक शानदार किताब भेंट की है। इस किताब में उन्होंने जिन बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण दिया है, वह भारत के बारे में उनकी गहरी समझ पर आधारित है। इसमें बताए गए घटनाक्रम पहले कभी न देखी गई उन तस्वीरों की एक शृंखला से समृद्ध हैं, जो लेखक और देश की उथल-पुथल भरी यात्रा के प्रमुख पात्रों और घटनाओं से जुड़े हैं। इनमें हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली या तमिल में बनी फिल्मों के कई संदर्भ भी शामिल हैं। साहित्य और सार्वजनिक सेवा के साथ सिनेमा ने भी गोपाल गांधी के जीवन को बहुत प्रभावित किया है। अनडाइंग लाइट : ए पर्सनल हिस्ट्री ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया शीर्षक वाली यह पुस्तक स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों के जीवंत विवरण से शुरू होती है, जिसमें महात्मा गांधी के अंतिम उपवास और उनकी मृत्यु, नेहरू-पटेल के बीच मतभेद और उनके बीच सुलह का वर्णन भी है। इसके बाद बात सिलसिलेवार तरीके से आगे बढ़ती है। देश की आजादी और विभाजन से ठीक पहले जन्मे और गणतंत्र के साथ बड़े हुए गोपाल गांधी पर माता-पिता का प्रभाव उनके भाई-बहनों- तारा, राजमोहन और रामचंद्र जैसा ही रहा। इस किताब में सैकड़ों अन्य दिलचस्प और प्रभावशाली व्यक्तियों का उल्लेख है, जिनमें प्रसिद्ध और विवादास्पद प्रधानमंत्रियों से लेकर गुमनाम रहे शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता तक शामिल हैं। पुस्तक में एक केंद्रीय पात्र लेखक के नाना सी राजगोपालाचारी राजाजी हैं, जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे और जिन्होंने स्वतंत्र भारत में एक उच्च पद संभाला था। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रिय पार्टी कांग्रेस को छोड़कर स्वतंत्र नामक विपक्षी पार्टी बनाई, जिसने अर्थव्यवस्था को राज्य के बंधनों से मुक्त करने की जोरदार वकालत की। गोपाल गांधी राजाजी को अपने जीवन पर सबसे गहरा प्रभाव डालने वाला व्यक्ति बताते हैं। राजाजी से उन्हें एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण संविधान, समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित एक लोकतांत्रिक गणराज्य और एक ऐसे राज्य का विचार मिला, जो प्रजा की स्वतंत्रता को सबसे अधिक महत्व देता है। मशहूर शास्त्रीय संगीत गायिका एमएस सुब्बुलक्ष्मी की चर्चा भी उन्होंने कई बार की है। एमएस सुब्बुलक्ष्मी के संगीत और व्यक्तित्व का गोपाल गांधी पर स्थायी प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने ऊपर समाजवादी और सामाजिक कार्यकर्ता जयप्रकाश नारायण के प्रभाव को भी स्वीकार किया है। वह उनकी ईमानदारी और शांत वाकपटुता के लिए तब के युवा गोपाल के भीतर बड़ा आधार था। इससे भी बढ़कर उनकी बेहतरीन अंग्रेजी से वह बहुत प्रभावित थे। एक बार प्रशंसक के निमंत्रण पर जयप्रकाश नारायण भारत-चीन संघर्ष को लेकर दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज में व्याख्यान देने आए। व्याख्यान के पहले हिस्से में उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद का मतलब था- उपनिवेशवाद से मुक्ति, आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास की पुनः प्राप्ति और अहिंसक अवज्ञा को इसका साधन बनाना। इसके दूसरे हिस्से में उन्होंने बताया कि राष्ट्रवाद का मतलब अब असहिष्णुता के साथ तलवारें लहराना, पड़ोसियों को धमकाने वाली कट्टरतावादिता है। बीते दिनों के इस तरह के स्मरण में 1960 के दशक में भारत सरकार द्वारा आधिकारिक उपयोग से अंग्रेजी को खत्म करने के प्रयासों का विवरण है। गोपाल गांधी लिखते हैं, “मैं बुरी तरह से उलझन में था। मुझे हिंदी से प्यार था। इसके साम्राज्यवादी दिखावे से नफरत थी और इस विषय पर राजाजी की मजबूत स्थिति से प्रभावित होकर जल्द ही प्रस्तावित कदम का पूरी तरह से विरोध करने लगा।” ग्रामीण तंजावुर में एक आईएएस अधिकारी के रूप में गोपाल गांधी की पहली पोस्टिंग पर किए गए काम का एक बेहतरीन उदाहरण मिलता है, जहां उन्होंने एक सीरियाई ईसाई, एक तमिल जैन और एक मुस्लिम के साथ काम किया। वह अपने उच्च पदों, चाहे वह राष्ट्रपति के सचिव के रूप में हो या फिर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में, उसके बारे में गहरी अंतर्दृष्टि के साथ लिखते हैं। साथ ही तीन महाद्वीपों के चार देशों में पांच अलग-अलग पदों पर रहकर देश का प्रतिनिधित्व करने के अनुभवों के बारे में भी बताते हैं। दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका की राजनीति के बारे में उनके विवरण विशेष रूप से मूल्यवान हैं। अनडाइंग लाइट : ए पर्सनल हिस्ट्री ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया किताब में कई मार्मिक कहानियां हैं। इनमें से एक कहानी राजाजी और उनकी बेटी नामगिरी की हैदराबाद यात्रा से जुड़ी है, जब वह विद्रोही सामंती राज्य अंततः भारतीय संघ का हिस्सा बन गया था। निजाम ने गवर्नर जनरल की बेटी को हीरा जड़ित हार उपहार के तौर पर दिया था। राजाजी ने उसे यह कहते हुए वापस कर दिया था कि एक विधवा के लिए इस तरह का उपहार सही नहीं है। वहीं नामगिरी ने पिता से कहा, “उन्हें तो यह कहना चाहिए कि हम गांधी जी के शिष्य हैं और इतनी महंगी चीजें नहीं रख सकते हैं।” गोपाल गांधी अपने परिवार की विशेषाधिकार वाली पृष्ठभूमि से भली-भांति परिचित थे। इसने कभी उनकी मदद की तो कभी बाधा भी उत्पन्न की। इनका परिवार हरिजन सेवा के प्रभामंडल में था, जबकि इनके दोस्तों में कोई भी दलित नहीं था। वे मुस्लिम, ईसाई और सिख थे। लेखक की बुद्धिमत्ता भी कुछ ऐतिहासिक निर्णयों में सामने आई है। यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं- आज अगर नेहरू, पटेल और आंबेडकर होते तो वे आश्चर्यचकित और चिंतित होते कि देश किस तरह से उनके विचारों का अध्ययन किए बिना ही उन्हें आगे बढ़ा रहा है। नेहरू के भारत से इंदिरा के भारत में परिवर्तन, गंभीर प्रयास के युग से बेचैनी से काम करने के युग की ओर बदलाव था। एक व्यक्ति नेहरू को भारत की सेवा के लिए नियुक्त किया गया और फिर एक व्यक्ति इंदिरा की सेवा में भारत को शरीक हो गया। (प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का कार्यकाल पर) वे पुरानी नाव एसएस इंडिया के नए कप्तान नहीं थे, बल्कि नई नाव एसएस भारत में नए कर्णधार थे। पुरानी नाव को भाप के दो जेटों लोकतांत्रिक गणतंत्रवाद और धर्मनिरपेक्षता द्वारा चलाया जा रहा था, जबकि नई नाव को बहुसंख्यक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व द्वारा संचालित किया गया था। इस किताब को पढ़ते हुए मैं तीस साल पीछे गोपाल गांधी की डायरी के कुछ अंशों में चला गया, जिनमें दिसंबर 1992 में हुए बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बारे में टिप्पणी की गई है- 30 जनवरी, 1948 के बाद मुझे लगता है कि यह भारतीय इतिहास का सबसे काला क्षण था। उसके बाद एक सवाल भी है- क्या हम सभ्यता के पतन के कगार पर हैं किताब के आखिरी पृष्ठों पर लेखक ने उन समस्याओं को उठाया है, जिनका सामना भारत आज कर रहा है, जिनमें पर्यावरण का व्यापक विनाश, सांप्रदायिक नफरत और संस्थाओं की स्वायत्तता का नाश शामिल है। किताब का समापन इस आशा भरी पंक्ति से होता है- भारत की रोशनी मंद तो हो सकती है, लेकिन कभी बुझ नहीं सकती।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 20, 2025, 06:39 IST
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