Urdu Poetry: हाथों में अँगारों को लिए सोच रहा था
ये सच है कि पाँव ने बहुत कष्ट उठाए पर पाँव किसी तरह से राहों पे तो आए हाथों में अँगारों को लिए सोच रहा था कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए जैसे किसी बच्चे को खिलौने न मिले हों फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए चट्टानों से पाँव को बचा कर नहीं चलते सहमे हुए पाँव से लिपट जाते हैं साए यूँ पहले भी अपना सा यहाँ कुछ तो नहीं था अब और नज़ारे हमें लगते हैं पराए ~दुष्यंत कुमार
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 24, 2025, 18:01 IST
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