चिंताजनक: स्वास्थ्य की कीमत पर मांस की कमाई, क्योंकि कागजों पर 'सुचारु' है व्यवस्था
खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 का शेड्यूल-4 मांस एवं मांस उत्पादों के मानक, मांस की गुणवत्ता और सुरक्षा को तय करता है। मांस उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने और उत्पादन प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। इसमें मांस की शुद्धता, स्वच्छता और सुरक्षा को ध्यान में रखना सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, सुरक्षा मानकों में मांस की कटाई, पैकेजिंग की जांच और भंडारण को शामिल किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय मांस अनुसंधान संस्थान के अनुसार, भारत में मांस को डेयरी क्षेत्र का उप-उत्पाद माना जाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 55 फीसदी आबादी मांसाहारी है। गोमांस का उत्पादन कानूनी अपराध होने के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। यह कैंसर, हृदय रोग जोखिम व एलर्जी के अलावा एंटीबायोटिक्स और हार्मोन का नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है। हाल ही में अलीगढ़ में एक मांस फैक्टरी को सील कर दिया गया था। चार अन्य मामले भी सामने आए थे। एक अलग मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उन्नाव व गाजियाबाद के तीन बूचड़खानों की एनओसी रद्द कर दी। आम तौर पर मांस उद्योग से जुड़ी पशु वधशालाओं में पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएचएस) धुएं में पाए जाते हैं, जो बाद में मांस की सतह पर जम जाते हैं। पीएएचएस को कैंसर के जोखिम से भी जोड़ा गया है। यह मनुष्यों की आंखों, गुर्दे व लिवर को प्रभावित कर सकता है, एलर्जी व ऑटोइम्यूनिटी का कारण बन सकते हैं, अस्थिमज्जा (बोनमैरो) को नुकसान पहुंचा सकता है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं के उत्पादन के लिए अहम स्थल है। पदार्थ का एक अन्य वर्ग नाइट्रोसामाइन के रूप में जाना जाता है, जो कच्चे हैम (मांस ताजा रखने के लिए) और सलामी जैसे कच्चे मांस में भी बन सकता है। कई वधशालाओं में पीएएचएस से मांस के सुरक्षित बचाव की सतर्कता की कोई व्यवस्था न होना स्वास्थ्य के साथ सीधा खिलवाड़ है। पशु वधशाला के स्लाटर हाउस वेस्ट वाटर (एसडब्ल्यूडब्ल्यू) में ऑर्गेनिक लोड होता है, जिसमें पेट, मल-मूत्र, रक्त, लिंट, वसा और लार्ड, शव, अपचित भोजन, माइक्रोबियल रोगजनक, फार्मास्यूटिकल्स, कीटाणुनाशक, लूज मांस, निलंबित सामग्री और सफाई आदि शामिल हैं। लिहाजा वधशाला में मांस को सुरक्षित रखने की पर्याप्त सुविधा न होना सेहत के लिए घातक है। मांस पैकिंग में विशिष्ट रासायनिक खतरे शामिल रहते हैं। मांस पैकिंग में रेफ्रीजेरेशन के लिए अमोनिया इस्तेमाल की जाती है। मांस को कीटाणु रहित करने के लिए पानी में क्लोरीन मिलाई जाती है और ठंडा रखने के लिए सूखी बर्फ के रूप में कार्बन डाईआक्साइड इस्तेमाल की जाती है। केमिकल युक्त मांस हानिकारक हो सकता है। मांस उत्पादक इकाइयों में प्रतिदिन काटे जाने वाले सैकड़ों की संख्या में पशुओं के मृत्यु पूर्व निरीक्षण (एंटी-मार्टम), मृत्यु पश्चात निरीक्षण (पोस्ट-मार्टम) व भोजन योग्य मांस के प्रमाणीकरण के लिए राज्यों के पशुपालन विभागों में पशु चिकित्साधिकारियों की तैनाती अपर्याप्त है, जबकि पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1960/पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण (वधशाला) नियम, 2001 के नियम-4 (2) के अधीन पशु चिकित्सक एक घंटे में 12 पशुओं से अनाधिक और एक दिन में 96 पशुओं से अनाधिक की पूर्ण रूप से जांच करेगा। इन वधशालाओं में कटने वाले पशुओं की संख्या के हिसाब से पशु चिकित्सकों की कमी का खमियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है। लिहाजा, कटने वाले पशुओं का एंटी-मार्टम, पोस्ट-मार्टम व खाने योग्य मांस का प्रमाणीकरण ज्यादातर कागजों पर होता है, जो मानव स्वास्थ्य से सीधा खिलवाड़ है। खास बात यह है कि बड़ी संख्या में वधशालाओं में गर्भवती पशु, दुधारू पशुओं और एक महीने से छोटे पशुओं को चोरी-छिपे काटा जाता है। सरकारी पशु चिकित्साधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, स्थानीय निकाय और प्रशासन सेहत से खिलवाड़ करने वालों पर कार्रवाई के प्रति उदासीन रहते हैं। ऐसे में मांस की गुणवत्ता की नियमित जांच, स्वच्छता और सुरक्षा मानकों का पालन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और मांस के सेवन के बारे में उपभोक्ता जागरूकता अभियान व निगरानी, सख्त सजा व जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए। (-लेखक वकील और एक्टिविस्ट हैं।)
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 12, 2025, 05:55 IST
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