चुनाव सुधार की राह: एक बूथ पर 1200 मतदाताओं की सीमा अहम फैसला, जनता का भरोसा भी बढ़ेगा, ऐसी आशा

भारत निर्वाचन आयोग का यह निर्णय कि अब किसी मतदान केंद्र पर 1200 से अधिक मतदाता नहीं होंगे, देश में लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत व सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो मतदाताओं की सुविधा की दृष्टि से भी स्वागतयोग्य है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में चुनाव कराना एक दुरूह कार्य है। मतदाताओं की लंबी कतारें, सीमित संसाधन और समय की कमी मतदान की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिससे मतदाता हतोत्साहित भी हो सकते हैं। किसी भी मतदान केंद्र पर 1200 से अधिक मतदाता नहीं होने का फैसला इस लिहाज से दूरदर्शी है कि यह हाशिए पर रह रहे समुदायों और निम्न आयवर्ग के लोगों, खासतौर पर दैनिक मजदूर, रिक्शा चालक, ड्राइवर, छोटे दुकानदार इत्यादि की परवाह करता है, जो मतदान के लिए पूरे दिन का इंतजार नहीं कर सकते। इस निर्णय का एक और सकारात्मक पहलू यह है कि अब मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ेगी, जिससे दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले नागरिकों को मतदान केंद्रों तक पहुंचने में सहूलियत होगी, मतदाता भागीदारी बढ़ेगी और लोकतंत्र की जड़ें गहरी होंगी। हालांकि नए मतदान केंद्रों की स्थापना में संसाधनों की उपलब्धता और चुनावकर्मियों की समयबद्ध व पारदर्शी ढंग से नियुक्ति संबंधी प्रशासनिक चुनौतियां जरूर होंगी। पद ग्रहण करने के एक महीने से भी कम समय में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने दशकों से लंबित चुनौतियों को दूर करने के लिए जो निर्णायक कदम उठाने शुरू किए हैं, वे चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, समावेशिता और दक्षता को बढ़ाने के लिहाज से बेहद अहम साबित हो सकते हैं। चुनाव आयोग ने 31 मार्च से पहले निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ), जिला चुनाव अधिकारियों (डीईओ) और मुख्य चुनाव अधिकारियों (सीईओ) के स्तर पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित करने का जो फैसला किया है, उससे चुनाव प्रबंधन के हर स्तर पर राजनीतिक दलों के साथ सीधे जुड़ाव का रास्ता खुलेगा और यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उनकी चिंताओं और सुझावों को जमीनी स्तर पर सुना भी जाए। यही नहीं, चुनाव आयोग द्वारा सभी राष्ट्रीय और राज्य-मान्यता प्राप्त दलों से 30 अप्रैल, 2025 तक एक कानूनी ढांचे के भीतर आधिकारिक तौर पर सुझाव मंगाए गए हैं, जो दो वजहों से अभूतपूर्व हैं। एक, ऐसा कदम चुनाव आयोग ने दशकों बाद पहली बार उठाया है। और, दो, यह चुनावी प्रक्रिया को अधिक समावेशी, पारदर्शी और हितधारकों के प्रति जवाबदेह बनाने की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। एक समावेशी और सशक्त लोकतंत्र की नींव छोटे, लेकिन महत्वपूर्ण फैसलों से ही बनती है। ऐसे में, उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव आयोग के नए निर्णयों से मतदान प्रक्रिया सुचारु होगी और मतदाताओं का भरोसा भी बढ़ेगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Mar 18, 2025, 05:00 IST
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