पर्यावरण: देर से ही सही, शुरू तो हुआ अरिबाडा

आधा फरवरी बीतने के बाद ही मौसम गरम होने लगा था, तो जीव प्रेमियों के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं, कहीं इस साल हम चमत्कार के साक्षी बनने से तो न रह जाएंगे मान्यता है कि धरती का अस्तित्व कछुओं पर है और भारत में ओडिशा के समुद्री तट पर हर साल दुनिया की दुर्लभ प्रजाति के ओलिव रिडले कछुओं का कुछ ऐसा ही विलक्षण समागम होता है। हर साल वसंत में ओडिशा के समुद्र तट पर केंद्रपाड़ा जिले का गरियामाथा तट एक ऐसी घटना का साक्षी बनता है, जिसके रहस्य को सुलझाने के लिए दुनिया भर के पर्यावरणविद और पशु प्रेमी बेचैन हैं। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर लाखों कछुए यहां अंडे देने के लिए आते हैं। मादा अंडे देकर फिर समुद्र यात्रा पर निकल जाती हैं। कोई 50 दिन बाद इन अंडों से निकले बच्चे उसी समुद्री मार्ग से फिर हजारों किलोमीटर दूर अपनी मां के पास चले जाते हैं। यही नहीं ये शिशु कछुए लगभग 30 साल बाद जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने के लिए आते हैं, जहां उनका जन्म हुआ था। आईयूसीएन रेड लिस्ट में सात जीवित समुद्री कछुओं की प्रजातियों में से एक, ओलिव रिडले को संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। वे अपने विशिष्ट प्रजनन पैटर्न और मानवीय गतिविधियों से बढ़ते खतरे के कारण संकटग्रस्त श्रेणी में हैं। ओलिव रिडले कछुए अपना सारा जीवन समुद्र और उससे सटी धरती पर बिताते हैं और इसीलिए वहां के मौसमी बदलाव से ये प्रभावित होते हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन ने समुद्र और उसके जैविक जगत पर भीषण कुप्रभाव डाला है। धरती के बढ़ते तापमान से समुद्री जल भी अछूता नहीं है और गरम जल के कारण ओलिव रिडले कछुओं के नैसर्गिक पर्यावास और भोजन पर असर पड़ा है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से समुद्री कछुओं को अंडे देने के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढना मुश्किल हो सकता है। सबसे बड़ी बात मौसम के बदलाव से कछुओं में लैंगिक असमानता भी उपज रही है। भ्रूण के विकास के दौरान तापमान यह निर्धारित करता है कि अंडे से नर कछुआ निकलेगा या मादा। उच्च तापमान के कारण मादा कछुआ अधिक पैदा होती हैं, जबकि नर कम तापमान के कारण। इसलिए ओलिव रिडले के समुद्र तटों पर रेत के घरौंदे का तापमान बढ़ने से अंडे से निकले बच्चों का लिंग अनुपात लगभग पूरी तरह से मादा हो सकता है। नतीजतन, भविष्य में कछुओं को प्रजनन में समस्या हो सकती है। यह आश्चर्य ही है कि ओलिव रिडले कछुए हजारों किलोमीटर की समुद्र यात्रा के दौरान भारत में ही गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुजरते हैं, लेकिन अपनी वंश-वृद्धि के लिए वे अपना आवास बनाने के लिए ओडिशा के समुद्र तटों की रेत को ही चुनते हैं। सनद रहे कि दुनिया भर में ओलिव रिडले कछुए के घरौंदे महज छह स्थानों पर ही पाए जाते हैं और इनमें से तीन स्थान ओडिशा में हैं। ये कछुए कोस्टारिका में दो व मेक्सिको में एक स्थान पर प्रजनन करते हैं। ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले का गरियामाथा समुद्री तट दुनिया का सबसे बड़ा प्रजनन-आशियाना है। इसके अलावा रूसिक्लया और देवी नदी के समुद्र में मिलनस्थल इन कछुओं के दो अन्य प्रिय स्थल हैं। एक मादा ओलिव रिडले एक बार में करीब डेढ़ सौ अंडे देती है। ये चमत्कारी कछुए हजारों किलोमीटर की यात्रा के बाद  समुद्री तटों पर रेत खोदकर अंडे रखने की जगह बनाते हैं। इस प्रक्रिया को मास नेस्टिंग या अरिबाडा कहते हैं। ये अंडे 60 दिनों में टूटते हैं और उनसे छोट-छोटे कछुए निकलते हैं। ये नन्हे जीव रेत पर घिसटते हुए समुद्र में उतर जाते हैं। एक लंबी यात्रा के लिए इस विश्वास के साथ कि वे वंश-वृद्धि के लिए फिर से ठीक इसी स्थान पर आएंगे-30 साल बाद। इस साल ओडिशा के तट पर कछुओं का आगमन कुछ देर से 5 मार्च की रात हुआ। एक रात में ही लगभग 78 हजार मादा कछुओं ने अपने घरौंदे बनाकर अंडे देना शुरू कर दिया। यह क्रम करीब दस दिन चलेगा। बदलते मौसम से तो कछुए परेशान हैं ही, इनको सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। बीते चार महीनों में ओडिशा के वन विभाग ने 299 मछुआरों को नियम विरुद्ध प्रतिबंधित क्षेत्र में मछली पकड़ने के आरोप में गिरफ्तार भी किया। प्रतिबंधों के बावजूद श्रीलंका और थाईलैंड के ट्रॉलर, तो खुलेआम मछलियों के साथ ही कछुओं का शिकार कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फेंगशुई के बढ़ते प्रचलन ने भी कछुओं की शामत ला दी है। बहुत से अध्ययन बता रहे हैं कि ओलिव रिडले की प्रजनन क्षमता और जीवित रह जाने वाले जीवों की संख्या हर साल घट रही है। कछुए पृथ्वी की पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं, वैसे भी ओलिव रिडले कछुए प्रकृति की चमत्कारी नियामत हैं। अभी उनका रहस्य अनसुलझा है। मानवीय लापरवाही से यदि इस प्रजाति पर संकट आ गया, तो प्रकृति पर क्या विपदा आ सकती है इसका किसी को अंदाजा नहीं है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Mar 11, 2025, 07:05 IST
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