जानना जरूरी है: सत्संग से हुआ पांच प्रेतों का उद्धार; संस्कृति के पन्नों से पूरी कहानी
एक ब्राह्मण थे, जिनका नाम पृथु था। उन्हें वन में निवास करते हुए अनेक वर्ष बीत गए। एक बार वह तीर्थयात्रा करने के उद्देश्य से निकले, तो निर्जन वन के बीच उन्होंने अपने सामने पांच भयंकर पुरुषों को खड़े देखा, जो वास्तव में पांच प्रेत थे। उन्हें देखकर पृथु के मन में भय उत्पन्न हुआ, फिर भी वह निश्चल भाव से खड़े रहे। फिर उन्होंने पूछा, आप लोग कौन हैं किस कर्म के कारण आपको यह विकृत रूप प्राप्त हुआ है प्रेतों ने कहा, हम भूख और प्यास से पीड़ित रहते हैं। हमारा ज्ञान नष्ट हो गया है। हमें दिशाओं का भी ज्ञान नहीं है। हमें आकाश, पृथ्वी तथा स्वर्ग का भी ज्ञान नहीं है। हमें सुख केवल इतना ही है कि सूर्योदय को देखकर हमें प्रभात-सा प्रतीत होता है। पृथु द्वारा पूछने पर प्रेतों ने अपने नाम बताए। एक प्रेत बोला कि वह स्वयं स्वादिष्ट भोजन करता था और ब्राह्मणों को पर्युषित (बासी) अन्न देता था, इसलिए उसका नाम पर्युषित पड़ा। दूसरे ने अन्न के लिए ब्राह्मणों की हिंसा की, इसलिए उसका नाम सूचीमुख पड़ गया। तीसरा प्रेत भूखे ब्राह्मण के याचना करने पर भी बिना उसे कुछ दिए शीघ्रतापूर्वक वहां से चला गया था, इसलिए उसे शीघ्रग कहते हैं। चौथा, स्वयं भोजन करता, लेकिन ब्राह्मणों को कुछ नहीं देता, इसलिए रोधक कहलाया तथा पांचवां प्रेत, याचना करने पर चुप खड़ा रहता, इसलिए उसका नाम लेखक पड़ गया। लेखक को चलने में कठिनाई होती थी, रोधक का सिर नीचा रहता था, शीघ्रग पंगु हो गया, सूचीमुख का मुंह सूई के समान हो गया तथा पर्युषित की गर्दन लंबी तथा अंडकोष एवं दोनों ओठ लंबे होकर लटक गए। प्रेतों ने ब्राह्मण से पूछा, कौन-सा कर्म करने से जीव प्रेतयोनि में नहीं पड़ता ब्राह्मण ने कहा, जो मनुष्य कृच्छ्र-चांद्रायण व्रत करता है, जो मान और अपमान में, सुवर्ण और मिट्टी के ढेले में तथा शत्रु और मित्र में समान भाव रखता है, जो देवता, अतिथि, गुरु तथा पितरों की पूजा करता है, वह प्रेतयोनि में नहीं पड़ता। जिसने क्रोध और ईर्ष्या को जीत लिया, जो क्षमावान और दानशील है, वह प्रेतयोनि में नहीं जाता। प्रेत बोले, अब हमें यह बताइए कि कौन-से कर्म से मनुष्य को प्रेतयोनि में जाना पड़ता है ब्राह्मण ने उत्तर दिया, यदि कोई द्विज और विशेषतः ब्राह्मण, शूद्र का अन्न खाकर उसे पेट में लिए ही मर जाए, तो वह प्रेत होता है। जो आश्रम-धर्म का त्याग करके मदिरा पीता है, परस्त्री गमन करता है तथा प्रतिदिन मांस खाता है, उस मनुष्य को प्रेतयोनि प्राप्त होती है। जो ब्राह्मण यज्ञ के अनधिकारी पुरुषों से यज्ञ करवाता है, अधिकारी पुरुषों का त्याग करता और शूद्र की सेवा में रत रहता है, वह प्रेतयोनि में जाता है। जो मित्र की धरोहर हड़प लेता है, विश्वासघात करता है और कूटनीति का आश्रय लेता है, वह निश्चय ही प्रेत होता है। इसके अलावा ब्रह्महत्यारा, गोधाती, चोर, शराबी, गुरुपत्नी के साथ संभोग करने वाला तथा भूमि और कन्या का अपहरण करने वाला, तो निश्चय ही प्रेत बनता है। जो पुरोहित नास्तिकता में प्रवृत्त होकर ऋत्विजों के लिए मिली हुई दक्षिणा अकेले ही हड़प लेता है, उसे भी प्रेत बनना पड़ता है। विप्रवर पृथु जब प्रेतों को इस प्रकार उपदेश दे रहे थे, उसी समय आकाश से सहसा देवताओं ने पुष्पवर्षा आरंभ कर दी। प्रेतों के लिए चारों ओर से विमान आ गए। उसी समय यह आकाशवाणी हुई, इन ब्राह्मण देवता के साथ वार्तालाप और सत्संग करने से तुम सब प्रेतों को मुक्ति मिल गई है और दिव्य गति प्राप्त हुई है। इस प्रकार पृथु नामक ब्राह्मण के साथ हुए सत्संग के प्रभाव से उन पांचों प्रेतों का उद्धार हो गया। अत: किसी मनुष्य को अपना कल्याण करने की आवश्यकता हो, तो आलस्य छोड़कर पूर्ण प्रयत्न के साथ सत्पुरुषों के साथ वार्तालाप-सत्संग करना चाहिए। पद्म पुराण मंे वर्णित पांच प्रेतों की इस कथा का जो मनुष्य नियमित पाठ करता है, उसके वंश में कोई प्रेत नहीं होता और जो श्रद्धा सहित इसे सुनता है, वह प्रेतयोनि में नहीं पड़ता।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Mar 30, 2025, 05:51 IST
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