Uttarakhand: राज्य स्थापना दिवस; 25 साल में उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन खेती का रकबा साल दर साल घटा

उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन खेती का रकबा साल दर साल घटा है। कृषि क्षेत्रफल दो लाख हेक्टेयर कम होने के बाद भी उत्पादन में एक लाख मीट्रिक टन की बढ़ोतरी हुई है। शहरीकरण के चलते देश दुनिया में प्रसिद्ध देहरादून बासमती की खुशबू गायब हो गई। वहीं, मोटे अनाज, जैविक व सगंध फसलों की खेती से उत्तराखंड को फिर से वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कृषि का कुल क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था। जो 25 साल में घटकर 5.68 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है। शहरीकरण, अवस्थापना विकास, पलायन, जंगली जानवरों की समस्या भी कृषि क्षेत्र में कमी का मुख्य कारण रहा है। जिससे परती भूमि का क्षेत्रफल (ऐसी भूमि जिस पर पहले खेती होती थी) भी 1.07 हेक्टेयर से बढ़कर तीन लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। 2000-01 में राज्य में खाद्यान्न उत्पादन 16.47 लाख मीट्रिक टन था। जो बढ़कर 17.52 लाख मीट्रिक टन पहुंचा है। शहरीकरण से गायब हुई देहरादून बासमती की खुशबू राज्य बनने से पहले देहरादून व आसपास के क्षेत्रों में बड़े स्तर पर बासमती चावल की खेती होती थी। इसके अलावा देहरादून में चाय की पैदावार की जाती थी। लेकिन राज्य बनने के बाद तेजी से शहरीकरण हुआ। खेती की जमीनों पर आवासीय व व्यावसायिक भवनों का निर्माण हो गया, जिससे बासमती चावल की खुशबू भी समाप्त हो गई। प्रेमनगर के समीप चाय बागान भी झाड़ियों में तब्दील हो गए। मंडुवा व झंगोरा को मिली पहचान राज्य बनने से पहले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मोटे अनाज के रूप में मंडुवा, झंगोरा बड़े पैमाने पर होता था। लेकिन इसका इस्तेमाल लोग अपने ही करते थे। 25 साल में फिर से राज्य के मोटे अनाजों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिली है। मंडुवा व झंगोरा के व्यंजन आज फाइव स्टार होटल में परोसे जा रहे हैं। शहरों में बड़े-बड़े मॉल में भी मंडुवा बिक रहा है। मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य मिलेट मिशन शुरू किया है। मंडुवे को जीआई टैग प्रमाणीकरण किया गया।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 29, 2025, 04:54 IST
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