विदेश नीति : यूनुस की बेचैनी और ड्रैगन की चाल, सलाहकार की चीन यात्रा से समझ आती हैं पड़ोसी की प्राथमिकताएं
बैंकॉक में आयोजित बिम्सटेक के छठे शिखर सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात हुई। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, इस दौरान जहां यूनुस ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण का मुद्दा उठाया, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने यूनुस से बांग्लादेश में जल्द से जल्द चुनाव कराने और वहां हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया। दरअसल बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रहने के कारण भारत से तल्ख रिश्ते और घरेलू राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहे यूनुस ने चीन के साथ बेहतर रिश्ते बनाने का फैसला किया है, क्योंकि अमूमन दक्षिण एशियाई देश (पाकिस्तान को छोड़कर) के नेता अपनी पहली विदेशी यात्रा के लिए भारत को प्राथमिकता देते हैं, ताकि अच्छे संबंधों और रणनीतिक तालमेल का प्रदर्शन किया जा सके। लेकिन मोहम्मद यूनुस की 26 से 29 मार्च को की गई चीन की यात्रा एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक बदलाव का संकेत देती है। आर्थिक संकट व कूटनीति- यूनुस ने अपनी चीन यात्रा की शुरुआत 26 मार्च को हैनान में आयोजित बोआओ फोरम फॉर एशिया के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेकर की। फिर उन्होंने 27-29 मार्च को चीनी सरकार के निमंत्रण पर मुख्य भूमि चीन का दौरा किया। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब बांग्लादेश गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है। हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई है। फैक्टरियों के बंद होने, बढ़ती बेरोजगारी और अस्थिरता के कारण स्थिति बिगड़ रही है। शुरू में माना गया कि पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, यूनुस को सत्ता में लाने में सहायक थे। लेकिन पश्चिम से समर्थन कम होते देख यूनुस ने चीन का रुख किया। बांग्लादेश-चीन आर्थिक सहयोग- चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक के दौरान यूनुस ने आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ाने के लिए नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ये समझौते विभिन्न क्षेत्रों को कवर करते हैं, जिनमें विकास परियोजनाएं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, और क्लासिकल साहित्यिक कार्यों के अनुवाद व प्रकाशन शामिल हैं। यूनुस की यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू चीन को तीस्ता नदी प्रबंधन परियोजना में शामिल करने का प्रयास था। पहले यह परियोजना शेख हसीना सरकार ने भारत को सौंपी थी, पर यूनुस ने चीनी सरकारी कंपनियों को इसमें भाग लेने का निमंत्रण दिया, जबकि भारत पहले ही इस पर समर्थन देने और तकनीकी टीम भेजने के लिए सहमत हो चुका था। इसके अलावा, यूनुस ने मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण और विस्तार में चीन की भागीदारी का प्रस्ताव रखा। उन्होंने चीन-बांग्लादेश औद्योगिक पार्क के विकास में भी चीन को शामिल करने की इच्छा जताई। जल प्रबंधन में चीन की भागीदारी- यूनुस ने चीन से बांग्लादेश की नदियों के प्रबंधन के लिए 50-वर्षीय मास्टर प्लान तैयार करने का अनुरोध किया, जो विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि चीन पहले ही तिब्बत में यारलुंग जांग्बो नदी पर एक विशाल जलविद्युत बांध बनाने की योजना बना चुका है, जिससे भारत और बांग्लादेश, दोनों के लिए गंभीर पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। लेकिन यूनुस ने चीन की जल प्रबंधन विशेषज्ञता की प्रशंसा की और उससे रणनीतिक दृष्टिकोण साझा करने का आग्रह किया। चीन ने भी सहायता प्रदान करने पर सहमति जताई है। स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग- यूनुस की रणनीति का एक अन्य प्रमुख पहलू चीन के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है। वर्तमान में, बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मरीज उपचार के लिए भारत आते हैं। हालांकि, यूनुस इसे बदलने और चिकित्सा पर्यटन को चीन की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में, बांग्लादेशी मरीजों, डॉक्टरों और यात्रा एजेंसियों का प्रतिनिधिमंडल चिकित्सा विकल्पों का पता लगाने चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग गया था। चीन ने कुनमिंग में बांग्लादेशी मरीजों के लिए चार अस्पताल समर्पित किए हैं, लेकिन हवाई यात्रा की उच्च लागत बड़ी बाधा बनी हुई है। अब चीन चटगांव से कुनमिंग के बीच सीधी उड़ानें शुरू करने की योजना बना रहा है। यूनुस के प्रति चीन का सतर्क रुख- यूनुस की उत्सुकता के बावजूद, चीन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ सतर्कता बरत रहा है। बीजिंग समझता है कि यूनुस प्रशासन अस्थायी है, और इसलिए वह किसी दीर्घकालिक समझौते से पहले एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की प्रतीक्षा करेगा। चीनी सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए लिखा कि देश में युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अमेरिका की रणनीतिक संकोच नीति के कारण बांग्लादेश पश्चिम से मिलने वाली सहायता को लेकर अनिश्चित है, इसलिए चीन एक संभावित आर्थिक भागीदार बन सकता है। आर्थिक प्रतिबद्धताएं और भावी व्यापार संबंध- यूनुस की यात्रा के दौरान, चीन ने बांग्लादेश को 2.1 अरब डॉलर का ऋण, निवेश और अनुदान सहायता देने का वादा किया। इसमें मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण के लिए 40 करोड़ डॉलर, चीन औद्योगिक आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए 35 करोड़ डॉलर और तकनीकी सहायता के लिए 15 करोड़ डॉलर शामिल हैं। इसके अलावा, लगभग 30 चीनी कंपनियों ने बांग्लादेश में एक अरब डॉलर के निवेश का संकल्प लिया है। दोनों देशों ने चीन-बांग्लादेश मुक्त व्यापार समझौते और निवेश समझौते पर वार्ता शुरू करने पर सहमति व्यक्त की। चीन अब बांग्लादेश से आम और अन्य कृषि व जलीय उत्पादों का आयात करेगा। वर्तमान में, दोनों देशों के बीच 25 अरब डॉलर का व्यापार है, जिसमें बांग्लादेश का निर्यात एक अरब डॉलर से भी कम है। भारतीय हितों के लिए नुकसानदेह- यूनुस की नीतियां और कूटनीतिक कदम भारत के लिए चिंता का विषय हैं। चीन को तीस्ता परियोजना में शामिल करने का यूनुस का निर्णय भारत की रणनीतिक संवेदनशीलता की अवहेलना करता है, विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के संदर्भ में। बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराना और सत्ता को वैध, लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को सौंपना ही मुख्य सलाहकार के रूप में यूनुस की प्राथमिक जिम्मेदारी है, जिस पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Apr 07, 2025, 06:26 IST
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