अंतरराष्ट्रीय: बर्बर इतिहास वाले देश के नवारो.. शायद भारतीय संस्कृति पता नहीं; आखिर अमेरिका की समस्या क्या है?

पिछले छह महीनों से मैं यह सोच रहा था कि अगर रूस, भारत और चीन एकसाथ आ जाएं, तो क्या होगा यह एक काल्पनिक प्रश्न था। भारत और चीन को एकसाथ जोड़ने में रूस भूमिका निभाएगा। लेकिन तब यह मुझे दूर की कौड़ी लगती थी, लेकिन ट्रंप ने इसे संभव कर दिखाया। मुझे अमेरिकी संरक्षणवादी रियायत का व्यक्तिगत अनुभव हुआ, जो इस प्रकार है-लगभग दो दशक पहले, मैं दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वक्ता था। एक ब्रिटिश कंपनी का सीईओ (एक श्वेत ब्रिटिश) मंच पर मेरे बगल में बैठा था। वह काफी शर्मिंदा दिख रहा था। दरअसल, एक अमेरिकी कंपनी के सीईओ ने अपने वक्तव्य के दौरान यूरोपीय लोगों का, खासकर ब्रिटिश विरासत का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। मैं खुद को यह कहने से नहीं रोक पाया, अगर वह सार्वजनिक रूप से इस तरह से आपका मजाक उड़ा सकता है, तो बाकी दुनिया क्या सोचेगी' ब्रिटिश सीईओ ने कंधे उचकाते हुए कहा- ओह! यही तो अमेरिकी अहंकार है। यह 20 साल पहले की बात है। ट्रंप और उनके साथी अब पूरी ताकत से जुट गए हैं। कल्पना के घोड़े पर सवार ट्रंप के विवेकहीन मुख्य सलाहकार पीटर नवारो ने रूस से भारत की तेल खरीद की आलोचना की और इसे मोदी का युद्ध करार दिया। अब उन्होंने यह कहकर अपनी नासमझी का नवीनतम उदाहरण पेश किया है कि ब्राह्मण अन्य भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं। दरअसल, जेलेंस्की भारत से विधिवत संसाधित रूसी तेल खरीदकर रूस को वित्तपोषित कर रहे हैं। यूक्रेनी तेल बाजार विश्लेषण फर्म, नैफ्टोरिनोक के अनुसार, जुलाई में यूक्रेन के डीजल आयात में किसी भी अन्य देश से अधिक भारत का हिस्सा 15.5 फीसदी था। दैनिक शिपमेंट औसतन 2,700 टन रहा, जिससे यह इस साल भारत के सबसे ज्यादा मासिक ईंधन निर्यात आंकड़ों में से एक बन गया। दुनिया को पता होना चाहिए कि ये अमेरिकी कहां से आए हैं। ज्यादातर लोग यह नहीं जानते होंगे कि अमेरिकियों ने रेड इंडियंस (मूल अमेरिकियों) से जमीन कैसे छीनी। उन्होंने न केवल उनकी बस्तियों को जला दिया और उन्हें संगीनों एवं गोलियों से मार डाला, बल्कि उन लोगों के साथ कुछ ऐसा किया, जो अकल्पनीय था, उन्होंने उनका सब कुछ छीन लिया था। अमेरिकियों द्वारा इन्सानों की खरीद-फरोख्त होती थी। वे कुछ डॉलर के लिए अश्वेत गुलामों को संपत्ति की तरह बेचते थे। उन पर अत्याचार करते थे। उन्होंने यातना के नए-नए तरीके ईजाद किए-जो नरसंहार से भी कहीं ज्यादा भयानक थे। उनकी सजा का एक भयावह तरीका सार्वजनिक रूप से जलाना था। जाहिर है, गोरे अमेरिकियों की कोई संस्कृति नहीं है। हालांकि, ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन एक श्वेत पुलिसकर्मी द्वारा एक अश्वेत व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार और उसकी हत्या के बाद शुरू हुआ था, जो कुछ समय तक चला। लेकिन यह तो अश्वेतों के साथ दुर्व्यवहार का एक छोटा-सा हिस्सा भी नहीं था। अमेरिकियों को अब भी लोगों पर अत्याचार करना पसंद है। अमेरिका में श्वेत अमेरिकियों की तुलना में अश्वेत अमेरिकियों की आर्थिक स्थिति कमजोर हैं। अधिकांश अश्वेत वयस्कों ने बताया कि उन्हें अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ा। फिर भी, उन्होंने उस देश की प्रगति में योगदान दिया। इसकी पुष्टि अश्वेत खिलाडि़यों द्वारा अमेरिका के लिए जीते गए ओलंपिक पदकों की संख्या से भी होती है। मोटे तौर पर अमेरिकी जनसांख्यिकी श्वेत अमेरिकियों की ओर झुकी हुई है। श्वेत: 57.8 फीसदी, हिस्पैनिक या लैटिनो: 18.7 फीसदी, अश्वेत या अफ्रीकी अमेरिकी: 12.1 फीसदी और मूल अमेरिकी/अलास्का लगभग 1.12 फीसदी। फिर भी, अन्य लोगों का योगदान कहीं ज्यादा है। अमेरिकी फिल्म उद्योग और संगीत क्षेत्र में भी अश्वेतों का योगदान अमूल्य है। आखिर अमेरिकी नेतृत्व के साथ समस्या क्या है दरअसल, वह हिटलर की तरह अहंकार में अपनी मर्जी चलाना चाहता है। 1939 में भी एक सितंबर को जर्मनों ने पोलैंड पर हमला किया था और द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत की थी। अब ट्रंप ने दुनिया के लिए टैरिफ युद्ध शुरू कर दिया है। हिटलर पागल हो गया था और अपनी मर्जी से संधियां तोड़ता था और किसी भी सलाहकार की बात सुनने को तैयार नहीं था। उसने बहुत सारे मोर्चे खोल दिए थे। जर्मनी दुनिया के खिलाफ था, लेकिन कम से कम इटली और जापान उसके बड़े समर्थक थे। अमेरिका, जिसे ट्रंप महान बनाने की कोशिश कर रहे थे, अब अलग-थलग पड़ गया है। जैसा कि सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली कहते हैं, फिलहाल दुनिया में एक देश की कमी दिखती है। वह यह भी कहते हैं कि दुनिया अमेरिका के बिना रह सकती है, लेकिन अमेरिका दुनिया के बगैर नहीं रह सकता। अमेरिकी सांड बेकाबू होकर बेचारे अमेरिकियों को मार रहा है-उनकी गलती बस इतनी है कि उन्होंने एक मनमौजी नेता को चुना। अब वह अपने चाटुकारों के जरिये हमें बता रहा है कि सारा पैसा ब्राह्मणों के पास है और बाकी देश को कुछ नहीं मिल रहा। इन्हें यह भी नहीं पता कि अंबानी परिवार मोध बनिया समुदाय से है, जो भारत के गुजरात राज्य का एक हिंदू वैश्य (व्यापारिक) समूह है। गौतम अडानी गुजराती जैन समुदाय से हैं। आनंद महिंद्रा पंजाबी हिंदू खत्री समुदाय से हैं। टाटा और गोदरेज पारसी हैं। उन्हें हमारी 5,000 साल पुरानी सभ्यता में इतनी दिलचस्पी क्यों है हमारे प्रधानमंत्री मोदी ओबीसी हैं और राष्ट्रपति आदिवासी समुदाय से हैं। इसलिए अमेरिकियों को कोई हक नहीं है कि वे हमें उपदेश दें। अमेरिकी अर्थव्यवस्था कर्ज में डूबी हुई है। उसकी एकमात्र ताकत हाईटेक और हथियार उद्योग है। उसकी तकनीकी ताकत बाहरी लोगों, खासकर भारत के पास है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिकी हवाई शक्ति का लोगों ने जो प्रदर्शन देखा, उसे देखकर कोई भी उनसे विमान नहीं खरीदेगा। यह 1945 नहीं, बल्कि 2025 है। यदि हैदराबाद से लूला कॉफी का निर्यात न हो, तो अमेरिकियों को कॉफी सूंघने को भी न मिले। और अभिजात्य अमेरिकी बिना कॉफी पिये, कुछ सोच भी नहीं सकते। सीआईए को अब किसी और हुकूमत को गिराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। भगवान अमेरिका की रक्षा करें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 13, 2025, 04:11 IST
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