मुद्दा: बदलते दौर में भी कुरीतियों का ठौर; माहवारी पर फैले भ्रम को दूर करने के वैश्विक व्यापकता से सोचना होगा
हम तरक्की के उस दौर में हैं, जब खुल जा सिम-सिम को हकीकत में बदलता कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी विभिन्न समस्याओं-जरूरतों को एक चुटकी में हल करने के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन हम अपनी कुरीतियों को अब भी पाले हुए हैं। हम धरती पर बैठकर आसमान में उड़ रहे विमानों तक को काबू कर रहे हैं। इसके बावजूद अब भी हम अपनी दकियानूसी से बाहर नहीं निकल पा रहे। कोयंबटूर (तमिलनाडु) से आए चौंकाने वाले एक वीडियो ने स्तब्ध कर दिया। आठवीं कक्षा की एक छात्रा को माहवारी के कारण अलग बिठाकर परीक्षा दिलाने का मामला सुर्खियों के साथ तूल पकड़ता जा रहा है। सेनगुट्टईपालयम स्थित स्कूल में एक बच्ची सीढ़ियों पर बैठकर परीक्षा देते हुए दिख रही है। वीडियो वायरल होते विरोध शुरू हो गया। घटना ही ऐसी है, जो समाज को झकझोरने के साथ निंदनीय और विचारणीय है। 5 अप्रैल को परीक्षा के समय छात्रा को पीरियड आ गए। स्कूल के संज्ञान में आते ही उसे कक्षा के बाहर परीक्षा देने के लिए मजबूर किया गया। स्कूल ने बचाव में सफाई दी कि परिजन के अनुरोध पर ऐसा किया गया, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या सब ठीक था और भविष्य में नहीं होगा विडंबना देखिए, बीते 2 नवंबर, 2024 को ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण विभाग ने अध्ययनरत छात्राओं हेतु मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता नीति अर्थात मेन्स्ट्रुअल हाइजीन पॉलिसी मंजूर की। चार महीने बाद ही ऐसी शर्मनाक घटना चर्चा में आ गई। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लॉक में एक गांव पोथिंग है। थोड़ा पहले यह चर्चाओं में तब आया जब यहां की कक्षा 10वीं की कई छात्राओं ने मिलकर इस कुरीति के विरुद्ध न केवल सशक्त आवाज उठाई, बल्कि अपनी बात तार्किक ढंग से रखकर समाज का ध्यानाकर्षण किया। रूढ़िवाद अब भी ऐसा कि इस जेट युग में भी महिलाएं जैसे नर्क भोगती रही हों। धार्मिक स्थानों और घर-रसोई से भी दूर रखा जाता है। इसके लिए अपने स्थानीय कानून हैं। पहली बार माहवारी शुरू होने पर 21 दिनों तक गोशाला में घरेलू पशुओं के साथ, दूसरी बार 15 दिन, तीसरी बार 11 दिन, चौथी बार 7 दिन और पांचवीं बार 5 दिन पुनः गोशाला में अकेले रहना विवशता होती है। घर के शौचालय तक का उपयोग वर्जित है। पीड़िता सुबह जल्दी उठकर ऐसी जगह जाती है, ताकि कोई उसका मुंह न देख पाए। मासिक धर्म पूरा होने पर नदी में तड़के वह भी जाड़े में सिर से नहाना अनिवार्य है। इस दौरान बिस्तर रोज धोना पड़ता है। बड़े-बुजुर्ग अब भी इसे परंपरा बता कुरीतियों का समर्थन करते हैं। कहते हैं कि वे बचपन से इसे मानते और निभाते आए हैं, इसलिए आगे भी यह चलेगा। ऐसा सच केवल देवभूमि उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश यहां तक कि दुनिया में प्रायः हर कहीं देखने-सुनने को मिल जाता है। इसमें मिथक, डर, मनगढ़त गढ़े और डरावने झूठे किस्से होते हैं। मासिक धर्म एक अनिवार्य प्राकृतिक क्रिया है। एक आयु में हर महिला में होनी ही है। उसके, भविष्य में मां बनने का संकेतक है। इस दौरान उसके अंडाशय में परिवर्तन होता है। हार्मोन विकसित होते हैं और आवाज बदलने, मुंहासे आने जैसी सामान्य प्रक्रियाओं के बीच बच्चियां, बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ती हैं, जो एक आयु तक सतत चलती है और अनुकूल परिस्थितियों में गर्भधारण की प्रक्रिया होती है। मानव की उत्पत्ति की इस अहम कड़ी पर ही भ्रांतियां और अविश्वास कैसा महज भारत में ही नहीं दुनिया के बड़े-छोटे विकसित देश भी कई मिथक पाले बैठे हैं। इस्राइल में पहले मासिक धर्म के दौरान चेहरे पर थप्पड़ मारा जाता है। मिथक यह कि इससे जीवन भर गालों पर लालिमा रहेगी। जापान में महिला द्वारा बनाया गया सुशी बेस्वाद होने की दकियानूसी, ब्राजील में नंगे पैर चलने की मनाही, तंजानिया में उपयोग किया हुआ सैनिटरी पैड देखने पर शाप का भय, नेपाल के ग्रामीण इलाकों में इस दौरान एकांतवास रखने का चलन, अमेरिका में पीरियड के रक्तस्राव से भालुओं के आकर्षित होने का डर, ऑस्ट्रेलिया में तैरने की मनाही, क्योंकि इस रक्त की गंध से शार्क के हमले के खतरे जैसी भ्रांतियां हैं। दुनिया में लगभग हर कहीं कोई न कोई भ्रांति है। मासिक धर्म की भ्रांतियों को लेकर पनपे अंधविश्वास का न कोई वैज्ञानिक आधार है, न कोई चिकित्सकीय प्रमाण। लेकिन यह बदस्तूर जारी है। सेनगुट्टईपालयम की घटना बदलते समाज के बीच फिर शर्मसार करती है। ऐसे में माहवारी पर फैले भ्रम दूर करने के लिए ठोस उपाय जरूरी हैं। साथ ही इस पर वैश्विक व्यापकता से सोचना ही होगा
- Source: www.amarujala.com
- Published: Apr 22, 2025, 07:31 IST
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