Gopaldas Neeraj Poetry: ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है

ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही, चित्र बन रहा लकीर मिट रही, आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक, राह किन्तु दूर दूर हट रही, इसलिए सुहागरात के लिए आँखों में न अश्रु है, न हास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। गा रहा सितार, तार रो रहा, जागती है नींद, विश्व सो रहा, सूर्य पी रहा समुद्र की उमर, और चाँद बूँद बूँद हो रहा, इसलिए सदैव हँस रहा मरण, इसलिए सदा जनम उदास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बूँद गोद में लिए अंगार है, होठ पर अंगार के तुषार है, धूल में सिंदूर फूल का छिपा, और फूल धूल का सिंगार है, इसलिए विनाश है सृजन यहाँ इसलिए सृजन यहाँ विनाश है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 01, 2025, 19:11 IST
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