Guru Tegh Bahadur: आज है गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
Guru Tegh bahadur 2025: सिख परंपरा के नौवें गुरु, श्री तेग बहादुर जी की आज 350वीं पुण्यतिथि है। इस दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर ने सत्य और साहस के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।उनकी शहादत सिर्फ धर्म की रक्षा नहीं थी, बल्कि उस मानवता, स्वतंत्रता और विचार की आज़ादी के लिए थी, जिसे किसी भी कीमत पर दबाया नहीं जा सकता। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन के उन प्रसंगों को याद करते हैं जिनमें संघर्ष भी है, उदारता भी है और वह सीख भी है जो आज के समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1621 में अमृतसर के गुरु के घर हुआ। वे गुरु हरगोबिंद साहिब के सबसे छोटे पुत्र थे। बचपन से तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और आध्यात्मिक विद्या में उनकी पकड़ अतुलनीय थी। पिता ने उन्हें तेग बहादुर नाम यूं ही नहीं दिया। तेग यानी तलवार और बहादुर यानी साहसी, उन्होंने इस नाम को जीवनभर अपने कर्म से चरितार्थ किया। तेग बहादुर के जीवन से मिलती है सीख त्याग गुरु तेग बहादुर का जीवन भौतिक सुखों से दूर, अत्यंत सरलता और ध्यानमय साधना में बीता। उन्होंने 20 से अधिक वर्ष पंजाब में ध्यान और सेवा में बिताए। वे मानते थे कि सम्पत्ति केवल सुविधाएं देती है, आत्मिक बल जीवन को अर्थ देता है। आज के भौतिकवादी समय में उनका सादा जीवन हमें बताता है कि उपलब्धि बाहरी नहीं, भीतर की शांति से उपजती है। धर्म की रक्षा 1675 में कश्मीर के कश्मीरी पंडितों ने अत्याचार से बचाव की गुहार लगाते हुए गुरु जी से मदद मांगी। गुरु तेग बहादुर ने कहा कि अगर मेरा सिर कट जाता है तो लाखों लोग बच जाएंगे, और यही हुआ। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगज़ेब के सामने सिर झुकाने से इनकार कर दिया। धर्मांतरण के दबाव को ठुकराते हुए वे दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान का महान उदाहरण बने। धर्म की रक्षा करना सिर्फ अपने समुदाय के लिए नहीं होता—यह मानवता और स्वतंत्र विचार की सुरक्षा के लिए होता है। साहस गुरु तेग बहादुर को अमर इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भय पर विजय पाई। कैद, यातना और मौत कुछ भी उनके संकल्प को नहीं हिला सका। उन्होंने दिखाया कि साहस तलवार की धार से नहीं, सही बात पर अडिग रहने से जन्म लेता है। कविताओं और शब्दों की सीख गुरु तेग बहादुर की बानी (शिक्षाएं), गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। उनमें जीवन की अनिश्चितता, त्याग, वैराग्य और सच्चे कर्म का गूढ़ संदेश मिलता है। उनकी पंक्तियां आज भी मन को थाम लेती हैं, “जग में आए सो चलिहै, क्या तेरा क्या मेरा।” यह पंक्ति जीवन की नश्वरता को स्वीकार करने का साहस देती है। समाज सेवा वे सिर्फ आध्यात्मिक गुरु नहीं थे; वे समाज-सुधारक थे। उन्होंने लोगों को सिखाया कि गरीबों की मदद, पीड़ितों का सहारा और सत्य के लिए आवाज़ किसी पूजा-पाठ से कम आध्यात्मिक नहीं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 24, 2025, 08:53 IST
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