हबीब जालिब की ग़ज़ल: कभी जो तुझ से मुलाक़ात हो गई प्यारे
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे नए चराग़ जला रात हो गई प्यारे तिरी निगाह-ए-पशेमाँ को कैसे देखूँगा कभी जो तुझ से मुलाक़ात हो गई प्यारे न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे उदास उदास हैं शमएँ बुझे बुझे साग़र ये कैसी शाम-ए-ख़राबात हो गई प्यारे वफ़ा का नाम न लेगा कोई ज़माने में हम अहल-ए-दिल को अगर मात हो गई प्यारे तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब' अलग-थलग से हो क्या बात हो गई प्यारे हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 29, 2025, 20:55 IST
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