देव दीपावली के पर्व पर ओम निश्चल की रचना- देख घाटों पर दीपों की तारावली
धन्य काशी की छवि है निराली भई अम्न की फिर धरा पर बहाली हुई देख घाटों पर दीपों की तारावली देवता गा रहे आज बिरुदावली। आज दीपावली ! देव दीपावली! सज संवर के सभी घर से आए हुए दीप घाटों में जगमग सजाए हुए थाल फूलों भरे साथ लाए हुए पुण्य की कामना में नहाए हुए कर रहे धूप नैवेद्य अर्पित सभी अपनी अंजुरी में भर भर के गंगाजली। आज दीपावली ! देव दीपावली! राक्षस था त्रिपुर इक पुरा काल में त्रस्त त्रैलोक्य था जैसे दिक्काल में देवतागण गए शिव के द्वारे विकल शिव ने वध कर दिया खुश हुआ जग सकल मुग्धमन देवताओं ने दीपक जला रच दी घाटों पे दीपों की चित्रावली ! आज दीपावली! देव दीपावली! सच कहू तो नक्षत्रों का मंडल लगे यह दियों का परम पुण्य स्थल लगे जैसे आकाश गंगा उतर आई हों जाह्नवी की हथेली समुज्ज्वल लगे देख कर चित्त चंचल हुआ जा रहा यह शरद की सुहानी निशा मनचली आज दीपावली ! देव दीपावली ! आज काशी की गलियां सुहानी लगें जैसे सखियों की सखियां सुहानी लगें नाव ही नाव तिरती यहां दीखती देख अनुभूतियां भी रूहानी लगें भक्त जन हो मगन कर रहे आरती भर रही जैसे सिहरन से रोमावली आज दीपावली ! देव दीपावली !! हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 05, 2025, 18:33 IST
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