हसरत मोहानी: अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम
अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम घबरा गए हैं बे-दिली-ए-हमरहाँ से हम कुछ ऐसी दूर भी तो नहीं मंज़िल-ए-मुराद लेकिन ये जब कि छूट चलें कारवाँ से हम ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र मसरूर हैं तिरी ख़लिश-ए-ना-तवाँ से हम मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम ऐ ज़ोहद-ए-ख़ुश्क तेरी हिदायत के वास्ते सौग़ात-ए-इश्क़ लाए हैं कू-ए-बुताँ से हम बेताबियों से छुप न सका हाल-ए-आरज़ू आख़िर बचे न उस निगह-ए-बद-गुमा से हम पीराना-सर भी शौक़ की हिम्मत बुलंद है ख़्वाहान-ए-काम-ए-जाँ हैं जो उस नौजवाँ से हम मायूस भी तो करते नहीं तुम ज़-राह-ए-नाज़ तंग आ गए हैं कशमकश-ए-इम्तिहाँ से हम ख़ल्वत बनेगी तेरे ग़म-ए-जाँ-नवाज़ की लेंगे ये काम अपने दिल-ए-शादमाँ से हम है इंतिहा-ए-यास भी इक इब्तिदा-ए-शौक़ फिर आ गए वहीं पे चले थे जहाँ से हम 'हसरत' फिर और जा के करें किस की बंदगी अच्छा जो सर उठाएँ भी इस आस्ताँ से हम हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 06, 2025, 11:26 IST
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