Delhi News: कार्यक्रम की कवरेज
पुरुष जिम्मेदार या लाचार की प्रस्तुति ने छुआ दर्शकों का दिलनई दिल्ली। वो जो खामोशी से हर शोर खा जाता है, यूं हीं नहीं वो पुरुष कहलाता है। समाज द्वारा बनाई गई पुरुष की छवि कुछ ऐसी ही है। लेकिन सवाल यह है कि पुरुष को क्यों सब सह ही जाना है, क्यों वो रो नहीं सकता ऐसे ही सवालों को घेरते हुए, बीते शाम एलटीजी ऑडिटोरियम में मंच आप सबका थियेटर ग्रुप की तरफ से नाटक पुरुष जिम्मेदार या लाचार की प्रस्तुति हुई। इस नाटक के जरिए पुरुष के भीतर की उस संवेदना को उजागर किया गया, जिसमें समाज मर्द को दर्द नहीं होताजैसी बेतुकी कहावतों में पुरुष के भीतर के दर्द को मार देते हैं। यह नाटक पुरुष के दिल की उन परतों को खोलता है जहां जिम्मेदारियों और उम्मीदों का बोझ उसे खुद से दूर कर देता है। देखने वालों को समझ नहीं आ रहा था कि यह अभिनय है या किसी आत्मा की सच्ची पुकार। निर्देशक दिनेश अहलावत की सूझबूझ भरी प्रस्तुति और शिवपुजन तिवारी की आत्मा को झकझोर देने वाली अभिनय क्षमता ने इस कहानी को मंच से सीधे दर्शकों के दिलों में उतार दिया।नाटक ठंडा गोश्त की दमदार प्रस्तुति ने किया भावुकनई दिल्ली। मंच की मध्यम खामोशी में दर्शक स्थिर थे जैसे हर सांस एक सवाल बन गई हो। सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानी ठंडा गोश्त का नाट्य रूपांतरण जब एलटीजी ऑडिटोरियम के मंच पर मानव सेठी ने प्रस्तुत किया, तो वह केवल एक प्रदर्शन नहीं रहा वह एक सामना था। सामना अपने भीतर की हिंसा से, वासना से, और उस अपराधबोध से जो मनुष्य को भीतर से तोड़ देता है। विभाजन की त्रासदी को केंद्र में रखी यह कहानी इशर सिंह और कुलवंत कौर के संवादों के बीच फूटती है। एक कमरे में बंद दो जिदगियां, जो प्रेम और पाप के बीच झूलती हैं। मानव सेठी का निर्देशन इस एकांत को चीख में बदल देता है, जहां हर मौन, हर ठहराव दर्शक को झकझोर देता है। यह नाटक केवल 1947 की याद नहीं, बल्कि आज की चेतना को आईना दिखाता है, कि हिंसा और औरत के प्रति दृष्टिकोण अब भी हमारे भीतर कहीं जिंदा है। बिना आडंबर, बिना दिखावे के, यह प्रस्तुति साबित करती है कि रंगमंच जब सच्चाई को छूता है, तो वह दिल के भीतर उतर जाता है।.
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 19, 2025, 20:38 IST
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