दो विचारधाराओं के इतिहास का पेंडुलम: लेनिन ने सोवियत साम्यवाद की नींव रखी, वलेसा ने कैसे प्रतिरोध में ढहाया?
अमेरिका और कनाडा में आजकल लेक वालेसा के 'ग्रैंड लेक्चर टूर' की चर्चा है। पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति तथा नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लेक वालेसा के 'सॉलिडेरिटी आंदोलन' के 45 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर उन्होंने अमेरिका व कनाडा के 28 शहरों को अपने व्याख्यान के लिए चुना। लोगों में 20वीं सदी के इस राजनीतिक महानायक को सुनने की भारी उत्सुकता दिखी। लेक वालेसा का पहला व्याख्यान 31 अगस्त को लॉस एंजेलिस में हुआ। उन्होंने दुनिया के भविष्य को उज्ज्वल बनाने की रणनीतियों का भी दर्शन पेश किया। वालेसा का कहना है, 'हम लोग चुनौतियों भरे समय में रह रहे हैं और इतिहास के एक नए मोड़ का सामना भी कर रहे हैं।' कुछ लोग अपने देश को बदलते हैं और कुछ पूरी दुनिया को। बीसवीं सदी में दो ऐसे नायक हुए हैं, जिन्होंने पूरे विश्व को ही बदल दिया। लेक वालेसा दूसरे हैं और पहले थे व्लादिमीर इलिच लेनिन। विश्व राजनीतिक विचारधारा के ये दो ऐसे विरोधी ध्रुव रहे हैं, जिन्होंने विश्व मानव जगत को इतना प्रेरित किया कि 20वीं सदी दो राजनीतिक विचारधाराओं के इतिहास का पेंडुलम बन गई। बीसवीं शताब्दी दो परस्पर विरोधी शक्तियों (क्रांति और प्रतिक्रांति, विस्तार व विघटन, साम्यवादी उत्साह तथा लोकतांत्रिक प्रतिरोध) से प्रभावित रही। इस संघर्ष के केंद्र में दो व्यक्तित्व खड़े रहे हैं-व्लादिमीर इलिच लेनिन, जिन्होंने सोवियत साम्यवाद की नींव रखी, और दूसरे लेक वालेसा, जिन्होंने उसे ढहाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक ने दुनिया को लाल झंडे के नीचे लाने का सपना देखा, तो दूसरे ने उसे स्वतंत्रता की ओर मोड़ दिया। लेनिन जैसा प्रभाव शायद ही किसी ने 20वीं शताब्दी पर छोड़ा हो। 1917 की बोल्शेविक क्रांति के माध्यम से उन्होंने रूसी साम्राज्य को ध्वस्त कर दुनिया का पहला समाजवादी राज्य स्थापित किया। उनका सपना (पूरी दुनिया में साम्यवाद फैलाना) अकल्पनीय रूप से सफल रहा। 20वीं शताब्दी के मध्य तक पूर्वी यूरोप से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक और चीन से लेकर क्यूबा तक, दुनिया की तीन-चौथाई मानवता किसी-न-किसी साम्यवादी शासन के अधीन थी। सोवियत संघ एक महाशक्ति बन गया, जिसका प्रभाव वारसा संधि और प्रॉक्सी युद्धों के माध्यम से फैला। हालांकि, लेनिन की विरासत विरोधाभासी रही। उन्होंने मजदूर वर्ग की मुक्ति का संकल्प लिया था, पर उनका तंत्र अधिनायकवादी बन गया। केंद्रीकृत सत्ता, विरोध का दमन और आर्थिक ठहराव साम्यवादी राजनीतिक व्यवथाओं के मुख्य लक्षण बन गए। जिस क्रांति का लक्ष्य शोषण-मुक्ति था, वह स्वयं एक नौकरशाही दानव के रूप में उभर कर खड़ी हो गई। 20वीं सदी के पूर्वार्ध में साम्यवादी साम्राज्य की जो आंधी चली, वह सदी के उत्तरार्ध में अपने चरम पर पहुंच कर धीरे-धीरे अपने ही विरोधाभासों से ढहने लगी। तभी एक अप्रत्याशित विद्रोही सामने आया, लेकिन साम्यवादी सोवियत संघ से नहीं, सोवियत साम्यवाद की छत्रछाया तले पूर्वी यूरोप के पोलैंड के ग्दान्स्क शिपयार्ड से। मूंछधारी ट्रेड यूनियन नेता लेक वालेसा, जिसकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी, विरोध का चेहरा बन गया। वालेसा का 'सॉलिडैरिटी' (एकजुटता) आंदोलन केवल एक मजदूर विरोध नहीं था, बल्कि यह साम्यवादी गुट में पहला कानूनी विपक्ष था, जिसने पूर्वी यूरोप में लोकतंत्र की चिंगारी जला दी। लेक वालेसा से विश्व का पहला साक्षात्कार अगस्त, 1980 में हुआ, जब उन्होंने ग्दान्स्क शिपयार्ड के गेट पर चढ़कर हड़ताल का नेतृत्व किया। उधार की कलम से उन्होंने 'अगस्त समझौते' पर हस्ताक्षर किए, जिसने कम्युनिस्ट ब्लॉक में पहली स्वतंत्र ट्रेड यूनियन को विधिक मान्यता दी। इसी से 'सॉलिडैरिटी' आंदोलन जन्मा और मात्र एक दशक में ही बिना रक्तपात के पोलैंड के कम्युनिस्ट शासन का पतन हो गया। वही वालेसा, जो हास्य की तरंग में कहते थे, 'मैं छोटे कद का हूं, क्योंकि कम्युनिज्म ने मेरी बढ़त रोक रखी थी', पोलैंड के प्रथम निर्वाचित राष्ट्रपति बने। उनके सुधारों ने दिवालिया देश को यूरोप की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना दिया। ग्दान्स्क शिपयार्ड को आधुनिक यूरोप की जननी कहा जाता है। ग्दान्स्क शिपयार्ड ही वह स्थान है, जो इस शहर को इतिहास में सदैव अमर रखेगा। सोवियत संघ की स्थापना के बाद लेनिन के साम्यवादी आंदोलन ने जो मार्क्सवादी-लेनिनवादी साम्राज्यों की दीवारें खड़ी की थीं, वालेसा ने उन्हें ध्वस्त कर दिया। इसका व्यापक प्रभाव आश्चर्यजनक था-1991 तक सोवियत संघ ताश के पत्तों की तरह बिखर गया, उसके देश स्वतंत्र हो गए, पूर्वी यूरोप के देशों में साम्यवाद का अंतिम क्रियाकर्म हो गया, और पोलैंड, जो कभी सोवियत की कठपुतली था, ने स्वतंत्र चुनावों पर आधारित लोकतंत्र की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। कभी साधारण इलेक्ट्रीशियन रहे लेक वालेेसा ने जैसे साम्यवाद की बिजली ही काट दी! उनकी विजय केवल पोलैंड की विजय नहीं थी, यह लेनिन के संपूर्ण दुनिया को लाल झंडे के नीचे लाने के सपनों का अंत भी था। लेनिन ने सिद्धांतों और एक तरह के आतंक से सामूहिकता थोपी। उन्होंने श्रमिकों की तानाशाही के राजनीतिक सिद्धांत को यथार्थ में ढाला, जबकि तानाशाही का व्यवहार एक-सा होता है, चाहे वह व्यवस्था के ऊपर से हो, या नीचे से। इसके विपरीत वालेसा ने हड़तालों और एकजुटता से व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वापसी की। लेनिन बुद्धिजीवी थे, मगर उन्होंने मजदूरों की तानाशाही पर आधारित सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जबकि वालेसा एक मजदूर थे, जिन्होंने सबकी स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए संघर्ष किया। एक ने पार्टी आदेशों से क्रांति फैलाई दूसरे ने जनांदोलनों के माध्यम से एक नई राजनीतिक व्यवस्था की मशाल जलाई। लेनिन के तंत्र ने समानता स्थापित करने के नाम पर क्रांति की, उत्पीड़न किया, जबकि वालेसा के आंदोलन ने स्वतंत्रता मांगी और लोकतंत्र पाया। लेनिन की बोल्शेविक क्रांति और उसके बाद दुनिया में साम्यवादी व्यवस्थाओं की स्थापना की प्रक्रियाओं ने लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को लील लिया, जबकि वालेसा के आंदोलनों में एक भी व्यक्ति की न तो जान गई, न ही कोई घायल हुआ। वालेसा के नेतृत्व में पाए गए लोकतंत्र में शीतयुद्ध का अंत केवल सोवियत संघ का पतन नहीं था, यह लेनिन के सपने का अंतिम खंडन और वालेसा के संघर्ष की सर्वोच्च विजय थी। मार्च, 2024 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान में लेक वालेसा ने सनसनीखेज बयान दिया: 'पुतिन का रूस तो सोवियत संघ से भी अधिक खतरनाक है। कम से कम ब्रेझनेव यह ढोंग तो नहीं करता था कि वह लोकतांत्रिक है।' पश्चिम की आत्मतुष्टि पर उनकी टिप्पणी और भी कठोर थी, 'तुमने लोकतंत्र को कोक जैसा उत्पाद बना कर बेचा, पर उसे बचाने की लड़ाई का पाठ पढ़ाया ही नहीं।' लेक वालेसा समय के आर-पार देख रहे हैं। जिस लोकतंत्र की उन्होंने नींव रखी, उसे लेकर वह संतुष्ट नहीं हैं। वह कहते हैं, 'लोकतंत्र आज रुग्ण है, क्योंकि हमने तानाशाही का अनुभव विस्मृत कर दिया है।' इसका समाधान भी वह सुझाते हैं, 'संयुक्त राष्ट्र को महज वार्तालाप का केंद्र नहीं, वास्तविक शक्ति चाहिए। समस्त विश्व के लिए एक नवीन एकजुटता आंदोलन आवश्यक है।' 'इतिहास वे लिखते हैं, जो भविष्य लिखना नहीं जानते' कहने वाले लेक वालेसा लगता है, अपनी उम्र के आठवें दशक में वैश्विक राजनीति के भविष्य का इतिहास लिख रहे हैं!
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 02, 2025, 08:19 IST
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