बहुमत से दूर BJP को कैसे मिलेगी दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की सत्ता?

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के 12 वार्डों में हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद राजधानी की सियासत में नई हलचलों ने जोर पकड़ लिया है। भले ही भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अधिक सात सीटें जीतकर अपनी मजबूती दिखाई हो, लेकिन इसके बावजूद पार्टी बहुमत के जादुई आंकड़े 126 तक नहीं पहुंच पाई है। उपचुनाव के बाद भाजपा के पास अब 123 पार्षद हैं यानी बहुमत से तीन कम। ऐसे में एमसीडी की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए भाजपा को एक बार फिर इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी (आईवीपी) के 15 पार्षदों पर निर्भर रहना ही पड़ेगा। दिल्ली में ट्रिपल इंजन सरकार केंद्र में मोदी सरकार, दिल्ली में एलजी कार्यालय की सक्रियता और एमसीडी के बावजूद भाजपा नगर निगम में अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकी है। बीते एक साल से एमसीडी में भाजपा आईवीपी के समर्थन के सहारे ही अपनी सत्ता चला रही है, लेकिन उपचुनाव से उम्मीदें थीं कि पार्टी इस बार अपने दम पर बहुमत में आ जाएगी। नतीजों ने साफ कर दिया कि यह राह अभी भी आसान नहीं है। आईवीपी के 15 पार्षदों के समर्थन के बिना भाजपा का सत्ता में बने रहना संभव नहीं है। यह निर्भरता भविष्य में बजट, स्थायी समिति के फैसलों और बड़े प्रशासनिक बदलावों पर भी असर डाल सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि एमसीडी की आगामी राजनीतिक दिशा काफी हद तक भाजपा-आईवीपी संबंधों के संतुलन पर निर्भर करेगी। उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने तीन सीटों पर जीतकर अपना मौजूदा आधार बरकरार रखा है। पार्टी के पार्षदों की संख्या 96 से बढ़कर 99 हो गई है। इन तीन अतिरिक्त सीटों से आप को भले ही सत्ता समीकरण पर सीधा प्रभाव न मिला हो, लेकिन इससे यह संकेत जरूर गया है कि पार्टी की जमीनी पकड़ अब भी मजबूत है। कांग्रेस के लिए उपचुनाव की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने एक सीट जीतकर लंबे समय बाद निगम की राजनीति में हलचल पैदा की है। कांग्रेस के पार्षदों की संख्या अब 9 हो गई है, जो उसे चर्चाओं में वापस लाता है। मटिया महल में शोएब इकबाल के समर्थित उम्मीदवार की जीत ने एमसीडी की राजनीति में नया रंग भर दिया है। आम आदमी पार्टी से बगावत के बाद उन्होंने अपनी नई राजनीतिक पहचान बनाकर यह दिखा दिया कि पुराना जनाधार अब भी उनके साथ है। इससे स्थानीय स्तर पर आप की चुनौतियां बढ़ सकती हैं। एमसीडी में एक निर्दलीय पार्षद आप का समर्थन कर रहा है, जबकि दो पार्षद ऐसे हैं जो किसी भी पार्टी के साथ नहीं हैं। दोनों पहले आप में थे, लेकिन लगातार दल बदल और अनुशासनहीनता के कारण अब किसी भी राजनीतिक दल ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया है। इन पार्षदों की स्थिति भविष्य में निगम के फैसलों को प्रभावित कर सकती है। उपचुनाव के नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि भाजपा के लिए एमसीडी की राजनीति, सरकार के मजबूत ढांचे के बावजूद, अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। सात सीटें जीतना एक उपलब्धि जरूर है, लेकिन बहुमत से दूर रह जाना पार्टी के लिए राजनीतिक संदेश भी है। तीन सीटों का यह अंतर भाजपा के लिए रणनीतिक कमजोरी साबित हो सकता है। उधर, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चुनाव परिणामों के बाद कहा कि दिल्ली का जनसमर्थन दोबारा आप की ओर लौट रहा है। उन्होंने दावा किया कि “सिर्फ 10 महीनों में ही जनता का विश्वास तेजी से वापस आया है।” साफ है कि एमसीडी में सत्ता का गणित और भी पेचीदा होता जा रहा है। बहुमत के करीब होते हुए भी भाजपा को सहारे की जरूरत है, जबकि विपक्ष धीरे-धीरे अपना आधार मजबूत करने में जुटा है। आने वाले महीनों में निगम की राजनीति और रोचक मोड़ ले सकती है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 04, 2025, 03:49 IST
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