पर्यावरण: इंसानी प्रदूषण जनित ब्लैक कार्बन हिमालय की बर्फ खा रह, क्रायोस्फेरिक बदलाव घातक; दो अरब लोगों पर असर
शहरों में छाया वायु प्रदूषण सिर्फ हम लोगों के लिए ही जानलेवा नहीं साबित हो रहा, बल्कि यह हिमालय की ऊंची-ऊंची बर्फ से ढकी चोटियों पर पहुंचकर उसे पिघला रहा है। इसके चलते हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है और ग्लेशियर तेजी से पिघलकर पीछे सरक रहे हैं। शहरों की छाती पर तेजी से दौड़ रही गाड़ियों से निकले काले धुएं के लच्छों, मिलों और कारखानों की काला धुआं उगल रहीं चिमनियां, खेतों में जलाई जाने वाली पराली से उठती धुएं की काली चादर-यानी ब्लैक कार्बन हवा के जरिये उड़कर, हमारे सिरमौर तक पहुंचकर उसे नष्ट कर रहा है। लेकिन प्रदूषण रोकने की निर्णायक मानवीय कार्रवाई अब भी ग्रह के लुप्त होते बर्फ के विशालकाय पिंडों की रक्षा कर सकती है। विशेषकर पूर्वी और मध्य हिमालय में। ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने से हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हो सकती है। ठीक उसी तरह, जिस तरह ताजमहल को बचाने के लिए प्रदूषण पर लगाम कसी गई थी। जब ब्लैक कार्बन बर्फ पर जम जाता है, तो यह सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है और सतह को गर्म करता है, जिससे यह तेजी से पिघलती है। ये बर्फ पर जमकर उसकी परावर्तक शक्ति को कम कर देता है, जिससे सूरज की गर्मी सीधे बर्फ में समा जाती है और वह तेजी से पिघलने लगती है। हिमालय की बर्फ इसके प्रति बहुत संवेदनशील है। विशेषज्ञों का कहना है कि जहां ब्लैक कार्बन ज्यादा जमा होता है, वहां बर्फ की मोटाई सबसे तेज गति से घट रही है। इससे नदियों के जलस्तर पर असर पड़ेगा-खासतौर पर भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों में। रिसर्च संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स की नई रिपोर्ट बताती है कि पिछले 20 वर्षों में हिमालयी इलाकों में बर्फ की सतह का तापमान औसतन चार डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। सन 2000 से 2019 तक ब्लैक कार्बन की मात्रा में तेजी से इजाफा हुआ, जिससे हिमालय की बर्फ लगातार सिकुड़ती गई। 2019 के बाद इसकी रफ्तार थोड़ी थमी जरूर है। रिपोर्ट में नासा के 23 साल के सैटेलाइट डाटा (2000-2023) का विश्लेषण किया गया है। इसके अनुसार, उच्च ब्लैक कार्बन जमाव वाले क्षेत्रों में बर्फ की सतह का तापमान अधिक और बर्फ की गहराई कम पाई गई है। ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के कई तरीके हैं, जैसे हिमालय व उसके चारों आेर के पहाड़ी इलाकों में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जो गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को एलपीजी कनेक्शन सिलिंडर पर रियायत देती है, का व्यापक प्रसार और चूल्हे में लकड़ी जलाना बंद करना। डीजल और पेट्रोल वाहनों पर पूरी तरह हिमालय और उसके आसपास इलाकों में लगाम कस देना। ठीक वैसा ही जैसा ताजमहल को बचाने के लिए एमसी मेहता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आगरा में कदम उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने तब ताजमहल के क्षेत्र में प्रदूषण को कम करने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि औद्योगिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना, वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पेट्रोल एवं डीजल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया। बिजली आपूर्ति के लिए भी जेनरेटरों में डीजल दहन करने पर रोक लगा दी थी। ताजमहल के आसपास के क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया था और पौधारोपण करने पर जोर दिया था। आल्प्स में बर्च ग्लेशियर का ढहना इस बात की स्पष्ट याद दिलाता है कि हमारे ग्लेशियर कितनी तेजी से खत्म हो रहे हैं और जलवायु-परिवर्तन का असर हमारी जिंदगी और हमारे चारों तरफ कितना गहरा रहा है। नेपाल में हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियरों में से कभी बर्फ की एक विशाल नदी रही याला ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के कारण 1970 के दशक से अब तक 66 प्रतिशत तक सिकुड़ चुकी है और लगभग 800 मीटर पीछे चली गई है। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी किए गए एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस 2023 के अनुसार, दुनिया के 25 सबसे अधिक जल तनाव झेल रहे देशों में भारत 24वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत उपलब्ध आपूर्ति का कम से कम 80 प्रतिशत पानी उपयोग कर रहा है। बढ़ते शहरीकरण से यह संकट और गहरा होता जा रहा है। अगर ब्लैक कार्बन पर अब भी लगाम नहीं लगी, तो पहाड़ों से लेकर मैदान तक, करोड़ों ग्रामीण परिवार पानी की भारी कमी से जूझ सकते हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़े बर्फ भंडारों का घर, हिमालय में खतरनाक क्रायोस्फेरिक परिवर्तन हो रहे हैं, जो दक्षिण एशिया के लगभग दो अरब लोगों के लिए पानी का स्रोत है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Jun 03, 2025, 05:30 IST
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