चिंताजनक: वैश्विक तापमान चार डिग्री बढ़ा तो 40% गिरेगी अर्थव्यवस्था; भीषण गर्मी से कार्यक्षमता पर पड़ रहा असर

अगर वैश्विक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो इस सदी के अंत तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 40% तक की गिरावट हो सकती है। पहले के शोधों में यह गिरावट 11% आंकी गई थी, लेकिन नए अध्ययन से पता चला है कि वास्तविक नुकसान इससे लगभग चार गुना हो सकता है। अध्ययन ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिकों ने किया है और इसके निष्कर्ष एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन के अनुसार अगर तापमान वृद्धि को दो डिग्री तक सीमित भी कर लिया तो भी प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी में 16 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। यह पूर्व के अनुमानों से कहीं अधिक गंभीर स्थिति को दर्शाता है, जहां केवल 1.4 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया था। तापमान वृद्धि से वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी हो जाएगी और इसका प्रभाव दुनियाभर के लोगों के जीवन पर पड़ेगा। पहले यह माना जाता था कि रूस और उत्तरी यूरोप जैसे ठंडे देशों को जलवायु परिवर्तन से लाभ हो सकता है, लेकिन नए निष्कर्ष बताते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को इतना व्यापक नुकसान होगा कि सभी देश प्रभावित होंगे, क्योंकि वे एक-दूसरे की आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर हैं। चरम मौसमी घटनाओं से अर्थव्यवस्थाओं पर भारी प्रभाव वैश्विक तापमान में वृद्धि से होने वाली प्राकृतिक आपदाएं अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही हैं। सूखे की वजह से फसलें नष्ट हो रही हैं। बाढ़ और तूफान से इमारतें ध्वस्त हो रही हैं। आपूर्ति शृंखला बाधित हो रही है, जिससे वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। गर्मी से कार्य क्षमता और स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा शोधकर्ताओं का कहना है कि बढ़ती गर्मी न केवल लोगों की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है। अत्यधिक गर्मी के कारण बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। डेंगू, मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियां उन क्षेत्रों में भी फैलने लगी हैं, जहां पहले ये नहीं पाई जाती थीं। जलवायु परिवर्तन के कारण संघर्ष और विस्थापन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। गर्म होते समुद्र व्हेलों के प्रवास में बाधा नई दिल्ली। हर साल हंपबैक व्हेल दक्षिण-पूर्वी प्रशांत महासागर से अंटार्कटिका तक लगभग 10,000 किलोमीटर की लंबी यात्रा करती हैं, ताकि वे वहां जाकर भोजन प्राप्त कर सकें। लेकिन हाल के अध्ययनों से पता चला है कि बढ़ते समुद्री तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण इस प्रवास पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इस अध्ययन को साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है। मैकगिल विवि के शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की गई कि व्हेल यह कैसे तय करती हैं कि प्रवास कब शुरू करना है। 2009 से 2016 के बीच सैटेलाइट टैग की गई 42 व्हेलों के मूवमेंट को ट्रैक किया गया। ये भी पढ़ें:न्यूयॉर्क में सबसे ज्यादा अरबपति, फोर्ब्स की सूची में मुंबई का छठा स्थान, जानिए टॉप टेन में कौन से शहर

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 07, 2025, 05:16 IST
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