मुद्दा : अध्ययन ने दिखाई राह... ताकि गर्मियों में बिजली संकट ही न हो

भारत के महानगर साल-दर-साल जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ रही तपिश और असहनीय गर्मी से जंग करने पर मजबूर हैं। अत्यधिक गर्मी ने न सिर्फ मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों के ढांचे को, बल्कि वहां के लोगों की सेहत और आजीविका को भी झकझोर दिया है। भीषण गर्मी में पानी की किल्लत के साथ-साथ बिजली की बढ़ती मांग की वजह से होने वाले पावर कट्स शहरों का जीवन अस्त-व्यस्त कर देते हैं। इस बार लू और भीषण गर्मी का कहर समय से पहले ही दस्तक देने लगा है। मौसम विभाग (आईएमडी) ने पहले ही एलान कर दिया है कि इस बार पिछले साल से ज्यादा जबर्दस्त गर्मी पड़ेगी। नई दिल्ली की एक शोध संस्था सस्टेनेबल फ्यूचर कोलैबोरेटिव (एसएफसी) ने एक नई रिपोर्ट में इस बात की पड़ताल की है कि भारत के नौ प्रमुख शहर भीषण गर्मी के बढ़ते दुष्प्रभाव से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। इनमें हाशिये पर जी रहे लोगों के लिए कूलिंग छतें बनाए जाने सहित भीषण गर्मी में बिजली जाने की विफलताओं को रोकने के लिए मजबूत ग्रिड जैसे उपाय करीब-करीब सभी शहरों से नदारद हैं। एक हकीकत यह भी है कि गर्मी से बचाव के लिए एयर कंडीशनर (एसी) की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे बिजली की खपत आसमान छू रही है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और बर्कले के इंडिया एनर्जी ऐंड क्लाइमेट सेंटर (आईईसीसी) के एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारत यदि एसी की ऊर्जा दक्षता को दोगुना कर ले, तो अगले दशक में गंभीर बिजली संकट को टाला जा सकता है और उपभोक्ताओं के 2.2 लाख करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। यह अध्ययन दर्शाता है कि भारत में हर साल एक से डेढ़ करोड़ नए एसी बिक रहे हैं, और अगले दस वर्षों में यह संख्या 13 से 15 करोड़ तक पहुंच सकती है। यदि नीतिगत स्तर पर तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो 2030 तक एसी के कारण 120 गीगावाट और 2035 तक 180 गीगावाट तक की अधिकतम बिजली की मांग उत्पन्न हो सकती है, जो अनुमानित कुल बिजली खपत का 30 फीसदी होगी। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2023 की भीषण गर्मी ने बिजली की मांग को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचा दिया था। बढ़ते तापमान के कारण देश की पावर ग्रिड पर जबर्दस्त दबाव पड़ा, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और बढ़ गई। अध्ययन के प्रमुख विश्लेषक, डॉ. मनीष राम बताते हैं, अक्सर बिजली की मांग में बढ़ोतरी को केवल आर्थिक विकास से जोड़ा जाता है, लेकिन हमारी स्टडी यह दिखाती है कि बढ़ता तापमान भी पीक पावर डिमांड में जबर्दस्त इजाफा कर रहा है। इस अध्ययन से पता चला कि शहरी और संपन्न इलाकों में हीटवेव के दौरान बिजली की खपत में बड़ा उछाल देखने को मिला, जबकि ग्रामीण और अविकसित इलाकों में यह स्थिर बनी रही। इसकी वजह वहां की कमजोर बिजली आपूर्ति व्यवस्था और कूलिंग डिवाइसेज की कम पहुंच बताई गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में हीटवेव की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है, और इसका सीधा संबंध मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से है। फरवरी में ही बिजली की मांग 238 गीगावाट तक पहुंच गई थी, और मार्च-अप्रैल में इसके और बढ़ने की संभावना है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की एसोसिएट डायरेक्टर, अर्चना चौधरी कहती हैं कि गर्मी बढ़ने से बिजली की मांग बढ़ रही है, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव बढ़ता है और ऊर्जा लागत में इजाफा होता है। गर्मी के चलते एसी की बढ़ती संख्या बिजली ग्रिड पर जबर्दस्त दबाव डाल रही है। लेकिन यदि हम स्मार्ट नीतियां अपनाते हैं, तो यह न केवल उपभोक्ताओं और निर्माताओं के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि पूरे पावर ग्रिड को अधिक स्थिर बनाएगा। साथ ही, बढ़ती गर्मी की वजह से भविष्य में गंभीर बिजली संकट का खतरा टल जाएगा। यह अध्ययन सुझाव देता है कि भारत को 2027 तक अपने न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन मानक को अपडेट करने की आवश्यकता है। इसमें वन-स्टार एसी की न्यूनतम दक्षता (आईएसईईआर 5.0) को वर्तमान फाइव-स्टार स्तर के बराबर किया जाए और हर तीन साल में मानकों को सख्त किया जाए। वर्तमान में, बाजार में 600 से अधिक मॉडल पहले से ही भारत के फाइव-स्टार दक्षता स्तर से बेहतर हैं, जिनमें से कई घरेलू कंपनियों द्वारा बनाए गए हैं। इनके जरिये वर्ष 2028 तक 10, वर्ष 2030 तक 23, और वर्ष 2035 तक 60 गीगावाट बिजली संकट को रोका जा सकता है। यह 120 बड़े बिजली संयंत्रों के बराबर है। इससे 66,000 करोड़ से 2.25 लाख करोड़ रुपये तक की बचत होगी।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 07, 2025, 06:32 IST
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