सवाल: अगर मोदी यूनुस से मिलेंगे तो क्या आएगी दोनों देशों में पहले जैसी निकटता
बीते 26 मार्च को, बांग्लादेश के 54वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बलिदानों को याद करते हुए दोनों देशों के साझा इतिहास पर जोर दिया। कयास लगाए जा रहे हैं कि दो से चार अप्रैल तक बैंकॉक में आयोजित बिम्सटेक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और मोहम्मद यूनुस के बीच बैठक हो सकती है। दूसरी तरफ स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मोहम्मद यूनुस चीन के हैनान प्रांत में एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने एशियाई एकता पर जोर दिया और अपने मुल्क को बदलने के लिए अपनी सरकार की प्रशंसा की। मीडिया रिपोर्टों में स्वतंत्रता दिवस पर उनके भाषण के साथ यूनुस की चीन यात्रा को गेम चेंजर बताकर बड़ी उम्मीदें लगाई गईं और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस गर्मजोशी से बांग्लादेश का स्वागत किया और उसके बदलाव के लिए पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया, उसकी भी चर्चा की गई। बांग्लादेश भारत से दूर जाने के लिए संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है। वह पाकिस्तान और चीन से घनिष्ठ संबंध बना रहा है और अमेरिकी संरक्षण चाह रहा है। प्रसिद्ध लेखिका नयना गोराडिया ने अपनी किताब लॉर्ड कर्जन: द लास्ट ऑफ द ब्रिटिश मुगल्स में लिखा है कि कैसे ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया था। एक साल बाद मुस्लिम लीग की स्थापना नए वायसराय लॉर्ड मिंटो के सहयोग से हुई, जिसमें ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने मुख्य भूमिका निभाई। बंग-भंग को मजहब के आधार पर (हिंदू-मुस्लिम) लोगों को बांटने की कोशिश के रूप में देखा गया। इसने जो सांप्रदायिक खाई पैदा की, उसी के कारण अंततः 1947 में भारत विभाजन, पाकिस्तान का जन्म और 1971 में बांग्लादेश का उदय हुआ। पिछले साल अचानक सरकार बदलने के बाद यह इतिहास प्रासंगिक हो उठा है। सवाल उठाता है कि क्या यह मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी के बावजूद धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का पालन करने वाले एक अपेक्षाकृत उदार राष्ट्र का, जिसकी महिलाएं अन्य इस्लामी देशों की तुलना में अपने समाज और अर्थव्यवस्था में बेहतर योगदान दे रही हैं, विचलन है। अगर टैगोर और नजरुल के सांस्कृतिक लोकाचार को बनाए रखने के लिए लड़ने वाले लोग मुस्लिम लीग युग में लौट रहे हैं और इससे भी बदतर जिहादी उग्रवाद के हाथों खेल रहे हैं, तो वे कर्जन को सही साबित कर देंगे। बांग्लादेश नेपाल से बिजली खरीदने की सोच रहा है। बांग्लादेशी लोग भारतीय अस्पतालों से दूर उपचार के लिए चीन जा रहे हैं, और रिपोर्टों में कहा गया है कि वहां उनका स्वागत किया जा रहा है और बेहतर देखभाल की जा रही है। दूसरी तरफ वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है और भारत की निंदा की जा रही है। वास्तव में, बांग्लादेश में यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि शेख हसीना और उनकी पार्टी कथित तौर पर भारत के इशारे पर सारे गलत काम कर रही थीं। यूनुस के इर्द-गिर्द भारत विरोधी इस्लामवादियों के नए नेतृत्व द्वारा बदनाम किए जाने के बावजूद भारत ने अपनी व्यापार प्रतिबद्धता जारी रखी है। दोनों पक्षों को पता है कि आप पड़ोसी नहीं चुन सकते। यूनुस ने तीखे हमले के साथ-साथ सुलह की बातें भी की हैं। इस महीने, उन्होंने नई दिल्ली के साथ तनाव कम करने की कोशिश की और कहा कि गलतफहमियों को दूर करने और द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के प्रयास चल रहे हैं। बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख जनरल वकार उज जमा ने भी भारत-विरोधी हमले के खिलाफ चेतावनी दी है और भारत को महत्वपूर्ण पड़ोसी बताया है। हाल ही में सेना प्रमुख ने स्वीकारा कि हम अराजक स्थिति से गुजर रहे हैं और अपराधी इसका फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर देश में सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों को कमजोर किया गया, तो बांग्लादेश बिखर जाएगा। बदलती क्षेत्रीय गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए बांग्लादेश चीन के साथ अपने व्यापार को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है। ढाका तीस्ता नदी की सफाई और जल बंटवारे की परियोजना पर तेजी से काम करना चाहता है, जिसका वादा भारत ने हसीना के सत्ता से बेदखल होने से कुछ हफ्ते पहले किया था। ऐसे में, भारत को उत्तर बंगाल में भारतीय सीमा के करीब चीनी सैनिकों के आने की आशंकाओं के बारे में चिंता करनी होगी, विशेष रूप से चिकन नेक के बारे में, जो कि संकीर्ण गलियारा है और भारत के पूर्वोत्तर हिस्से को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। यूनुस ने इस वर्ष के अंत या अगले वर्ष की शुरुआत में चुनाव कराने का वादा किया है। उनकी सरकार को समर्थन देने वाले छात्र नेताओं ने एक नई पार्टी का गठन किया है, जो चाहती है कि देश के मुक्ति संग्राम का इतिहास फिर से लिखा जाए और नया संविधान बनाया जाए। वह चाहती है कि नया राष्ट्र अपनी पहचान 1947 से 2024 तक बढ़ाए, जिसका मतलब है कि 24 साल पूर्वी पाकिस्तान और 53 साल बांग्लादेश के रूप में शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने तक। पाकिस्तान की ओर यह नया झुकाव संकेत देता है कि हसीना विरोधी प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले छात्रों का राजनीतिक संबंध जमात-ए-इस्लामी और उन इस्लामी दलों और समूहों से है, जिन्होंने बांग्लादेश की मुक्ति का विरोध किया था। भारत की चिंताएं इसलिए बढ़ गई हैं, क्योंकि यूनुस सरकार अस्थिरता, उच्च मुद्रास्फीति, आर्थिक कठिनाई और अत्यंत नाजुक कानून-व्यवस्था के चलते राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रही है। सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा है कि प्रतिबंधित इस्लामी संगठनों से जुड़े इन इस्लामवादियों ने हसीना विरोधी आंदोलन के अंतिम कुछ दिनों में अहम भूमिका निभाई थी। बांग्लादेश में स्थिति अराजक बनी हुई है। अगर चुनाव से पहले, उसके दौरान और उसके बाद भी इस्लामी छात्र सत्ता पर काबिज रहते हैं, तो पाकिस्तान और उसकी आईएसआई की वहां वापसी भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Mar 29, 2025, 06:51 IST
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