जानना जरूरी है: दीपावली और देवी लक्ष्मी का संबंध... भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है रोचक पौराणिक कथा

दीपावली कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक पांच दिनों का पर्व है। इससे जुड़ी विभिन्न कथाएं हमें धर्मग्रंथों में मिलती हैं। कहीं राजा पृथु द्वारा पृथ्वी का दोहन करके देश को धन-धान्य से संपन्न बनाने के उपलक्ष्य में दीपावली मनाने का उल्लेख है, तो कहीं इसे समुद्र-मंथन के समय श्रीलक्ष्मी के प्रादुर्भाव से जोड़ा जाता है। कहीं श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर-वध के बाद सोलह हजार राजकन्याओं के उद्धार पर श्रीकृष्ण का अभिनंदन दीपमाला के रूप में किया है, तो कहीं पांडवों के वनवास से लौटने पर प्रजा द्वारा दीपमालाओं से उनका स्वागत करने का प्रसंग है। किसी ग्रंथ में श्रीरामचंद्र के अयोध्या आगमन पर दीपावली के आयोजन का वर्णन हुआ है। एक कथा के अनुसार, वामन रूप में अवतरित भगवान विष्णु ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर उसे पाताल भेज दिया। तब बलि ने विष्णुजी से वरदान मांगा, आपने तीन दिन में मुझसे तीनों लोक ले लिए, इसलिए इन तीन दिनों तक जो व्यक्ति दीपदान करे, उसे यम का भय न रहे और उसका घर कभी लक्ष्मी से विहीन न हो। उसी दिन से दीपदान (दीपावली) का पर्व आरंभ हुआ। दीपावली की एक कथा के अनुसार, एक बार मुनियों ने सनत्कुमार जी से पूछा, भगवन! दीपावली लक्ष्मी-पूजा का पर्व है, फिर लक्ष्मी पूजा के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा का महत्व क्यों प्रतिपादित किया गया है सनत्कुमार जी ने बताया, राजा बलि के कारागार में लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवता बंद थे। कार्तिक अमावस्या को वामन रूप में भगवान विष्णु ने बलि को बांध लिया और सब देवी-देवता मुक्त हुए। इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ उन सब देवताओं का पूजन कर उनके शयन का अपने घर में उत्तम प्रबंध करना चाहिए, जिससे वे लक्ष्मी के साथ वहीं निवास करें और कहीं और न जाएं। जो इस विधि से लक्ष्मी-पूजन करते हैं, लक्ष्मी उनके यहां स्थिरभाव से निवास करती हैं। मान्यता है कि दीपावली की रात्रि में देवी लक्ष्मी सद्गृहस्थों के घरों में विचरण करती हैैं, जो निवास अनुकूल दिखाई पड़ता है, वहीं वे रम जाती हैं। अतः हमें अपने घर को लक्ष्मी के मनोनुकूल बनाना चाहिए। देवी लक्ष्मी को कैसे लोग और कैसा घर पसंद है महाभारत में देवी लक्ष्मी स्वयं रुक्मिणी को बताती हैं कि घर की स्वच्छता और सुंदरता उन्हें पसंद है। महालक्ष्मी ने भक्त प्रह्लाद को भी बताया कि तेज, धर्म, सत्य, व्रत, बल एवं शील आदि गुणों में मेरा निवास है। लक्ष्मी ने एक बार देवराज इंद्र से कहा, मैं उन पुरुषों के घरों में निवास करती हूं, जो निर्भीक, सच्चरित्र, कर्तव्यपरायण, अक्रोधी, कृतज्ञ तथा जितेंद्रिय हैं। इसी प्रकार मुझे उन स्त्रियों के घर प्रिय हैं, जो क्षमाशील, जितेंद्रिय, सत्य पर विश्वास रखने वाली, शीलवती, सौभाग्यवती, गुणवती, पतिपरायणा तथा सद्गुणसंपन्न होती हैं। देवी ने रुक्मिणी से यह भी कहा, जो पुरुष अकर्मण्य, नास्तिक, वर्णसंकर, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर तथा गुरुजनों के दोष देखने वाला हो, उसके घर में मैं निवास नहीं करती। जिनमें तेज, बल, सत्व और गौरव का अभाव है, जो जहां-तहां हर बात में खिन्न हो उठते हैं, जो मन में दूसरा भाव रखते हैं और ऊपर से कुछ और दिखाते हैं, ऐसे मनुष्यों के यहां भी मैं निवास नहीं करती हूं। इसी प्रकार जो नारियां अपने गृहस्थी के सामान की चिंता नहीं करतीं, बिना सोचे-विचारे काम करती हैं, पति के प्रतिकूल बोलती हैं, पराये घर से अनुराग रखती हैं, निर्लज्ज, पापकर्म में रुचि रखने वाली, अपवित्र, चटोरी, अधीर, झगड़ालू तथा सदा सोनेवाली हैं-ऐसी स्त्रियों के घर को छोड़कर मैं चली जाती हूं। देवी लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री हैं और दीपावली पर निम्नलिखित सूक्त से उनका आह्वान किया जाता है-कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्येस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥  अर्थात जिन भगवती लक्ष्मी का स्वरूप मन और वाणी के लिए अवर्णनीय है, जो अपने मंदहास्य से सबको आह्लादित करती हैं, जो स्नेह तथा आर्द्र हृदयवाली हैं, उन तेजोमयी, भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाली, कमल पर विराजमान भगवती लक्ष्मी का मैं आह्वान करता हूं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 19, 2025, 04:52 IST
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