जानना जरूरी है: ग्राह बनीं अप्सराओं को कैसे मिली मुक्ति? तपस्वी की साधना में विघ्न डालने का दोष कैसे खत्म हुआ
पूर्वकाल की बात है, अर्जुन बारह वर्षों की तीर्थयात्रा पर निकले थे। वह मणिपुर होते हुए दक्षिण समुद्र के तट पर पहुंचे, जहां उन्होंने पांच तीर्थों में स्नान करने का निश्चय किया। ये तीर्थ बहुत पवित्र माने जाते थे, परंतु उनमें रहने वाले ग्राहों के भय से तपस्वियों ने इन्हें छोड़ दिया था और वे लोग दूसरों को भी वहां जाने से मना करते थे। पहला तीर्थ कुमारेश था, जो मुनियों को प्रिय था। दूसरा स्तंभेश था, जो सौभद्र मुनि को प्रिय था। तीसरा वर्करेश्वर तीर्थ था, जो इंद्र-पत्नी शची को प्रिय था। चौथा महाकालेश्वर तीर्थ राजा करंधम को तथा पांचवां सिद्धेश तीर्थ महर्षि भारद्वाज को प्रिय था। अर्जुन ने इन पांचों तीर्थों का दर्शन किया और नारद आदि मुनियों से पूछा कि इतने सुंदर तीर्थों को मुनियों ने क्यों छोड़ दिया। तब तपस्वियों ने अर्जुन को बताया कि इन तीर्थों में पांच ग्राह रहते हैं, जो तपस्वियों को जल में खींचकर ले जाते हैं। इसी कारण इन तीर्थों का त्याग कर दिया गया है। तपस्वियों ने अर्जुन से आग्रह किया कि वह उन तीर्थों में स्नान करने न जाएं, क्योंकि ग्राहों ने कई राजाओं और मुनियों को मार डाला था। मुनियों ने अर्जुन को समझाते हुए यह भी कहा कि बारह वर्षों में उन्होंने अनेक तीर्थों में स्नान किया ही होगा, फिर इन पांच खतरनाक तीर्थों में स्नान करके प्राण क्यों गंवाना इस पर अर्जुन ने विनम्रता से कहा कि धर्माचरण के लिए यदि जीवन भी चला जाए, तो कोई हानि नहीं। जो व्यक्ति अपना जीवन, धन, पुत्र, स्त्री व धर्म के लिए अर्पित कर देता है, वही सच्चा मनुष्य कहलाता है। अर्जुन ने तपस्वियों को प्रणाम किया और सौभद्र मुनि के प्रिय स्तंभेश तीर्थ में स्नान करने के लिए चले गए। उन्होंने जैसे ही जल में प्रवेश किया, एक ग्राह ने उन्हें पकड़ लिया। महाबाहु अर्जुन ने बलपूर्वक ग्राह को खींचकर जल से बाहर निकाल लिया। जल से बाहर आते ही वह ग्राह, एक सुंदर स्त्री में बदल गया। उस स्त्री का रूप अत्यंत दिव्य था और उसने सुंदर आभूषण धारण किए हुए थे। अर्जुन ने स्त्री से उसके विषय में पूछा और उसके ग्राह रूप के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। स्त्री ने बताया कि वह अप्सरा वर्चा है, जो अपनी चार सखियों के साथ एक वन में पहुंची, जहां एक ब्राह्मण अकेले बैठे तपस्या कर रहे थे। उनका तेज सूर्य के समान था। वर्चा और उसकी सखियों ने उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए नृत्य और गायन किया। इससे ब्राह्मण का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने क्रोध में आकर उन पांचों अप्सराओं को सौ वर्षों तक ग्राह बनने का शाप दे दिया। दुखी होकर अप्सराएं ब्राह्मण की शरण में गईं और क्षमा मांगने लगीं। तब ब्राह्मण ने कहा कि शाप तो भोगना होगा, किंतु एक दिन कोई श्रेष्ठ पुरुष उन्हें जल से बाहर निकालेगा और शाप से मुक्ति दिलाएगा। अप्सराओं को नारद ने बताया कि अर्जुन ही उन्हें मुक्त करेंगे। इसलिए वे समुद्र तट के उन तीर्थों में निवास करने लगीं। वर्चा ने अर्जुन से कहा कि अब आप हमें मुक्ति दें। इसके बाद अर्जुन ने शेष चार तीर्थों में भी स्नान करके ग्राह रूपी सभी अप्सराओं को जल से बाहर खींचकर उनका उद्धार किया। सभी अप्सराओं ने अर्जुन को प्रणाम किया और उन्हें आशीर्वाद देकर आकाश मार्ग से लौट गईं। ब्राह्मण ने अप्सराओं को उपदेश दिया था कि भगवान ब्रह्मा ने स्त्री और पुरुष के संयोग की व्यवस्था सृष्टि के विस्तार के लिए की है। जो लोग धर्म के विरुद्ध इसे अपवित्र करते हैं, वे पाप के भागी होते हैं। गार्हस्थ्य धर्म शास्त्रसम्मत हो, तो पुण्य देता है, अन्यथा पाप का कारण बनता है। ब्राह्मण ने अप्सराओं से यह भी कहा कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है और जो अपने मन, वाणी और इंद्रियों को वश में रखे, वही सच्चा तपस्वी है। जो स्त्री और संतान के मोह में पड़कर पाप करता है, वह नरक में जाता है। अप्सराओं को मुक्त करके अर्जुन ने मुनियों की आज्ञा का पालन किया और पुन: तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े। इस प्रकार अर्जुन ने अपने साहस और धर्मनिष्ठा से अप्सराओं को ग्राह के शाप से मुक्ति दिलाई और धर्म की रक्षा की।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 24, 2025, 05:53 IST
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