अंतरराष्ट्रीय: पुतिन के भारत दौरे पर अहम द्विपक्षीय समझौते की उम्मीद, अमेरिका इस वक्त क्या सोच रहा है?

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 23वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली पहुंच चुके हैं। यह रूस और भारत के बीच मजबूत साझेदारी को दर्शाता है। उम्मीद है कि उनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रक्षा सौदों और व्यापार संबंधी समझौतों की घोषणा की जाएगी। इस द्विपक्षीय बैठक पर एक तीसरा देश अमेरिका भी नजरें गड़ाए बैठा है। यह समय भारत के लिए खास तौर पर मुश्किल है, क्योंकि वह ट्रंप प्रशासन के साथ अपनी आर्थिक उलझन को सुलझाने का तरीका खोज रहा है। ट्रंप ने रूस का तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने का भारत पर आरोप लगाया है, और पिछले महीने, रूसी तेल दिग्गजों पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने उनसे व्यापार करने वाली कंपनियों को खतरे में डाल दिया, जिसके बाद भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनियों ने रूसी तेल खरीदने में कुछ कमी कर दी है। यह द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन दुनिया को यह संकेत देता है कि भारत और रूस सोवियत युग से चले आ रहे संबंधों के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं। पुतिन के लिए, यह दुनिया को यह दिखाने का अवसर है कि रूस के पास वैश्विक महत्व का एक महत्वपूर्ण साझेदार है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी, जो राष्ट्रपति पुतिन के साथ बेहतर रिश्ते रखते हैं, को भारत के हित में एक संतुलन बनाना होगा, यानी एक तरफ भारत को सबसे ज्यादा हथियार देने वाले रूस से संबंध बनाए रखना, तो दूसरी तरफ अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका की अपेक्षाओं को भी पूरा करना होगा। ऐसा नहीं है कि दोनों देशों ने करीब आने की कोशिश नहीं की, पर ट्रंप के भारी शुल्कों ने इन प्रयासों को झटका दिया है। संभव है आज दोनों नेताओं के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के तरीकों, खासकर भारत द्वारा रूसी उर्वरक के आयात में वृद्धि और भारत में छोटे परमाणु संयंत्रों के निर्माण पर चर्चा हो। रूस यूक्रेन में अपने युद्ध और मध्य एशिया से आने वाले प्रवासियों में कमी के कारण श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है, ऐसे में भारत से रूस तक श्रमिकों की आवाजाही से जुड़ा समझौता होने की भी उम्मीद है। गौरतलब है कि यह 2021 के बाद पुतिन की पहली भारत यात्रा है। हालांकि, दोनों नेता पिछले साल, मॉस्को और फिर हाल ही में चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में मिले थे। भारत अपनी जरूरत के तेल के एक-तिहाई से अधिक हिस्सा रूस से आयात करता रहा है, जो ट्रंप प्रशासन के साथ भारत की व्यापार वार्ताओं में एक बड़े विवाद का कारण बन गया। इस वजह से अमेरिका ने भारत पर 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। तेल के मुद्दे पर रूस को जो भी नुकसान हुआ, उसकी भरपाई वह रक्षा उपकरणों से कर सकता है। भारत सैन्य हथियारों पर अरबों डॉलर खर्च करता है। रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। ऐसे में, इस बैठक में भारत एस-400 प्रणाली की खरीद की घोषणा कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर में एस-400 और लंबी दूरी की ब्रह्मोस मिसाइलों ने अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि, भारत अपने हथियारों के स्रोतों में विविधता ला रहा है, पर उसके मौजूदा भंडार में 60 फीसदी से ज्यादा रूसी हथियार हैं। ऐसे में, हेलिकॉप्टर और लड़ाकू विमान जैसे हथियारों के रखरखाव व पार्ट्स आदि के लिए रूस पर भारत की निर्भरता बनी रहेगी। (साथ में, वैलेरी हॉपकिंस) ©The New York Times 2025

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 05, 2025, 02:50 IST
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