मुद्दा: सूचना अधिकार के बीस साल, अब करना होगा इसके प्रभाव और क्रियान्वयन की चुनौतियों पर गौर

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को बीते बारह अक्तूबर को बीस बरस पूरे हो गए। सूचना के अधिकार को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा तथा आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधि में मानवाधिकार के रूप में देखा गया है। भारत में लोक प्रशासन में पारदर्शिता, शुचिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए फ्रीडम ऑफ इन्फॉर्मेशन एक्ट (सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम), 2002 बना, हालांकि इसे कभी अधिसूचित नहीं किया गया। यह लागू भी नहीं हुआ और इसके कमजोर प्रावधानों की आलोचना भी हुई। वर्ष 2005 में एक व्यापक सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 बना, जो लागू भी हुआ। भारत के संविधान के अनुच्छेद-19 (1) (ए) के अंतर्गत जो वाक्-स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का अधिकार नागरिकों को दिया गया है, उसमें सूचना प्राप्त करने का अधिकार अंतर्निहित है। सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। ये कानून नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने, सरकारी गतिविधियों, नीतियों और निर्णयों के बारे में जानकारी लेने, लोक प्राधिकारियों के नियंत्रण में उपलब्ध सूचनाओं तक पहुंच हासिल करने और जन-सामान्य के प्रति नौकरशाही की जवाबदेही, शुचिता व पारदर्शिता का अधिकार देता है। भारत में आरटीआई कानून को लागू हुए दो दशक पूरे हुए हैं, इसलिए इसके प्रभाव और क्रियान्वयन की चुनौतियों पर गौर करना जरूरी होगा। यहां उल्लेखनीय है कि विश्व के 132 देशों ने सूचना के अधिकार को सांविधानिक गारंटी के तौर पर अपनाया या आरटीआई कानून बनाए। इन्हें लागू करने के लिए कानूनी ढांचों की मजबूती पर आधारित सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी (सीएलडी) की ग्लोबल आरटीआई रेटिंग में वर्ष 2011 में भारत दूसरे स्थान पर था, लेकिन लगातार गिरावट के बाद 2024 में यह खिसक कर नौवें पायदान पर आ गया। इस गिरावट का कारण भारत के आरटीआई कानून की दूसरी अनुसूची में व्यापक अपवाद होना है, जो सुरक्षा, खुफिया और अन्य निकायों से सूचना तक पहुंच को प्रतिबंधित करते हैं। यह छूट इसलिए दी गई है, ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यक्तिगत गोपनीयता या अन्य महत्वपूर्ण हितों को सुरक्षित रखा जा सके। हालांकि, इन छूटों की व्याख्या करने की गुंजाइश काफी होती है, जिसका उपयोग अक्सर जन सूचना अधिकारियों द्वारा सूचना देने से बचने के लिए किया जाता है। सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव का ही नतीजा है कि इस कानून के अस्तित्व में आने के दो दशक बाद भी सरकारी कार्यालयों में आसानी से सूचना देने की प्रवृत्ति विकसित नहीं हो पाई है, कहीं बड़ी संख्या में आवेदन लंबित हैं, तो कहीं आधी-अधूरी, अपूर्ण और भ्रामक सूचनाएं दी जाती हैं। राज्य सूचना आयोगों में अपीलों की तादाद लगातार बढ़ती रहती है, न तो सूचना देने में तीस दिन की समय-सीमा का पालन किया जाता है और न ही सूचना देने और अपीलों के निस्तारण में देरी का कारण ही बताया जाता है। सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 के जरिये केंद्र और राज्य स्तर पर सूचना आयुक्तों की सेवा शर्तों में संशोधन हुआ, इन संशोधनों से सूचना आयुक्तों की स्वतंत्र कार्यप्रणाली प्रभावित हुई है। इसी तरह वर्ष 2023 में आरटीआई एक्ट की धारा-8 (1)(जे) के संशोधन में सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट दी गई। ऐसे में, आम लोगों का हथियार बन चुके इस कानून के मूल स्वरूप को बचाए रखना और लोगों में इस कानून के इस्तेमाल की बेहतर समझ बनाना एक बड़ी चुनौती जैसा है। सूचना के अधिकार कानून के अमल में अगर ऐसी ही उदासीनता जारी रही, तो यह कानून निष्प्रभावी हो जाएगा और अभी घपलों-घोटालों, लोक सेवकों के भ्रष्टाचार से सबंधित जो भी जानकारियां छनकर ही सही, मिल रही हैं, वे भी नहीं मिलेंगी। सरकार को द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें लागू करनी चाहिए, जिनमें आरटीआई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए गठित राष्ट्रीय समन्वय समिति का राष्ट्रीय मंच के रूप में कार्य, आरटीआई राष्ट्रीय पोर्टल के कार्यों की निगरानी और अधिनियम के प्रभाव का मूल्यांकन, राज्य स्तर पर विश्वसनीय गैर-लाभकारी संगठनों को शामिल किया जाना, लोक प्राधिकरणों में सूचना अधिकार के उचित कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त कर्मचारियों की नियुक्ति, दस्तावेजी रिकॉर्ड का उचित रख-रखाव, सूचना मांगने वालों की जीवन सुरक्षा, सरकारी अधिकारियों का व्यापक प्रशिक्षण और रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण इत्यादि शामिल हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अधिक से अधिक लोग इस कानून के जरिये प्रशासनिक पारदर्शिता का लाभ उठा सकें। लिहाजा सूचना देने में हीला-हवाली करने पर सख्त दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। अगर सरकार की मंशा साफ है, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने में उसे गुरेज नहीं होना चाहिए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 13, 2025, 07:44 IST
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