मुद्दा: आखिर औरंगजेब पर गुस्सा क्यों, तब के आक्रमणकारियों से स्वयं को जोड़कर उनका गुणगान करना कितना स्वीकार्य?

क्या किसी भी सभ्य समाज के लिए मुगल आक्रांता औरंगजेब, तानाशाह हिटलर और गांधीजी का हत्यारा गोडसे गौरव हो सकते हैं जब समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र में विधायक अबू आसिम आजमी ने औरंगजेब का महिमामंडन किया, तब वह केवल अपना व्यक्तिगत मत ही प्रकट नहीं कर रहे थे। उनका वक्तव्य भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त विषाक्त मानस का न केवल प्रतिनिधित्व कर रहा था, अपितु इसने हिंदू-मुस्लिम संबंधों में शताब्दियों से चले आ रहे तनाव के कारणों को भी कुरेद दिया। यह चिंतन ही समरसता, बहुलतावाद, पंथनिरपेक्षता व सह-अस्तित्व युक्त समाज को सीधी चुनौती है। इसी मानसिकता के कारण भारत का रक्तरंजित विभाजन हुआ और पाकिस्तान-बांग्लादेश अस्तित्व में आए आजमी और उनके मानसबंधुओं के अनुसार, औरंगजेब क्रूर शासक नहीं था। उसकी लड़ाई राजकाज के लिए थी, न कि मजहबी। उसने कई हिंदू मंदिर बनवाए। इस्लामी बादशाहों की आत्मकथाओं और समकालीन इतिहासकारों द्वारा कलमबद्ध वृतांतों से स्पष्ट है कि आठवीं शताब्दी के बाद भारत में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तलवार के बल पर स्थानीय लोगों का धर्मांतरण, नरसंहार, शोषण, पूजास्थलों का विध्वंस और उनके मानबिंदुओं का अपमान-अपवित्रीकरण-इस्लामी दृष्टिकोण से गर्व योग्य कृत्य थे। इसलिए औरंगजेब का 49 वर्षीय शासनकाल कोई अपवाद नहीं था। इतिहास ऐसे रक्तरंजित विवरणों से भरा है। इस्लामी दरबारी मोहम्मद साकी मुस्तैद खान ने मासिर-ए-आलमगीरी (1731) में लिखा था कि औरंगजेब ने फरमान जारी करके काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया, अन्य धर्मावलंबियों के जबरन धर्मांतरण का आदेश दिया, मथुरा स्थित केशवराय मंदिर को ध्वस्त किया और जोधपुर में कई मंदिरों के विध्वंस के बाद उनके अवशेषों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया। क्या यह सच नहीं कि औरंगजेब ने इस्लाम नहीं अपनाने पर नौवें सिख गुरु तेग बहादुरजी और अन्य कई सिखों की हत्या करवाई, तो वीर छत्रपति संभाजी महाराज को अमानवीय यातनाएं देकर मारा यदि मजहबी पक्ष छोड़ भी दें, तो एक व्यक्ति के रूप में औरंगजेब कैसा था सत्ता-लिप्सा में जहां उसने अपने पिता शाहजहां को कैद किया, वहीं अपने तीनों भाइयों-दारा शिकोह, शाहशुजा और मुराद की निर्मम हत्या करवा दी। क्या ऐसा क्रूर-हृदयविहीन व्यक्तित्व किसी भी सभ्य समाज के लिए आदर्श हो सकता है यह ठीक है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने अथाह संपत्ति लूटने के इरादे से भारत पर हमले किए, परंतु इनके पीछे मजहबी प्रेरणा भी थी। इतिहास में इसके कई प्रमाण हैं, जिनमें से एक वर्ष 1398 में भारत पर हमला कर हजारों-लाखों निरपराधों को मारने वाला तैमूर है। बकौल तुजुक-ए-तैमूरी  में तैमूर ने कहा था, मेरे हिंदुस्तान आने के दो उद्देश्य हैं। पहला-काफिरों से जिहाद करना और सवाब कमाना। दूसरा-काफिरों की दौलत लूटना, क्योंकि यह मुसलमानों के लिए मां के दूध की तरह जायज है। सोचिए, देश के एक प्रसिद्ध फिल्मी परिवार ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा है। क्या इस्लामी आक्रांताओं और हिंदू-सिख शासकों में संघर्ष केवल सत्ता का था इस पर दावा किया जाता है कि मुस्लिम शासकों के दरबारों में हिंदू और हिंदू-सिख शासकों के दरबारों में मुस्लिम थे। यदि इस कुतर्क को मानें, तो अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले अधिकांश सैनिक और क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने वाले कौन थे जलियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाने वाले अंग्रेज नहीं थे। क्या यह कहना ठीक होगा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम देश की आजादी के बजाय सत्ता का संघर्ष था बार-बार दोहराया जाता है कि मुगलों ने मंदिरों का निर्माण करवाया। संभव है कि कुछ मामलों में ऐसा हो। परंतु क्या इससे उनके असंख्य अपराध मिट जाते हैं आक्रामणकारी ब्रितानियों ने भी अपनी औपनिवेशिक रणनीति के अंतर्गत कुछ मंदिरों के निर्माण-जीर्णोद्धार होने दिए। वे देश में रेल और टेलीग्राफ लेकर आए, तो बिना किसी स्थानीय पूजास्थल को ध्वस्त किए भव्य भवनों का निर्माण करवाया। इन सबके बावजूद अंग्रेजों की भूमिका एक कुटिल विदेशी आक्रमणकारियों की थी, जिन्होंने भारत की प्रज्ञा और अगाध संपदा को बेदर्दी से नष्ट किया। इस्लामी आक्रांताओं के यशगान में एक भ्रामक तर्क यह भी है कि यदि वे इतने ही क्रूर और मजहबी थे, तो देश में लाखों मंदिर और करोड़ों हिंदू कैसे बचे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारतीय उपमहाद्वीप से इस्लाम-पूर्व संस्कृति व उसके प्रतीकों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसमें वे आंशिक रूप से सफल भी हुए। बीते एक हजार वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप के जिन क्षेत्रों में सनातन संस्कृति का ह्रास हुआ, वहां बहुलतावाद, पंथनिरपेक्षता व सह-अस्तित्ववाद ने दम तोड़ दिया। हिंदू-बौद्ध-सिख विहीन अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश इसके ज्वलंत प्रमाण हैं। यदि खंडित भारत का हिंदू चरित्र आज भी अक्षुण्ण है, तो इसका श्रेय महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, राणा सांगा, महाराजा छत्रसाल, सिख गुरुओं की परंपरा से लेकर अनेकों वीरों और साधु-संतों को जाता है, जिन्होंने भारत के अस्तित्व की रक्षा हेतु निरंतर प्रतिकार किया। क्या कोई बता सकता है कि उत्तर-पश्चिम भारत के शत-प्रतिशत प्राचीन मंदिर अपने मूल स्वरूप में क्यों नहीं हैं यहां जो भी पुरातन पूजास्थल हम देखते हैं, उसके भवन सतत सांस्कृतिक पुनरुद्धार के कारण 200-250 वर्ष पुराने हैं। जिस वैचारिक नींव पर पाकिस्तान खड़ा है, उसकी और मुस्लिम आक्रांताओं की प्रेरणा एक है। पाकिस्तानी स्कूली पाठ्यक्रमों में इस्लामी आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम को पहला पाकिस्तानी, तो सिंध को पहला इस्लामी प्रांत बताया जाता है, क्योंकि कासिम ने वर्ष 711-12 में हिंदू राजा दाहिर द्वारा शासित तत्कालीन सिंध पर हमला किया था। इसी मानसिकता के कारण पाकिस्तान में मिसाइलों-युद्धपोतों के नाम-गजनी, गौरी, बाबर, अब्दाली, टीपू सुल्तान को समर्पित हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति इस्लामी आक्रांताओं के कृत्यों के लिए वर्तमान भारतीय मुसलमानों को जिम्मेदार नहीं ठहराएगा। परंतु क्या आज के मुसलमानों को इस्लामी आक्रमणकारियों से स्वयं को जोड़कर इस पर गौरव करना चाहिए यदि हिटलरवादियों-यहूदियों के आपसी संबंध मधुर नहीं हो सकते और गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की बड़ाई से क्रोध उत्पन्न होता है, तो भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले औरंगजेब जैसे क्रूर आक्रांताओं का गौरवगान कोई सभ्य समाज कैसे स्वीकार कर सकता है

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Mar 11, 2025, 07:37 IST
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