जीवन धारा: जानना जरूरी है कि गुस्सा आने पर क्या होता है, इंसानी मस्तिष्क में ही है आनंद की कुंजी, सहनशील बनें
हमें सबसे पहले अपने भीतर जागृत हुई किसी भी भावनात्मक प्रतिक्रिया को शारीरिक या मौखिक व्यवहार में परिवर्तित होने से रोकना चाहिए। इसका उद्देश्य स्वयं को संभालना है, ताकि हम नियंत्रण करना सीख जाएं। मुझे एक तिब्बती कहानी याद आती है। यह बेन गुंग्याल नामक एक डाकू की कहानी है, जो बाद में आध्यात्मिक गुरु बन गया। एक दिन जब वेन गुंग्याल किसी के घर गया, तो मालिक ने उसे घर पर अकेला छोड़ दिया। उसे चोरी की आदत थी। उसका दायां हाथ जैसे ही किसी चीज को उठाने के लिए आगे बढ़ा, तो उसने स्वयं को रोक लिया और अपने बाएं हाथ से दायां हाथ पकड़ लिया और फिर जोर से चिल्लाया, चोर-चोर! यदि हम स्वयं को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो इसके लिए हमें जानना होगा कि विनाशकारी और कष्टप्रद भावनात्मक अनुभव, शारीरिक तौर पर हमें किस तरह प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, गुस्सा आने पर कैसा महसूस होता है क्या हृदय की धड़कन में बदलाव आता है क्या चेहरे पर तनाव उभरता है क्या हमारी मांसपेशियों में तनाव पैदा होता है ईर्ष्या और वैमनस्य के भाव उठने पर कैसा महसूस होता है आपको शायद पेट या सीने में ये भाव उठते हुए महसूस होते हैं। भावनाओं के शारीरिक रूपांतरण को पहचानते समय हमें इन भावनाओं के प्रति शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया को भी देखना चाहिए। क्या हम कुछ खास ढंग से व्यवहार करते हैं क्या हम कुछ अलग ढंग से कहते हैं क्या हमारे विचार अलग होते हैं क्या हमारी मुट्ठियां बंद हो जाती हैं हमें बेचैनी होती है या गुस्से में हमारी आवाज बदल जाती है ऐसे में हमारी आवाज तेज हो जाती है। ऐसे भाव मन में उठने पर हमारे काम या हमारी बातों पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है इन बातों पर ध्यान देने से हमें अपनी मानसिक अवस्था को समझने में सहायता मिलती है और खुद पर बेहतर नियंत्रण प्राप्त होता है। इन मानसिक अवस्थाओं से स्वयं को अलग करके, जांच-पड़ताल करने से हम उन पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। एक बार इस प्रक्रिया से परिचित होने के बाद आपको अपने व्यवहार और प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में सफलता मिलने लगती है। फिर आप उस शृंखला से पीछे हटकर विनाशकारी भाव को विस्फोटक अवस्था तक पहुंचने से रोक सकते हैं। दूसरे शब्दों में, आप उस क्षण खुद को शांत रखिए। इससे आप सतर्क हो जाएंगे। अपना ध्यान परेशानी से हटा लेना चाहिए अथवा उस परिस्थिति को सकारात्मक ढंग से भी देखना चाहिए। कई बार वास्तविक स्थिति बुरी होने पर उसके कारणों और परिस्थितियों के संदर्भ में घटना को देखने से भी नकारात्मक प्रतिक्रिया कम हो जाती है। विशिष्ट परिस्थिति को अन्य दृष्टिकोण से देखना लाभकारी होता है, क्योंकि जो बात आपको एक परिप्रेक्ष्य से दुखद दिखाई पड़ती है, वही किसी अन्य दृष्टिकोण से सकारात्मक नजर आती है। सूत्र- सहनशील बनें हमारे आनंद की कुंजी हमारे मस्तिष्क में ही है, तो उस कुंजी तक पहुंचने की मुख्य बाधाएं भी हमारे मस्तिष्क में ही हैं। उस आनंद की कुंजी तक पहुंचने के लिए हमें सकारात्मक गुण विकसित करना होगा। हमारे भीतर मौजूद सकारात्मक गुणों में सबसे महत्वपूर्ण करुणा है। जीवन में सहनशीलता, धैर्य, संतोष, संयम और उदारता अपनाएं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 18, 2025, 04:00 IST
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